रावत को सोमवार को अचानक बीजेपी आलाकमान ने दिल्ली बुलाया था और यहां उनकी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी से मुलाक़ात हुई थी। इस घटनाक्रम से दिल्ली से लेकर देहरादून तक सियासी माहौल बेहद गर्म हो गया है।
इससे पहले उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन के मुद्दे पर गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष की बैठक भी हुई थी।
अगर उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन होता है तो बीजेपी शासित बाक़ी राज्यों में भी ऐसी ही मांग उठ सकती है। उत्तराखंड में अगले साल फ़रवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं और पार्टी के पास ऐसी रिपोर्ट है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से उसे सियासी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
तिवारी ही पूरा कर सके कार्यकाल
इससे पहले बीजेपी ने 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को हटा दिया था और उनकी जगह मेजर जनरल रहे भुवन चंद्र खंडूड़ी को फिर से इस कुर्सी पर बैठाया था। 2012 से 2017 तक चली कांग्रेस की सरकार ने भी दो मुख्यमंत्री- विजय बहुगुणा और हरीश रावत देखे थे। सिर्फ़ नारायण दत्त तिवारी ही अकेले ऐसे मुख्यमंत्री थे जो अपना कार्यकाल पूरा कर सके थे।
त्रिवेंद्र रावत को हटाए जाने की चर्चा बीते साल से ही चल रही थी लेकिन बीती 6 मार्च को जब बीजेपी आलाकमान ने अचानक छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को पर्यवेक्षक बनाकर उत्तराखंड भेजा तो इन चर्चाओं को पंख लग गए।
रमन सिंह के साथ प्रदेश बीजेपी प्रभारी दुष्यंत गौतम भी देहरादून पहुंचे थे। हालात की गंभीरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत सहित कई विधायकों को गैरसैंण में चल रहे बजट सत्र को छोड़कर तुरंत देहरादून आना पड़ा था और उसके बाद त्रिवेंद्र रावत को दिल्ली बुलाए जाने से मामला बेहद गंभीर हो गया है।
बलूनी अहम दावेदार
त्रिवेंद्र को अगर हटाया जाता है तो बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी को इस पद की दौड़ में सबसे आगे बताया जा रहा है। बलूनी उत्तराखंड से ही राज्यसभा सांसद हैं और केंद्र सरकार के मंत्रियों से बेहतर संबंंध होने के कारण राज्य में उन्होंने कई विकास कार्य कराए हैं। उनके समर्थक उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं हालांकि बलूनी ने कभी ख़ुद ऐसी कोई सियासी ख़्वाहिश नहीं रखी है।
बलूनी के बाद राज्य सरकार में मंत्री धन सिंह रावत और सतपाल महाराज का नाम इस पद के लिए सामने आ रहा है। इसके अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और नैनीताल-उधम सिंह नगर सीट से सांसद अजय भट्ट को भी दावेदार बताया जा रहा है।
किसान आंदोलन से गर्म है उत्तराखंड
किसान आंदोलन से उत्तराखंड का मैदानी इलाक़ा पूरी तरह गर्म है। उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले को मिनी पंजाब कहा जाता है। यहां सिखों, पंजाबियों की बड़ी आबादी है। इसलिए यहां किसान आंदोलन काफी मजबूत है और बीते कई महीनों से लोग धरने पर बैठे हैं। किसान नेता राकेश टिकैत ख़ुद इस जिले के रूद्रपुर में सभा को संबोधित कर चुके हैं।
इसके अलावा हरिद्वार जिले में भी किसान आंदोलन गति पकड़ चुका है। उत्तर प्रदेश से टूटकर बने छोटे से राज्य उत्तराखंड में उधम सिंह नगर और हरिद्वार की सियासी हैसियत बहुत बड़ी है। कुल 70 सीटों वाले उत्तराखंड के इन दो जिलों में ही 20 सीटें हैं और किसान आंदोलन का असर इन सभी सीटों पर हो सकता है। हरिद्वार जिले में राष्ट्रीय लोकदल का भी थोड़ा-बहुत असर है।
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