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उत्तराखंड में बीजेपी के उम्मीदवारों की सूची जारी होने से 1 दिन पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के एक कदम से राजनीतिक माहौल गर्म हो गया। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर कहा कि वह इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहते। इसे लेकर तमाम तरह की चर्चा हुई कि आखिर रावत विधानसभा चुनाव लड़ने से पीछे क्यों हट रहे हैं।
त्रिवेंद्र सिंह रावत 4 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे और इस साल मार्च में एक दिन अचानक उन्हें हटाकर पार्टी ने तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया हालांकि बाद में पार्टी ने तीरथ सिंह रावत को भी इस पद से हटा दिया।
मुख्यमंत्री के पद से हटाए जाने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत राजनीतिक बियाबान में चले गए थे हालांकि उन्होंने बीजेपी के केंद्रीय नेताओं से मुलाकात कर खुद को राजनीतिक रुप से जिंदा दिखाने की कोशिश की।
4 साल तक मुख्यमंत्री रहने वाला शख्स अगर चुनाव के ऐन वक्त पर कदम पीछे खींच ले तो इसका यही मतलब समझा जाएगा कि राज्य बीजेपी के अंदर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। हालांकि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने विधानसभा चुनाव ना लड़ने के पीछे कारण यह बताया है कि वह पार्टी को चुनाव लड़ाना चाहते हैं।
चूंकि त्रिवेंद्र सिंह रावत 4 साल तक मुख्यमंत्री रहे इसलिए राज्य में उनके समर्थकों की एक लॉबी खड़ी हो गई थी और उन्हें यह भी उम्मीद थी कि त्रिवेंद्र सिंह अगर मुख्यमंत्री बने रहे तो वे उन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट दिलवा देंगे।
लेकिन मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत का दावा बेहद कमजोर हो गया। अब देखना होगा कि त्रिवेंद्र सिंह रावत का बीजेपी उत्तराखंड में किस तरह सियासी इस्तेमाल करती है लेकिन एक पूर्व मुख्यमंत्री के मैदान छोड़ने की वजह से यह सवाल जरूर खड़ा हो रहा है कि आखिर विधानसभा चुनाव लड़ने में डर किस बात का है।
रावत मुख्यमंत्री रहने के साथ ही 2014 के लोकसभा चुनाव में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सह प्रभारी रहे हैं। झारखंड में भी वह पार्टी के प्रभारी रहे हैं और राष्ट्रीय सचिव भी रह चुके हैं। इसका मतलब यह है कि उनके पास लंबा राजनीतिक अनुभव है लेकिन अगर उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ने से पांव पीछे खींचे हैं तो इसके पीछे कोई बड़ी वजह जरूर है।
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