उत्तराखंड में 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 70 में से 57 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन बावजूद इसके उसे 5 साल के कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री देने पड़े। इस बार भी पार्टी को बड़ी जीत मिली है हालांकि उसकी सीटें कम हुई हैं। लेकिन क्या इस बार 5 साल तक पुष्कर सिंह धामी ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे या फिर से बीजेपी को मुख्यमंत्री बदलने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
चुनाव जीतना होगा
उत्तराखंड अपने 22 साल के इतिहास में राजनीतिक अस्थिरता का भी शिकार रहा है। नारायण दत्त तिवारी अकेले ऐसे मुख्यमंत्री थे जो 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा कर सके। नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने बड़ी चुनौती अपना विधानसभा चुनाव जीतने की है क्योंकि वह खटीमा सीट से चुनाव हार गए थे।
हालांकि बीजेपी हाईकमान ने उन पर फिर से भरोसा जताया है लेकिन धामी के सामने इस भरोसे को बनाए रखने की चुनौती है।
दिग्गजों की फौज़
छोटे से राज्य उत्तराखंड में बीजेपी के कई बड़े नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं। बीते साल त्रिवेंद्र सिंह रावत और उसके बाद तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद इन नेताओं की दिली इच्छा थी कि उन्हें सूबे की नुमाइंदगी करने का मौका मिले लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। इनमें से कई नेता एक बार मुख्यमंत्री बन भी चुके हैं। इन नेताओं ने इस बार भी मुख्यमंत्री पद हासिल करने के लिए काफी जोर लगाया लेकिन बीजेपी हाईकमान ने धामी पर ही एक बार फिर से भरोसा जताया।
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भरोसा कायम रखना होगा
ऐसे में पुष्कर सिंह धामी को अगर 5 साल तक मुख्यमंत्री बने रहना है तो ऐसी विधानसभा सीट चुननी होगी जहां से वह आसानी से चुनाव जीत सकें। धामी की उम्र अभी सिर्फ 46 साल है और उनके पास काम करने के लिए लंबा वक्त है लेकिन उन्हें कई वरिष्ठ नेताओं पर तवज्जो दी गई है। इसलिए उन्हें पार्टी के भीतर अपने विरोधियों से तो मुकाबला करना ही होगा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे को भी कायम रखना होगा।
असंतोष को थामना होगा
धामी को फिर से मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी हाईकमान ने यह संदेश भी दिया है कि वह राज्य में युवा नेतृत्व को ही तरजीह देना चाहता है। धामी की कैबिनेट में भी यह बात साफ दिखाई दी है क्योंकि सौरभ बहुगुणा जैसे युवा चेहरों को भी कैबिनेट में जगह मिली है जबकि कई बार के विधायक बंशीधर भगत, बिशन सिंह चुफाल और अरविंद पांडे को पार्टी ने मंत्री नहीं बनाया।
निश्चित रूप से इससे थोड़ा बहुत असंतोष इन वरिष्ठ नेताओं के मन में जरूर होगा लेकिन पुष्कर सिंह धामी को इन नेताओं को मनाकर रखना होगा और तभी वह एक मजबूत सरकार चला पाएंगे।
धामी के सामने अगले साल होने वाले निकाय चुनाव और उसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत दिलाने की भी चुनौती है। लेकिन इन दोनों चुनौतियां का सामना वह तभी कर पाएंगे जब अपना विधानसभा चुनाव जीत लेंगे।
निश्चित रूप से साल 2021 में जिस तरह लगातार मुख्यमंत्रियों को बदला गया था, उससे यह सवाल जरूर खड़ा हुआ था कि क्या बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के राजनीतिक हालात को संभालने में फेल साबित हो रहा है।
यह बात पुष्कर सिंह धामी के हारने के बाद नए मुख्यमंत्री के चयन के दौरान भी सामने आई क्योंकि चुनाव नतीजों के 11 दिन बाद पार्टी पुष्कर सिंह धामी के नाम का एलान कर सकें। ऐसे में पुष्कर सिंह धामी के सामने दिग्गजों को साधते हुए पूरे 5 साल तक सरकार चलाने की एक बड़ी चुनौती है।
पार्टी नेतृत्व को धामी से उम्मीद है कि उसे पिछली बार की तरह बार-बार मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बदलना पड़ेगा। देखना होगा कि क्या धामी पार्टी नेतृत्व की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे।
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