दिल्ली देहरादून एक्सप्रेसवे बनाने के रास्ते में आने वाले क़रीब 11000 पेड़ों को बचाने के पर्यावरण प्रेमियों के प्रयासों को झटका लगा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने बिना किसी ख़ास बदलाव के उस एक्सप्रेसवे के लिए हरी झंडी दे दी है।
क़रीब 210 किलोमीटर लंबे प्रस्तावित इस एक्सप्रेसवे पर क़रीब 19 किलोमीटर के दायरे में ये पेड़ आएँगे। देहरादून स्थित एक एनजीओ 'सिटीज़ंस फोर ग्रीन दून' ने इन पेड़ों को बचाने के लिए इसी साल सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। याचिकाकर्ताओं ने पेड़ों को बचाने के लिए कोई वैकल्पिक रास्ता तलाशने की गुहार लगाई थी। अदालत ने इस मामले को एनजीटी को सुनवाई करने के लिए कहा था।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि क़रीब 210 किलोमीटर लंबी होने के कारण परियोजना को अनिवार्य पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन यानी ईआईए से गुजरना चाहिए था, जो उसने नहीं किया। हालाँकि, ट्रिब्यूनल ने फ़ैसला सुनाया कि ईआईए की 'आवश्यकता नहीं थी।' पीठ ने कहा, 'इस उद्देश्य के लिए समग्र सड़क संपर्क को एक परियोजना के रूप में नहीं लिया जा सकता है।'
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पर फ़ैसला सुनाया। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार इस बेंच ने अपने आदेश में कहा है, 'हमें यह मानना मुश्किल लगता है कि वन प्रकोष्ठ को मंजूरी देने में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिमाग का कोई इस्तेमाल नहीं किया गया है।'
ट्रिब्यूनल ने कहा कि दिल्ली-देहरादून राजमार्ग एक महत्वपूर्ण राजमार्ग है जो दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी यूपी को देहरादून और हिमालय के ऊंचे इलाक़ों से जोड़ता है।
एनजीटी ने कहा कि इस राजमार्ग की क्षमता बढ़ाना न केवल उत्तराखंड की राजधानी को जोड़ने के लिए अहम है, बल्कि हिमालय के ऊंचे इलाक़ों में सेना, युद्ध सामग्री की समय पर और निर्बाध आवाजाही के लिए भी महत्वपूर्ण है।
एनजीटी ने आदेश में यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआई चिंताओं को दूर करने वाले उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करेगा और निगरानी करेगा। एनजीटी ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भारतीय वन्यजीव संस्थान और वन अनुसंधान संस्थान जैसे संगठनों के सरकारी अधिकारियों की एक 12 सदस्यीय समिति का गठन किया है।
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