इन चार धामों के पुजारियों ने श्रद्धालुओं को चेताया है कि वे इस साल इन पवित्र मंदिरों में न आयें वरना वे 2013 से भी ख़तरनाक आपदा का शिकार हो सकते हैं। 2013 में उत्तराखंड में भयावह आपदा आई थी और इसमें केदारनाथ मंदिर के आसपास ख़ासा नुक़सान पहुंचा था। इसके अलावा राज्य के बाक़ी हिस्सों में भी जबरदस्त नुक़सान हुआ था और राज्य अभी तक इस आपदा से पूरी तरह नहीं उबर पाया है। इस आपदा में कई घर तबाह हो गये थे।
‘भावनाओं से खेल रही सरकार’
इन धामों के पुजारियों ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रही है। उत्तरकाशी में स्थित गंगोत्री मंदिर के मुख्य पुजारी (रावल) शिव प्रकाश ने अंग्रेजी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया (टीओआई) से मंगलवार को कहा, ‘इस क़ानून के द्वारा मंदिरों को अपने अधिकार में लेकर राज्य सरकार धर्म और लोगों की भावनाओं के साथ खेल रही है। अगर सरकार इस क़ानून को रद्द नहीं करती है तो 2013 की आपदा से भी ज़्यादा भयावह घटना इस बार होगी।’
शिव प्रकाश ने इस मामले में गुजरात, राजस्थान और दिल्ली का दौरा किया है और लोगों से इस साल चार धाम की यात्रा पर नहीं जाने के लिये कहा है। शिव प्रकाश ने बताया कि इसके बाद वह असम के दौरे पर जायेंगे।
गंगोत्री धाम के दूसरे पुजारी राजेश सेमवाल ने टीओआई से कहा कि अगर राज्य सरकार इस क़ानून को वापस नहीं लेती है तो पुजारी इस साल मंदिर के धार्मिक संस्कारों का बहिष्कार करेंगे और इस वजह से श्रद्धालु पूजा नहीं कर पायेंगे और उनकी यात्रा अधूरी रह जाएगी। सेमवाल ने कहा कि सरकार के क़दम से श्रद्धालुओं में सकारात्मक संदेश नहीं गया है।
स्वामी ने दायर की याचिका
इस मामले में बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी भी मुखर हैं और उन्होंने इस क़ानून के ख़िलाफ़ उत्तराखंड हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। हाई कोर्ट ने स्वामी की जनहित याचिका पर जवाब देने के लिये राज्य सरकार को तीन हफ़्ते का समय दिया है। स्वामी ने मांग की है कि अदालत को इस क़ानून पर रोक लगा देनी चाहिए।
सरकार बोली, रद्द हो याचिका
सरकार की ओर से पेश हुए वकीलों ने अदालत में इस क़ानून का बचाव करते हुए कहा कि इस क़ानून को देश के संविधान के नियमों का पालन करते हुए ही बनाया गया है और इसके विरोध में अदालत में दायर की गई याचिका महज राजनीतिक स्टंट है और इसलिये इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए। इस साल चार धाम यात्रा अप्रैल में शुरू होगी।
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