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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

योगी का पैंतराः दुकानदारों के नाम वाले आदेश को 'सरकारी' क्यों बताया

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने-पीने का सामान बेचने वाले होटलों, ढाबों, रेहड़ी-पटरी वालों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का आदेश दिया। हालांकि पुलिस तीन दिन पहले से इस आदेश को पश्चिमी यूपी में लागू करवा रही थी। मीडिया में मामला आने के बाद पुलिस ने सफाई दी थी कि दुकानदार ऐसा अपनी इच्छा से कर रहे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय ने शुक्रवार 19 जुलाई को इस आदेश को सरकारी बताया और कहा कि इसे पूरे यूपी के लिए जारी किया गया है। यूपी सरकार ने अब स्पष्ट किया है कि हर खाने-पीने की दुकान या ठेले वाले को बोर्ड पर मालिक का नाम लिखना होगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह निर्णय कांवड़ यात्रियों की पवित्रता बनाए रखने के लिए लिया गया है। अब, हर भोजनालय, चाहे वह रेस्तरां हो, सड़क किनारे ढाबा हो, या यहां तक ​​​​कि खाने की गाड़ी भी हो, उसे मालिक का नाम प्रदर्शित करना होगा।

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मुजफ्फरनगर पुलिस का निर्देश जब सामने आया था तो बड़े पैमाने पर राजनीतिक आक्रोश पैदा हो गया था, विपक्ष और सत्तारूढ़ एनडीए दोनों के नेताओं ने कहा था कि यह आदेश समाज में विभाजन पैदा करेगा। यूपी पुलिस के निर्देश की पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने आलोचना की थी, जिन्होंने कहा था कि यह कदम छुआछूत को बढ़ावा देगा। नकवी ने एक्स पर लिखा, "कुछ अति-उत्साही अधिकारियों के जल्दबाजी वाले आदेश छुआछूत की बीमारी को बढ़ावा दे सकते हैं...आस्था का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन छुआछूत को संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए।"

मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश को वापस लिया जाना चाहिए क्योंकि इससे सांप्रदायिक तनाव हो सकता है और धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।


-केसी त्यागी, राष्ट्रीय प्रवक्ता जेडीयू 19 जुलाई 2024 सोर्सः मीडिया रिपोर्ट

विभिन्न दलों की आलोचना के बाद, मुजफ्फरनगर प्रशासन ने गुरुवार को अपने आदेश में संशोधन किया था और कहा था कि लोग स्वेच्छा से कांवड़ यात्रा मार्ग पर अपने भोजनालयों पर मालिकों का नाम प्रदर्शित कर सकते हैं। लेकिन योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को स्पष्ट कर दिया कि यह सरकारी आदेश है।

योगी ने ऐसा क्यों कियाः मुजफ्फरनगर पुलिस की सफाई के अगले ही दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो आदेश दिया, उस पर सवाल उठ रहे हैं कि योगी के दफ्तर ने आदेश को सरकारी बता दिया। इसकी दो खास वजहें सामने आ रही हैं। पहली वजह तो यही है कि यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और कुछ अन्य भाजपा नेताओं ने योगी को सीएम पद से हटाने की मुहिम छेड़ दी है। मौर्य ने दिल्ली आकर अमित शाह और मोदी से मिलने की भी नाकाम कोशिश की और लखनऊ लौटना पड़ा। यूपी में लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भाजपा का प्रदर्शन बहुत खराब रहा। हालांकि यूपी चुनाव की कमान अमित शाह के पास थी लेकिन अब जिम्मेदार योगी को ठहराया जा रहा है और उन्हें घेरने की लगातार कोशिश की जा रही है। योगी इस स्थिति को भांप गए हैं। इसीलिए वो अपनी हिन्दू नेता वाली छवि बनाकर शहीद होने की कोशिश में ऐसा तुगलकी आदेश जारी कर रहे हैं। क्योंकि वैधानिक रूप से यह आदेश गलत है। किसी भी दुकानदार को उसके धर्म के आधार पर पहचान बताने के लिए समाज में आपसी खाई बढ़ेगी।
योगी के इस फैसले की दूसरी वजह भी पहली वजह से जुड़ी हुई है। दरअसल, सूत्रों का कहना है कि बुधवार को दिल्ली से खाली हाथ लौटने वाले केशव प्रसाद मौर्य ने अब अपने समर्थक विधायकों और शुभचिन्तकों से कहना शुरू कर दिया है कि 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के बाद योगी को हटा दिया जाएगा। क्योंकि तमाम भाजपा नेता यह मानकर चल रहे हैं कि यूपी में भाजपा फिर 10 विधानसभा सीटों पर बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाएगी। तब योगी को हटाने का वाजिब कारण भाजपा आलाकमान (मोदी-शाह) के पास होगा। योगी भी इसे समझ रहे हैं। इसलिए 10 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए योगी ने ध्रुवीकरण का खेल खेलने की कोशिश की है। क्योंकि अब सरकार के शुक्रवार के आदेश से नाम लिखने वाला विवाद और बढ़ेगा। 22 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू होने पर माहौल भी बिगड़ सकता है। हिन्दू मतदाताओं को एकजुट करने में कांवड़ यात्रा रूट पर सारी पाबंदियां मुस्लिम दुकानदारों पर होने की वजह से प्रतिबद्ध मतदाता खुश होगा और भाजपा को वोट डालेगा। नतीजा क्या आएगा, अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन योगी ने अपने तरकश का आखिरी तीर (ध्रुवीकरण) छोड़ दिया है। 
योगी का शुक्रवार का सरकारी आदेश कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। अगर इस मामले को अदालत में चुनौती दी गई तो कोर्ट इस पर रोक लगा सकती है। क्यों यूपी सरकार का आदेश अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 19 (आजीविका का अधिकार) का उल्लंघन है।
इससे पहले, लोकसभा सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने योगी आदित्यनाथ पर हमला करते हुए कहा था कि उनमें "हिटलर की आत्मा" आ गई है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार छुआछूत को बढ़ावा दे रही है। ओवैसी ने अपने बयान में कहा- “हम इस आदेश की निंदा करते हैं क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 का उल्लंघन करता है, जो छुआछूत पर रोक लगाता है। उत्तर प्रदेश सरकार छुआछूत को बढ़ावा दे रही है। यह आदेश नाम और धर्म के प्रदर्शन का निर्देश देता है, यह अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 19 (आजीविका का अधिकार) का उल्लंघन है।” सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी इस आदेश को सामाजिक अपराध बताते हुए अदालत से खुद संज्ञान लेने का आग्रह किया था।
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प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने इस मुद्दे पर शुक्रवार को कहा- "यह बिल्कुल अव्यावहारिक है। वे समाज में भाईचारे की भावना को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लोगों के बीच दूरियां पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इसे तुरंत रद्द किया जाना चाहिए...।"

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क़मर वहीद नक़वी
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