पहले तबलीग़ी जमात और फिर प्रवासी मज़दूरों को कोरोना संकट की जड़ बताने में जुटी रही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अब ज़्यादा लोगों की जाँच कराने पर ध्यान देगी।
कोरोना संकट और लॉकडाउन की शुरुआत के एक महीने यूपी सरकार का सारा ज़ोर इसके पीछे मरक़ज़ और तबलीग़ी जमात को बताने में लगा रहा। रोक के बाद भी लंबे समय तक प्रदेश सरकार की हर रोज़ कोरोना संक्रमितों की संख्या व रोकथाम के उपाय बताने के लिए आयोजित होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस का बड़ा हिस्सा इसी पर केंद्रित रहता था।
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शुतुरमुर्गी नीति!
लॉकडाउन के बढ़ते जाने और बड़ी तादाद में कोरोना संक्रमितों के मिलने के साथ ही जमात का राग किनारे हुआ तो सरकार ने प्रवासी मज़दूरों को इसका ज़िम्मेदार बताना शुरू किया।प्रवासी मज़दूरों में कोरोना संक्रमण को लेकर आई एक रिपोर्ट ने इसे भी झुठला दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक़, लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों से वापस यूपी लौटे महज 3 फ़ीसदी प्रवासी मज़दूरों में ही कोरोना संक्रमण पाया गया है।
पूल टेस्ट
इस सबके बीच एक स्थापित तथ्य यह भी कि अन्य राज्यों के मुक़ाबले यूपी में कोरोना टेस्ट की रफ़्तार सबसे कम रही है। अब जाकर प्रदेश सरकार ने टेस्ट की तादाद बढ़ाने के उपाय करने शुरु किये हैं।पूल टेस्ट के ज़रिए ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की जाँच करने की शुरुआत हुई है। इसके साथ ही गोवा से मशीन मंगायी जा रही है ताकि जल्द से जल्द जाँच की रिपोर्ट आ सके।
संक्रमण में टॉप, टेस्ट में फिसड्डी
भारी प्रचार और रोज़ ख़ुद की पीठ थपथपाने के बाद भी उत्तर प्रदेश में हर रोज़ औसतन 8,000 सैंपलों की जाँच हो रही है। लॉकडाउन के पहले एक महीने में तो यहाँ आँकड़ा महज 5,000 पर ही रहा था। बीते एक सप्ताह में ज़रूर इसे 10,000 के ऊपर पहुँचाया गया है।अभी भी पूरे उत्तर प्रदेश के सिर्फ 0.11 फ़ीसदी आबादी की ही जाँच हो सकी है। यूपी जाँच के मामले में अंतिम दूसरे स्थान पर है और बिहार से थोड़ा बेहतर है। बिहार में कुल आबादी के 0.06 फ़ीसदी की कोरोना जाँच हुई है।
दिल्ली में यह आँकड़ा 1.10, तमिलनाडु में 0.60 और महाराष्ट्र में 0.36 फ़ीसदी पर था। बीजेपी नेताओं की लगातार आलोचना झेल रहे पश्चिम बंगाल तक का रिकार्ड यूपी से बेहतर रहा है, जहाँ कुल आबादी के 0.17 फ़ीसदी लोगों की कोरोना जाँच हुई है।
अब ग़लती सुधार
मई के पहले सप्ताह में जब महाराष्ट्र, गुजरात व दिल्ली से प्रवासी मज़दूरों को वापस लाने के लिए विशेष ट्रेनें व बसें चलाई गयीं तो यूपी के ज़िम्मेदारों ने कहना शुरू किया कि कोरोना का संक्रमण बढ़ने की यही वजह बन रहा है।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक टीवी इंटरव्यू में कह दिया कि महाराष्ट्र से आने वाले 75 फ़ीसदी और दिल्ली से आने वाले 50 फ़ीसदी प्रवासी मजदूरों में कोरोना संक्रमण है।
सरकार के आला अफ़सरों ने बाद में इसे सुधारा। प्रवासी मजदूरों के लिए किए गए पहले रैंडम टेस्ट में जहाँ संदिग्धों की ही जाँच की गयी तो संक्रमण 25 फ़ीसदी से कम निकला।
सिर्फ 3 प्रतिशत
इसके बाद एक रिपोर्ट में बताया गया कि अब तक जितने भी प्रवासियों की जाँच की गयी उनमें 3 फ़ीसदी संक्रमित निकले हैं, जबकि अन्य के मामले में यह औसत 2.85 फ़ीसदी रहा है। इसके बाद बीते चार दिनों में यूपी में जाँच की तादाद बढ़ाने पर खासा ज़ोर दिया जाने लगा।जाँच की रफ्तार धीमी
यूपी में कोरोना की पीसीआर से जाँच हो रही है। इसके तहत सैंपल लैब में जाता है और रिपोर्ट कम से कम एक दिन बाद ही आ पाती है। प्रदेश की एक लैब में औसतन एक दिन में 300 तक ही जाँच हो पा रही है।इस समय यूपी में 22 लैब काम कर रहे हैं। बड़े संस्थानों जैसे किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी या पीजीआई में ही हर दिन 1,000 तक जाँच हो सकती है। डॉक्टरों का कहना है कि एंटीबॉडी किट से जाँच तेज़ी से हो सकती है और इसमें आधे घंटे में नतीजा भी आ सकता है।
पर्याप्त सुविधा न होने के चलते यूपी में कांटैक्ट ट्रेसिंग के आधार पर ही जाँच हो रही है। रैंडम जाँच का सिलसिला पूरी तरह से शुरू नही हो सका है। लक्षण वाले लोगों की ही जाँच की जाती है, जबकि बहुत से लोग बिना लक्षण के भी कोरोना के वाहक हैं।
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