कुख्यात बदमाश विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद उत्तर प्रदेश के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा है कि विकास दुबे को शुक्रवार सुबह उज्जैन से कानपुर लाया जा रहा था। लेकिन कानपुर में भौती के पास सुबह 6.30 बजे पुलिस का एक वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो कर पलट गया जिससे विकास दुबे और गाड़ी में बैठे पुलिसकर्मी घायल हो गए। एडीजी ने कहा कि इसके बाद विकास दुबे ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीनकर भागने की कोशिश की।
एडीजी ने कहा कि पुलिसकर्मियों ने उसे घेरकर सरेंडर करने के लिए कहा लेकिन वह नहीं माना और पुलिस टीम पर फ़ायर करने लगा। उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा जवाबी कार्रवाई की गई, जिसमें वह घायल हो गया और उसे अस्पताल ले जाया गया, जहांं उसकी मौत हो गई। एडीजी ने कहा कि इस घटना में 4 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं और यूपी एसटीएफ़ के 2 अफ़सर भी घायल हुए हैं।
एनकाउंटर को लेकर उठ रहे कई अहम सवालों के जवाब देना शायद पुलिस के लिए आसान नहीं होगा। मीडिया में आ रही ख़बरों में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश पुलिस जब विकास को ला रही थी तो उसके काफिले के साथ चल रही पत्रकारों की गाड़ी को रास्ते में ही रोक दिया गया। सवाल नहीं उठते अगर विकास का एनकाउंटर नहीं होता। पुलिस ने मीडिया को रोक दिया और उसके बाद विकास का एनकाउंटर हो गया।
उत्तर प्रदेश पुलिस पूरे काफिले के साथ विकास को ला रही थी, ऐसे में जिस गाड़ी में विकास को लाया जा रहा था, उसी गाड़ी का एक्सीडेंट कैसे हुआ और एक्सीडेंट के पीछे क्या कारण रहे। इसके पीछे चल रही गाड़ियों को कोई नुक़सान क्यों नहीं हुआ, क्योंकि काफिले में चल रही गाड़ियों की रफ़्तार अच्छी-खासी होती है और उनमें आपस में दूरी भी बहुत ज़्यादा नहीं होती। क्या पुलिस इस पूरी घटना का कोई साक्ष्य मीडिया और जनता के सामने लाएगी। क्योंकि पुलिस की कहानी पर भरोसा करना मुश्किल है।
बिना हथकड़ी के था विकास?
पुलिस ने दावा किया है कि विकास दुबे ने पुलिसकर्मियों से हथियार छीनकर भागने की कोशिश की और उसने पुलिसकर्मियों पर गोली चला दी, इसके जवाब में पुलिस ने भी आत्म सुरक्षा में गोली चलाई। उत्तर प्रदेश पुलिस के पास क्या इस बात का कोई जवाब है कि वह ऐसे ख़तरनाक अपराधी जिसने अपने साथियों के साथ मिलकर 8 पुलिसकर्मियों को गोलियों से भून दिया हो, उसे क्या वह बिना हथकड़ी लगाए ला रही थी। इस एनकाउंटर को लेकर देखिए, वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार का वीडियो -
विकास के साथी प्रभात मिश्रा के मामले में भी पुलिस का यही कहना था कि उसने पुलिस को चकमा देकर भागने की कोशिश की थी। एनकाउंटर के दौरान कितनी गोलियां चलीं, इस बात का जवाब पुलिस को देना बाकी है।
इन सवालों से पहले सबसे बड़ा सवाल तो तभी खड़ा हुआ था, जब विकास की उज्जैन से गिरफ़्तारी हुई थी। सवाल यह था कि इतने दुर्दांत अपराधी को जिसे पुलिस की कई टीमें ढूंढ रही हैं, उसे एक साधारण से सुरक्षाकर्मी ने पकड़ लिया और वह कानपुर से फरीदाबाद और फिर उज्जैन कैसे पहुंच गया।
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