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कुख्यात बदमाश विकास दुबे को पकड़ने उसके गांव बिकरू पहुंची पुलिस टीम को इस बात का नहीं पता था कि उनके विभाग के कुछ 'विभीषण' दुबे और उसके साथियों से मिले हुए थे। इस बात की जांच इस घटना के बाद से ही हो रही थी और घटना के कुछ दिन बाद ही चौबेपुर पुलिस स्टेशन के एसएचओ विनय तिवारी और सब-इंस्पेक्टर केके शर्मा को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था।
पुलिस को इस बात का शक था कि फ़ोर्स के बिकरू गांव में पहुंचने से पहले विनय तिवारी और केके शर्मा ने ही विकास दुबे को इसकी सूचना दी थी।
इस मामले में जांच के लिए बनाई गई एसआईटी की जो रिपोर्ट सामने आई है, उससे अपराधियों और कुछ पुलिसवालों के बीच पनप रहे नापाक गठजोड़ की पोल खुल गई है। 2-3 जुलाई, 2020 की रात को कानपुर के बिकरू गांव में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस टीम के 8 जवानों को बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया गया था।
3,200 पन्नों की एसआईटी की रिपोर्ट में कुल 80 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है। इनमें 50 पुलिसकर्मी हैं। रिपोर्ट में से 700 पेज में पुलिस वालों और विकास दुबे के बीच क्या संबंध थे, इसका जिक्र है।
दुबे के गुर्गों ने रात के अंधेरे में पहुंचे पुलिसकर्मियों पर छतों पर चढ़कर गोलियां चलाई थीं। पुलिसकर्मियों को इस बात का क़तई अंदाजा नहीं था कि दुबे को उनकी दबिश की सूचना मिल गई है और उसने और उसके गुर्गों ने असलहा इकट्ठा करने से लेकर छतों पर मोर्चा संभाल लिया है।
इंडिया टुडे के मुताबिक़, एसआईटी ने पड़ताल के दौरान 100 लोगों को जांच में शामिल किया था। इनमें पुलिसकर्मी, बिकरू गांव के लोग, यहां से बाहर के पुलिस अफ़सर और कानपुर के व्यवसायी थे। इनमें से कुछ को छोड़कर बाक़ी सभी लोग विकास दुबे के साथ इस नापाक गठजोड़ में शामिल पाए गए हैं।
बिकरू कांड के बाद जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूरे राज्य की नाकेबंदी कर दी थी, तब भी विकास दुबे पहले हरियाणा और फिर मध्य प्रदेश पहुंच गया था। उससे साफ था कि पुलिस महकमे में उसके अपने लोग बैठे हैं, वरना वह कैसे इतने राज्यों में पुलिस को छकाता रहा।
मध्य प्रदेश के उज्जैन से जब उसे वापस कानपुर लाया जा रहा था तो पुलिस ने कहा था कि जिस गाड़ी से उसे लाया जा रहा था, उसका एक्सीडेंट होने पर दुबे ने पुलिसकर्मियों से हथियार छीनकर भागने की कोशिश की और गोली चला दी। पुलिस ने कहा था कि आत्मसुरक्षा में उसने भी गोली चलाई और इसमें विकास दुबे की मौत हो गई।
विकास दुबे कोई छोटा-मोटा बदमाश नहीं था, वह बेहद शातिर अपराधी था। साथ ही वह नेता भी था और पुलिसवालों के अलावा उसके सभी दलों के नेताओं के साथ मधुर संबंध थे। बिकरू कांड के बाद कई दलों के नेताओं के साथ उसकी फ़ोटो वायरल हुई थीं।
इस जघन्य हत्याकांड के बाद उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दलों में विकास दुबे किसका करीबी है, यह साबित करने की होड़ लग गई थी। विकास दुबे ख़ुद भी जिला पंचायत का सदस्य रहा था और पत्नी को भी उसने जिला पंचायत और भाई को ग्राम प्रधान के चुनाव में जीत दिलाई थी।
कानपुर के बीजेपी विधायक भगवती प्रसाद सागर और अभिजीत सांगा की भी विकास दुबे और उसके गैंग के लोगों के साथ तसवीरें सामने आई थीं। विकास को पूर्व में बीएसपी सांसद रहे और अब कांग्रेस नेता राजाराम पाल का भी करीबी बताया गया था।
प्रदेश सरकार की ओर से विकास के गैंग के मेंबरों की जारी सूची में शामिल गुड्डन त्रिवेदी की तसवीरें तो एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ जारी की गईं थीं। विकास के लिए इस्तेमाल होने वाली कारों की बरामदगी के बाद बताया गया था कि उनमें से एक का पंजीकरण बीजेपी युवा मोर्चा के प्रदेश सचिव के नाम था।
कहा जा रहा है कि इस रिपोर्ट को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार बड़ी कार्रवाई कर सकती है। क्योंकि यह रिपोर्ट साफ करती है कि पुलिस विभाग में कुछ लोग अपराधियों से मिले हुए हैं और उन पर कार्रवाई से पहले ही वे उन तक सूचना पहुंचा देते हैं। एसआईटी की इस रिपोर्ट से साफ है कि अगर इन पुलिसकर्मियों पर सख़्त कार्रवाई नहीं होती है तो प्रदेश में अपराध कभी ख़त्म नहीं हो सकता और आगे भी पुलिसकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ सकती है क्योंकि बिकरू कांड में यही सब हुआ।
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