उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूरे प्रदेश में सड़कों पर जुमे की नमाज़ पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। हालाँकि ख़ास मौक़ों पर इसमें छूट दी जा सकती है। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि प्रदेश के डीजीपी ने सभी ज़िलों के पुलिस प्रमुखों को इसके लिए निर्देश जारी कर दिए गए हैं। ऐसा ही प्रतिबंध अलीगढ़ और मेरठ में भी लगाया गया था। नोएडा के सेक्टर-58 में भी पार्क में जुमे की नमाज़ को लेकर निर्देश जारी किए गए थे। बता दें कि इस धार्मिक रीति-रिवाज के जवाब के तौर पर कुछ हिंदू संगठनों ने भी सड़क पर हनुमान चालीसा का पाठ करना शुरू कर दिया था। वे आरोप लगाते रहे हैं कि सड़कों पर नमाज़ करने से यातायात प्रभावित होते हैं और लोगों को काफ़ी परेशानियाँ आती हैं।
इस संबंध में पुलिस की ओर से निर्देश जारी किए गए हैं। ‘इंडिया टुडे’ के अनुसार, पुलिस महानिदेशक ओ. पी. सिंह ने कहा कि शुरुआत में अलीगढ़ और मेरठ में भी इसी तरह का प्रतिबंध लगाया गया था, और अब इसे पूरे राज्य में लागू करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि अलीगढ़ ज़िला प्रशासन ने सड़कों पर नमाज़ पर प्रतिबंध लगाने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किया था और इसे सफलतापूर्वक लागू किया।
वेबसाइट के अनुसार पुलिस महानिदेशक ने कहा, ‘विशेष अवसरों पर, जब त्योहारों पर नमाज़ अदा करने के लिए बड़ी भीड़ इकट्ठा होती है तो इसकी अनुमति ज़िला प्रशासन द्वारा दी जा सकती है, लेकिन हर जुमे की नमाज़ के दौरान इस रिवाज को दिनचर्या के रूप में इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी।’ उन्होंने आगे कहा कि दूसरे धार्मिक समुदायों को भी सड़कों पर धार्मिक समारोहों को आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, अगर इससे यातायात का प्रवाह बाधित होता है या दूसरों को असुविधा होती है।
अलीगढ़ में पहले ही लागू है ऐसा नियम
हाल ही में अलीगढ़ प्रशासन ने सड़कों पर धार्मिक आयोजन करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अनुसार सड़कों पर न तो नमाज़ होती है और न ही हनुमान चालीसा और महाआरती। इस प्रतिबंध को लगवाने में दक्षिणपंथी संगठनों के समूह का हाथ था। दरअसल, सड़कों पर नमाज़ अदा करने वाले मुसलमानों के विरोध में इन संगठनों के समूह ने हर मंगलवार और शनिवार को सड़कों पर हनुमान चालीसा का पाठ और महा आरती शुरू कर दी थी। ये संगठन सड़कों पर नमाज़ अदा करने का विरोध करते रहे हैं।
बता दें कि बजरंग दल सहित कई दक्षिणपंथी संगठनों ने अलीगढ़ में प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को मंदिरों के बाहर हनुमान आरती का आयोजन किया था, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों के भाग लेने के कारण सड़कों पर अराजकता फैल गई थी।
सड़कों पर महा आरती क्यों?
ऐसी लगातार रिपोर्टें आईं कि दक्षिणपंथी संगठनों ने सड़कों पर हुनमान चालीसा और महाआरती की शुरुआत नमाज़ को बंद कराने के लिए की थी। क्योंकि पहले सामान्य रूप से हनुमान चालीसा या महाआरती सड़कों पर नहीं होती रही है। हालाँकि जब तब सड़कों पर धार्मिक शोभायात्राएँ निकाली जाती रही हैं और नवरात्र जैसे अवसरों पर भी कई जगह आयोजन होते रहे हैं। ऐसे में जब दक्षिणपंथी संगठनों ने सड़कों पर धार्मिक आयोजन शुरू किए तो सवाल उठने लगे कि उनका मक़सद क्या है? क्या वे इससे चिंतित हैं कि सड़क पर ऐसे आयोजनों से यातायात प्रभावित होता है और लोगों को परेशानियाँ होती हैं या कोई राजनीतिक कारण भी है?
नोएडा- फ़रीदाबाद में भी विवाद
कुछ महीने पहले नोएडा में तो ख़ुद पुलिस ने बाक़ायदा नोटिस देकर कंपनियों से कह दिया था कि यदि उनके कर्मचारी खुले में नमाज़ पढ़ते पाए गए तो कंपनियों पर कार्रवाई होगी।
नोएडा के पुलिस अधीक्षक अजय पाल का कहना था कि ‘कुछ लोगों ने सेक्टर 58 के पार्क में नमाज़ पढ़ने की अनुमति माँगी थी। सिटी मजिस्ट्रेट की ओर से अनुमति न मिलने के बाद भी लोग वहाँ इकट्ठा हो रहे थे। इलाक़े की कंपनियों को इस बारे में बता दिया गया है। यह सूचना किसी धर्म विशेष के लिए नहीं है।’ कुछ महीने पहले फ़रीदाबाद में भी इस पर विवाद हुआ, फिर गुड़गाँव में भीड़ द्वारा मुसलमानों को पार्क में नमाज़ पढ़ने से रोका गया था।
गुड़गाँव में भी हुआ था विवाद
इसी साल के अगस्त महीने में गुड़गाँव के बसई गाँव में एक ख़ाली पड़े प्लॉट पर नमाज़ पढ़ने वालों से कुछ लोग झगड़ा करने आ गए। पुलिस ने किसी तरह बीच-बचाव तो किया पर नमाज़ियों को आइंदा उस प्लॉट पर नमाज़ पढ़ने से रोक दिया। नमाज़ी दूसरे प्लॉट के मालिक से बातचीत कर वहाँ नमाज़ पढ़ने लगे तो कुछ लोग वहाँ भी उन्हें रोकने आ गए, विवाद हुआ और दंगा होते-होते बचा। पुलिस ने नमाज पढ़ने से रोकने वालों को तो कुछ नहीं कहा, नमाज़ियों को ही फिर कहीं और खिसकने को कह दिया। कई महीनों पहले फ़रीदाबाद में बिलकुल इसी तरह का विवाद हुआ था।
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