उत्तर प्रदेश के विधानसभा और विधान परिषद चुनाव में जीत हासिल करने के बाद बीजेपी की नजर राज्यसभा के चुनाव में ज्यादा सीटें झटकने पर है। कहा जा रहा है कि बीजेपी राज्यसभा चुनाव में अपने सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा नहीं करेगी।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी का अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन है। लेकिन जिन नामों की चर्चा बीजेपी की ओर से टिकट के दावेदार के तौर पर है, उनमें सहयोगी दलों के नेताओं के नाम नहीं दिखाई देते।
उत्तर प्रदेश में 11 सीटों के लिए राज्यसभा का चुनाव होना है और इसके लिए 10 जून को मतदान होगा।
ये हैं दावेदार
खबरों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश बीजेपी ने जिन दावेदारों का नाम पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को भेजा है उनमें सैयद जफर इस्लाम, शिव प्रताप शुक्ला, संजय सेठ, सुरेंद्र नागर, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी, पूर्व सांसद नरेश अग्रवाल, आरपीएन सिंह, जयप्रकाश निषाद, प्रियंका रावत आदि का नाम शामिल है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भी किसी एक जाट नेता को राज्यसभा में भेजा जा सकता है। क्योंकि राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चौधरी सपा-लोकदल के गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं और उनकी जीत तय मानी जा रही है। ऐसे में जाट मतों को हाथ से ना छिटकने देने के लिए बीजेपी किसी जाट नेता को राज्यसभा में भेज सकती है।
इस बात की भी चर्चा है कि बीजेपी राज्य सरकार के किसी बड़े मंत्री को राज्यसभा में भेज सकती है।
7 सीटें जीतना तय
उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पास 255 विधायक हैं जबकि सहयोगी दलों के विधायकों को मिलाकर यह आंकड़ा 273 बैठता है। राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए 37 विधायक चाहिए।
विधायकों के आंकड़ों के लिहाज से बीजेपी 11 में से 7 सीटें जीत सकती है जबकि समाजवादी पार्टी गठबंधन को 3 सीटें मिलेंगी। 11वीं सीट के लिए दोनों दलों के बीच जोरदार मुकाबला होगा। कहा जा रहा है कि बीजेपी लखनऊ के किसी बड़े व्यवसायी को इस 11 वीं सीट के लिए मुकाबले में उतार सकती है।
11वीं सीट के लिए होने वाले मुकाबले में कांग्रेस के दो विधायकों, बसपा के एक विधायक, जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के 2 विधायकों का भी रोल बेहद अहम हो सकता है।
अगर बीजेपी सहयोगी दलों के लिए सीट नहीं छोड़ती है तो वे नाराजगी जता सकते हैं। हालांकि इससे बीजेपी की सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि उत्तर प्रदेश में सरकार चलाने के लिए जरूरी 202 के विधायकों के आंकड़े से कहीं ज्यादा विधायक उसके पास हैं।
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