विधानसभा चुनाव में हारने के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को अब विधान परिषद के चुनाव में भी ज़ोर का झटका लगा है। 36 सीटों पर हुए चुनाव में उनकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। सपा के ज्यादातर उम्मीदवार 500 से कम वोट पर ही सिमट गए इक्का-दुक्का उम्मीदवार ही हज़ार वोटों का आंकड़ा पार कर पाए। सबसे शर्मनाक बात यह रही कि मुसलिम बहुल इलाकों के चुने हुए प्रतिनिधियों का वोट भी बीजेपी को चला गया है। समाजवादी पार्टी के अस्तित्व के लिए ये बड़े ख़तरे का संकेत है।
सपा का सफाया
बता दें कि 36 सीटों पर हुए विधान परिषद के चुनाव में बीजेपी 9 सीटें पहले ही निर्विरोध जीत चुकी थी। बाकी 27 सीटों पर हुए चुनाव में से बीजेपी ने 24 सीटें जीत ली हैं। सपा का खाता तक नहीं खुला है। राजा भैया की नई नवेली पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक ने प्रतापगढ़ की एक सीट जीती है। वाराणसी और आज़मगढ़ की 2 सीटें निर्दलीयों ने जीती हैं। इस तरह देखा जाए तो अखिलेश यादव का प्रदर्शन राजा भैया की पार्टी से भी ख़राब रहा है।
पहले बोलती थी सपा की तूती
इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 36 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। 2 सीटों पर उसके सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। छह सीटों पर सपा के उम्मीदवारों ने और एक सीट पर रालोद के उम्मीदवार ने नाम वापस लेकर बीजेपी को वॉक ओवर दे दिया था। दो सीटों पर सपा के उम्मीदवारों के पर्चे तकनीकी वजहों से ख़ारिज हो गए थे। इस तरह बीजेपी चुनाव से पहले ही 9 सीटों पर निर्विरोध जीत हासिल करने में कामयाब रही थी।
मुसलिम बहुल इलाक़ों में बीजेपी को बढ़त
पश्चिम उत्तर प्रदेश में सहारनपुर-मुज़फ्फ़र नगर, मेरठ-ग़ाज़ियाबाद और बिजनौर -मुरादाबाद जैसे मुसलिम बहुल इलाकों की विधान परिषद सीटों पर समाजवादी पार्टी की स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही थी। लेकिन इन इलाकों के समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों ने अखिलेश को बुरी तरह निराश किया है।
मुसलिम प्रतिनिधियों को साधने में नाकाम
ऐसा ही दावा बिजनौर-मुरादाबाद सीट से जीते बीजेपी के एमएलसी सतपाल सैनी ने किया है। उनके मुताबिक़ बिजनौर और मुरादाबाद के जिला पंचायतों में मुसलिम प्रतिनिधियों की तादाद ज्यादा है। इसके बावजूद बीजेपी को सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। मुसलिम समाज के चुने हुए प्रतिनिधियों ने दिल खोलकर बीजेपी का समर्थन किया है।
इस सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अजय मलिक थे। उन्होंने चुनाव जीतने की भरसक कोशिश की। उन्हें चुनाव लड़ाने के लिए सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम और बिजनौर ज़िले में जीते सपा के चारों विधायकों के साथ जिले की नगर पालिका और नगर पंचायतों के अध्यक्षों ने पूरी ताक़त झोंकी थी। लेकिन वो सिर्फ़ 903 वोट हासिल कर सके। जबकि बीजेपी के उम्मीदवार ने 6,843 वोट हासिल करके उन्हें 5,940 वोटों के बड़े अंतर से हराया।
सपा-रालोद गठबंधन फिर नाकाम
मुजफ्फरनगर-सहारनपुर के विधान परिषद चुनाव में बीजेपी ने पहली बार जीत हासिल की है। यहां बीजेपी की प्रत्याशी वंदना वर्मा को 3843 वोट मिले। उन्होंने सपा प्रत्याशी आरिफ को 3001 वोट से हराया है। आरिफ को 842 वोट मिले हैं। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को उम्मीद से बेहद कम वोट मिले है। चुनावी नतीजे इस बात की तस्दीक भी कर रहे हैं।
रालोद से गठबंधन का समाजवादी पार्टी को यहां कोई फायदा होता नहीं दिखा। कहा जा सकता है कि ये गठबंधन विधानसभा के चुनाव बाद विधान परिषद के चुनाव में भी बीजेपी का बाल भी बांका नहीं कर पाया।
आज़मगढ़ में ज़मानत ज़ब्त
पूर्वांचल में आज़मगढ़ जैसे अपने सबसे मज़बूत गढ़ में सपा का उम्मीदवार अपनी ज़मानत तक नहीं बचा पाए। आजमगढ़ में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विक्रांत सिंह रिशु ने बीजेपी के अरुणकांत यादव को हराया है। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सपा से राकेश कुमार यादव गुड्डू 356 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। उनकी ज़मानत तक नहीं बच पाई। यह हाल तब है जबकि पिछले महीने हुए विधानसभा के चुनाव में जिले की सभी 10 विधानसभा सीटें समाजवादी पार्टी ने जीती हैं।
आजमगढ़ में जिला पंचायत के अध्यक्ष भी समाजवादी पार्टी के ही हैं। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अखिलेश यादव ने यहां की लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। इससे पहले 2004 में मुलायम सिंह यादव यहां से लोकसभा चुनाव जीते थे। विधान परिषद के चुनाव में हुई सपा की दुर्गति से लगने लगा है कि अब यहां उसकी पकड़ ढीली हो रही है।
विधानसभा चुनाव के के क़रीब महीने भर बाद हुए विधान परिषद के चुनाव में समाजवादी पार्टी की हुई दुर्गति को देखते हुए प्रदेश की राजनीति में अखिलेश की आगे की राह और भी मुश्किल नज़र आ रही है। जहां बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र अपनी स्थिति मज़बूत करती जा रही है वहीं समाजवादी पार्टी अभी तक हार की हताशा से उतरती नहीं दिख रही।
अखिलेश यादव ने आज़मगढ़ की लोकसभा सीट से इस्तीफा देकर भले ही विधानसभा में पांच साल योगी सरकार के खिलाफ संघर्ष करने का ऐलान कर दिया हो लेकिन ज़मीन पर वो संघर्ष करते हुए दिख नहीं रहे।
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