समाज के कमजोर, शोषित और और दलित वर्ग के उत्थान का लक्ष्य लेकर राजनीति में उतरने की बात कहने वालीं मायावती से क्या उनका परंपरागत वोट बैंक छिटक चुका है और उनकी सियासी हैसियत अब पार्टी को सत्ता में लाने की नहीं है। चुनाव नतीजे तो यही कहते हैं।
2019 के चुनाव परिणाम के बाद मायावती को ऐसा लगा कि वह एक बार फिर से ताक़तवर बन चुकी हैं और अकेले दम पर यूपी में सियासत कर सकती हैं। नतीजतन, उन्होंने एसपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया। गठबंधन तोड़ने के बाद पहली परीक्षा यूपी का उपचुनाव थी और इसमें जो नतीजे आये हैं, वह साफ़ बताते हैं कि बीएसपी इस मुगालते को छोड़ दे कि वह राज्य में अकेले दम पर चुनाव लड़कर कोई करिश्मा कर सकती है।
11 सीटों पर उपचुनाव हुआ जिसमें बीएसपी एक सीट जीतना तो दूर अपनी पुरानी सीट को ही गँवा बैठी जबकि एसपी ने अपनी एक सीट बरक़रार रखी और एक-एक सीट बीजेपी और बीएसपी से छीन भी ली, इस तरह एसपी को कुल 3 सीटें मिलीं।
दो सीटों पर बीएसपी का वोट शेयर बुरी तरह कम हुआ है। रामपुर में जहाँ बीएसपी को 2017 में 25.36% वोट मिले थे लेकिन इस बार उसे सिर्फ़ 2.14% वोट मिले हैं। दूसरी सीट गोविंद नगर में उसे 2017 के 15.65% के मुक़ाबले 4.62% वोट मिले हैं।
इसी तरह गंगोह में 2017 में मिले 17.44% वोट के मुक़ाबले बीएसपी को इस बार 14.37%, घोसी में 33.89% के मुक़ाबले 23.02%, बल्हा में 28.91% के मुक़ाबले 17.06%, जलालपुर में 37.75% के मुक़ाबले 31.25%, लखनऊ कैंट में 13.98% के मुक़ाबले 9.64%, प्रतापगढ़ में 22.82% से 12.74% वोट, हमीरपुर में 24.29% के मुक़ाबले 14.92% वोट मिले हैं।
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सिर्फ़ 2 सीटें ऐसी हैं, जहाँ बीएसपी का वोट शेयर बढ़ा है। ये सीटें हैं - मानिकपुर और इगलास। दूसरी ओर एसपी ने पाँच सीटों पर अपना वोट शेयर बढ़ाया है और तीन सीटें जीती हैं।
मुसलिम, दलित वोट भी छिटका
गंगोह, कानपुर, जैदपुर, लखनऊ कैंट, प्रतापगढ़ सदर में बीएसपी के प्रत्याशी चौथे नंबर पर लुढ़क गए। उपचुनाव के नतीजे साफ़ बताते हैं कि बसपा की राजनीति को कम से कम यूपी में मुसलिमों का सहारा नहीं मिलने वाला है। दलितों में भी महज जाटव वोट ही उसके पाले में आ सके हैं। हालाँकि इस सबसे बेपरवाह मायावती ने नतीजों के बाद अजीबोगरीब बयान देते हुए कहा कि बीजेपी ने बसपा को कमज़ोर करने के लिए सपा के कुछ प्रत्याशियों को जितवा दिया है।
मायावती के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि उनकी पार्टी में उनके अलावा कोई और स्टार प्रचारक नहीं है। हाल ही में मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तो भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय संयोजक बनाया है और संगठन में भी फेरबदल किया है। लेकिन क्या ये दोनों उत्तर प्रदेश की बेहद कठिन राजनीति में बीएसपी को खड़ा कर सकते हैं।
मायावती के ख़ासमख़ास लोग जिनमें नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी से लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य और कई अन्य लोग शामिल हैं, उन्हें छोड़कर जा चुके हैं। दलितों, पिछड़ों का एक बड़ा वर्ग बीजेपी के साथ जुड़ रहा है क्योंकि बीजेपी इन दोनों वर्गों के नेताओं को आगे बढ़ा रही है।
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