उत्तर प्रदेश में चल रही जबरदस्त राजनीतिक उथल-पुथल के बीच कई तरह की चर्चाएं हैं। एक चर्चा ये है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अभयदान मिल गया है और नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चलीं अटकलें सिर्फ़ अटकलों तक ही सीमित रह गयी हैं। दूसरी चर्चा ये है कि अब सिर्फ़ कैबिनेट विस्तार होगा, आयोगों में खाली पद भरे जाएंगे और पार्टी चुनाव की तैयारियों में जुट जाएगी।
लेकिन एक धमाकेदार चर्चा भी इस बीच सामने आई है। ये चर्चा कुछ दिनों पहले जब बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष लखनऊ आए थे और उन्होंने पार्टी और आरएसएस के पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी, उसी दौरान की है।
यह चर्चा या इसे ख़ुलासा कहना ज़्यादा सही होगा क्योंकि जिसने यह ख़ुलासा किया है, वह अपने ख़ुलासे पर कायम हैं और यह बेहद सनसनीखेज़ है। यह ख़ुलासा वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता ने ‘सत्य हिन्दी’ के साथ बातचीत में किया है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति की नब्ज को बेहतर ढंग से समझने वाले गुप्ता ने कहा कि इन हस्ताक्षरों के साथ लैटर क्या लगेगा, यह उस वक़्त तय नहीं था। उन्होंने कहा कि इसके बाद एक लैटर बनाया गया है और यह नहीं कहा जा सकता कि इस लैटर में क्या लिखा है और इन हस्ताक्षरों को उस लैटर के साथ लगाया गया है। शरद गुप्ता ने कहा कि वह अपनी ख़बर पर क़ायम हैं।
गुप्ता ने कहा कि बीजेपी ने योगी को बीते साढ़े चार सालों में तमाम राज्यों में स्टार प्रचारक के तौर पर भेजा और अब उनका क़द काफी बड़ा हो गया है।
ख़तरे की घंटी
अगर यह ख़बर सही होती है तो निश्चित रूप से योगी आदित्यनाथ के लिए ख़तरे की घंटी है। पार्टी अगर उन्हें इस बार नहीं भी हटाती है तो कोई गारंटी नहीं है कि 2022 के चुनाव के बाद उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़रीबी अफ़सर अरविंद कुमार शर्मा को लेकर योगी के व्यवहार की भी काफ़ी चर्चा मीडिया में हो चुकी है।
विधानसभा में नारेबाज़ी
यहां ये याद रखना होगा कि दो साल पहले विधानसभा में बीजेपी के विधायकों ने ही सरकार के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की थी। तब भी योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ विधायकों में नाराज़गी होने की ख़बर से उत्तर प्रदेश का सियासी तापमान बढ़ गया था लेकिन बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल कर लिया था।
इस बार ऐसा लगता है कि पार्टी को इस बात का अंदाजा है कि डैमेज कंट्रोल का मौक़ा शायद उसे न मिले क्योंकि 325 में से 250 विधायक अगर मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ हैं और राज्य में 7 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं तो जीत हासिल करने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
लिफ़ाफे में क्या है?
उत्तर प्रदेश में तमाम नेता, पत्रकार इस बात का भी पता लगा रहे हैं कि आख़िर बीजेपी के प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित को जो लिफ़ाफा सौंपा है, उसमें क्या है। इससे पहले राधा मोहन सिंह की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से भी मुलाक़ात हुई और तब भी कई तरह की चर्चाएं हुईं।
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