चुनावी पर्यवेक्षकों की खासकर अयोध्या पर नज़र है क्योंकि बीजेपी का यह क्षेत्र गढ़ रहा है और इस बार राम मंदिर निर्माण का काम भी शुरू हुआ है।
पाँचवें चरण में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कौशांबी ज़िले की सिराथू सीट से चुनाव मैदान में हैं। मौर्य के सामने अपना दल (कमेरावादी) की उम्मीदवार पल्लवी पटेल चुनाव लड़ रही हैं। पल्लवी पटेल केंद्रीय मंत्री और अपना दल (सोनेलाल) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल की बहन हैं।
इसके अलावा योगी सरकार के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह इलाहाबाद पश्चिम से, राजेंद्र सिंह उर्फ मोती सिंह पट्टी से, नंद गोपाल गुप्ता नंदी इलाहाबाद दक्षिण से, रमापति शास्त्री मनकापुर से, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया कुंडा से, कांग्रेस विधायक दल की नेता आराधना मिश्रा मोना रामपुर खास से और अपना दल (कमेरावादी) की नेता कृष्णा पटेल प्रतापगढ़ की सीट से चुनाव मैदान में हैं।
चुनावी पर्यवेक्षक मानते हैं कि पाँचवें चरण के चुनाव में दलित और मुसलिम मतदाता बेहद ताक़तवर स्थिति में हैं। मुसलिम मतदाताओं की संख्या 18 फीसदी है जबकि दलित मतदाताओं की संख्या 22.5 फीसदी है। दलित मतदाताओं में से 30 फीसदी जाटव समाज के मतदाता हैं। इसके अलावा पासी और कोईरी मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं।
सवर्ण जातियाँ और कुर्मी, यादव, मौर्य, शाक्य, कुछ इलाकों में लोध मतदाता, राजभर, निषाद, बघेल, पाल, प्रजापति, कुम्हार जातियों के वोटर भी अच्छी संख्या में हैं।
बीजेपी ने उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को बड़ा मुद्दा बना लिया था। पार्टी को उम्मीद है कि उसे इससे अयोध्या ज़िले में सियासी फ़ायदा मिलेगा।
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को अयोध्या में 49.56 फीसदी वोट मिले थे। यह आँकड़ा 1991 के विधानसभा चुनाव के बाद सबसे ज़्यादा था। 1991 में बीजेपी को यहां 51.3 फीसदी वोट मिले थे।
2012 के विधानसभा चुनाव में इन 61 सीटों पर बीजेपी को 13.1 फीसदी वोट मिले थे और उसने 5 सीटें जीती थीं जबकि 2017 के चुनाव में यह वोट फीसदी बढ़कर 40.3 हो गया और उसे अपनी सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के साथ 50 सीटों पर जीत मिली थी। इसमें अपना दल (सोनेलाल) की तीन और बीजेपी की 47 सीटें शामिल हैं।
सपा को 2012 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके में 31 फीसदी वोट मिले थे और उसने 41 सीटें जीती थीं। लेकिन 2017 में उसे 28.1 फीसदी वोट मिले और सीटों का आंकड़ा घटकर 5 रह गया। कांग्रेस को 2012 में 13.1 फीसदी वोट मिले थे और उसने 6 सीटें जीती थी। लेकिन 2017 के चुनाव में वह सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर सकी थी। 2017 में कांग्रेस ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।
2012 के विधानसभा चुनाव में मायावती की अगुवाई वाली बीएसपी को 25 फीसदी वोट मिले थे और उसने 7 सीटें जीती थीं जबकि 2017 में उसका वोट फीसदी घटकर 21.7 रह गया और उसे सिर्फ़ 3 सीटों पर जीत मिली थी।
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