अब शाखा आरएसएस की ही नहीं होगी। आम आदमी पार्टी की भी होगी। दोनों की ही शाखाओं में अभी से ही कड़ी 'टक्कर' होती दिखती है, भले ही आप की शाखा शुरू ही नहीं हुई हो!
समझा जाता है कि आरएसएस की शाखा के जवाब में ही आप की तिरंगा शाखा लगेगी। अंतर भी होगा। भगवा झंडे और तिरंगा झंडा फहराकर कार्यक्रम शुरू करने में। आरएसएस की शाखा के आयोजन करने वाले 'प्रमुख' बुलाए जाते हैं और आप की तिरंगा शाखा से सदस्य भी प्रमुख ही बुलाए जाएँगे। संघ की शाखा एक प्रार्थना से शुरू होती है तो तिरंगा शाखा संविधान की प्रस्तावना पढ़ कर होगी। यानी कुल मिलाकर गांव, कस्बों व शहरों के मैदानों में आरएसएस की शाखा की तरह ही आप की तिरंगा शाखा लगेगी। तो सवाल है कि जब आरएसएस की शाखा का मॉडल ही आम आदमी पार्टी की शाखा का होगा तो वह उससे या बीजेपी से लड़ेगी और जीतेगी कैसे?
क्या यह सवाल आम आदमी पार्टी के कर्ता-धर्ताओं के दिमाग में नहीं आया होगा, जब वह इसकी रणनीति बना रहे होंगे? जाहिर सी बात है कि इस पर उन्होंने ज़रूर कुछ न कुछ सोचा होगा, कुछ अलग होगा तभी इनकी पहचान अलग होगी और उनसे वह लड़ाई लड़ पाएँगे। आप की तिरंगा शाखा कैसे अलग होगी, इसका जवाब आप नेताओं के बयानों से भी मिलता है।
आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा है, 'मैं 1 जुलाई को लखनऊ में इस तरह की पहली तिरंगा शाखा का शुभारंभ करूंगा। हमारी शाखाएँ हर लिंग, हर समुदाय, हर जाति के लिए खुली रहेंगी। हाई स्कूल के बच्चे भी भाग ले सकते हैं।'
आरएसएस के 'हिंदुत्व' के जवाब में आप का 'राष्ट्रवाद'
आप नेताओं के बयानों से भी संकेत मिलते हैं कि उनका विचार 'असली राष्ट्रवाद' के इर्द-गिर्द केंद्रित पार्टी के अभियानों के बड़े कैनवास में भी फिट बैठता है। बता दें कि तिरंगा यात्रा से लेकर दिल्ली भर में हाई-मास्ट वाले तिरंगे लगाने तक और स्कूलों में देशभक्ति पाठ्यक्रम की शुरुआत तक के इसके अभियान इसकी 'राष्ट्रवाद' की छवि गढ़ते हैं।
आम आदमी पार्टी पंजाब में जब अपना आधार मज़बूत करने में जुटी थी तो वहाँ भी उसने उसी 'राष्ट्रवाद' पर जोर दिया। चुनाव में उसने शानदार प्रदर्शन किया और वह सत्ता में आई। इसी थीम पर वह दूसरे राज्यों में चुनाव में उतरने की तैयारी में है।
आरएसएस की शाखा सांस्कृतिक और धार्मिक राष्ट्रवाद की बात करती है। वहाँ भगवा झंडे का बोलबाला रहता है। संघ के विरोधी तर्क देते हैं कि शाखा में राष्ट्र ध्वज से ज़्यादा भगवा झंडे को तवज्जो दिया जाता है। प्रार्थना से शुरुआत होती है, न कि संविधान की प्रस्तावना से। शाखा में महिलाएँ नहीं जाती हैं। यहाँ परंपराओं व सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक मुद्दों पर ज़्यादा चर्चा होती है।
आम आदमी पार्टी की योजना है कि बैठकें करने के लिए वह 10 हज़ार तिरंगा शाखा प्रमुख नियुक्त करेगी। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार आप प्रवक्ता वैभव माहेश्वरी ने कहा है कि 'आप आरएसएस के नफरत के एजेंडे से प्रदूषित वातावरण को डिटॉक्सीफाई करेगी। लोग आप और आरएसएस की शाखाओं के बीच तुलना करेंगे।'
आम आदमी पार्टी का कहना है कि उसकी योजना आखिरकार ब्लॉक स्तर तक तिरंगा शाखाओं को शुरू करने की है, लेकिन इनकी शुरुआत शहरी क्षेत्रों में वार्डों से होगी। उसका कहना है कि आप की योजना इस साल के अंत में होने वाले निकाय चुनावों के माध्यम से यूपी में बढ़त बनाने की है। उसका कहना है कि पार्टी चुनाव के लिए प्रति 30 घरों में एक मोहल्ला प्रभारी नियुक्त करेगी।
तो सवाल है कि क्या आम आदमी पार्टी भी आरएसएस यानी संघ की तर्ज पर चल पड़ी है? क्या उसे भी आरएसएस की तरह माना जाए? कुछ ऐसे सवालों पर आरएसएस के पदाधिकारी कहते हैं कि शाखा में हर रोज़ लोगों को जुटाने के लिए समर्पण की ज़रूरत होती है। अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, आरएसएस के पूर्वी क्षेत्र प्रचार प्रमुख नरेंद्र सिंह ने कहा कि आप को जल्द ही अपने विचार की मूर्खता का एहसास होगा। उन्होंने कहा, 'दूसरों ने भी अतीत में शाखाएँ लगाने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे। आरएसएस का एक बड़ा और मज़बूत नेटवर्क है और समाज और लोगों के लिए शाखाओं का आयोजन करता है। आप वोटर बनाने के लिए ही शाखाओं का आयोजन करेगी।'
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