उन्नाव रेप पीड़िता को कहीं से भी न्याय मिलता दिख रहा है क्या? एफ़आईआर दर्ज कराई गई है कि पीड़िता की हर हरकत की ख़बर उसकी सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों द्वारा आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को पहुँचाई जाती थी। ऐसा क्यों? रिपोर्टें हैं कि जिस ट्रक ने पीड़िता वाली कार को टक्कर मारी उस ट्रक के नंबर प्लेट पर कालिख पुती है। जब कार से पीड़िता जा रही थी तो उसके साथ सुरक्षा कर्मी भी नहीं थे। इन सबका क्या मतलब है? इस मामले की शुरुआत से लेकर अब तक की स्थिति को देखने पर लगता है कि ऐसा केस शायद ही कभी सामने आया हो। 17 साल की उम्र में रेप। आरोपी के ख़िलाफ़ रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की जा रही थी। फिर उनके पिता की जमकर पिटाई और गिरफ़्तारी भी। हिरासत में ही मौत। पीड़िता और उसकी माँ द्वारा आत्मदाह की कोशिश। हाई कोर्ट की फटकार के बाद ही आरोपी सेंगर की गिरफ़्तारी। और अब जेल में बंद अपने चाचा से मिलने जा रही पीड़िता की कार के साथ हादसा। इसमें उसकी चाची और मौसी की मौत हो गई। वकील घायल। ख़ुद ज़िंदगी और मौत से जंग लड़ रही है। पीड़िता कहाँ-कहाँ लड़े। दुष्कर्म से मिले ‘घाव’ से या इस पूरे सिस्टम से?
अपना सब कुछ खो देने वाली पीड़िता के साथ रायबरेली में रविवार को दुर्घटना हो गई थी। उसकी कार तेज़ रफ्तार ट्रक से टकरा गई थी। पीड़िता के परिवार ने विधायक की ओर इशारा करते हुए आरोप लगाया कि कार दुर्घटना पीड़िता को मारने की साज़िश थी। बता दें कि पीड़िता ने आरोप लगाया था कि उन्नाव के बांगरमऊ से विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने उसके साथ जून, 2017 में अपने आवास पर बलात्कार किया था। पीड़िता ने कहा था कि तब वह अपने एक रिश्तेदार के साथ नौकरी माँगने के लिए विधायक के पास गई थी। उसके बाद से उसकी हालत बद से बदतर होती गई।
पुलिस से भी पीड़िता को न्याय पाने में सहयोग नहीं मिल रहा, बल्कि उसकी परेशानी और बढ़ गई है। पीड़िता के चाचा की शिकायत के बाद दर्ज की गई एफ़आईआर में आरोप लगाया गया है कि पीड़िता की हर हरकत के बारे में उसकी सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों ने ही कुलदीप सेंगर और उसके सहयोगियों को जानकारी दी थी। बता दें कि ‘हादसे’ के दौरान कोई भी सुरक्षाकर्मी पीड़िता के साथ नहीं था। हालाँकि ‘एनडीटीवी’ से बातचीत में गनर सुरेश ने दावा किया कि ‘कार में जगह नहीं होने’ के कारण सुरक्षाकर्मियों को साथ नहीं जाने को कहा गया था।
पीड़िता को ‘आतंकित’ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी: कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तो आरोपियों को बचाने के लिए पिछले साल उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस की खिंचाई की थी। 14 अप्रैल 2018 को जस्टिस सुनीत कुमार के साथ चीफ़ जस्टिस दिलीप भोसले ने कहा था कि भले ही बीजेपी विधायक पर कड़े यौन अपराध क़ानून के तहत आरोप लगाए गए हों, लेकिन मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है, क्योंकि ‘क़ानून और व्यवस्था और राज्य की मशीनरी सीधे लीग में और कुलदीप सिंह के प्रभाव में है।’
पीड़िता के पिता की मौत का संज्ञान लेते हुए अदालत ने कहा था कि आरोपी व्यक्तियों ने पीड़िता को ‘आतंकित’ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पीठ ने अपने आदेश में कहा था, ‘यह एक क्लासिक मामला है, जहाँ हम पाते हैं कि आरोपी व्यक्तियों ने न केवल पीड़िता बल्कि उसके परिवार के सदस्यों और अन्य गवाहों को आतंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पीड़िता ने अपने पिता को केवल इसलिए खो दिया है क्योंकि अगस्त 2017 में की गई उसकी शिकायत का संज्ञान नहीं लिया गया था। यदि पुलिस ने शिकायत से मुख्यमंत्री को अवगत कराया होता और उस स्तर पर संबंधित पुलिस स्टेशन को भेज दिया होता तो शायद अभियोजक के पिता की मौत जैसा नुक़सान नहीं हुआ होता।’ कई और लापरवाहियों के लिए भी कोर्ट ने फटकार लगाई थी। हालाँकि कोर्ट की इस सख्ती के बाद आरोपी विधायक को गिरफ़्तार किया गया और फ़िलहाल वह जेल में बंद हैं।
परिवार पर दबाव शुरू से ही
पीड़िता के परिवार ने आरोप लगाया था कि बलात्कार मामले में विधायक और उनके साथियों ने पुलिस में शिक़ायत नहीं करने के लिए उन पर दबाव बनाया था। परिवार ने कहा था कि विधायक के भाई अतुल सिंह सेंगर व उसके साथियों ने उसके पिता के साथ मारपीट की थी और इसके बाद पुलिस हिरासत में पीड़िता के पिता की मौत हो गई थी। मौत से पहले पीड़िता के पिता का वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें उन्होंने विधायक के भाई और समर्थकों पर उन्हें पीटे जाने का आरोप लगाया था।
पुलिस के रवैये से परेशान होकर पीड़िता ने अपनी माँ के साथ मुख्यमंत्री आवास के बाहर मिट्टी का तेल डालकर आत्मदाह करने का भी प्रयास किया था।
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