सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आदेश दिया है कि नोएडा में सुपरटेक के 40 मंजिलों के दो टावर को गिरा दिया जाए। फ़्लैट बनाने का काम करने वाली सुपरटेक ने इन दोनों टावर में 900 से ज़्यादा फ़्लैट बनाए थे। अदालत ने यह फ़ैसला निर्माण से संबंधित क़ानूनों के उल्लंघन पर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि टावरों को गिराने का काम तीन महीने के अंदर हो जाना चाहिए और इसमें आने वाला ख़र्च भी सुपरटेक ही उठाएगा।
ये टावर्स एपेक्स और सेयेन नाम से थे। इनमें 915 फ़्लैट थे और 21 दुकानें थीं। इनमें से 633 फ़्लैट बुक हो गए थे।
अप्रैल, 2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी इन दोनों टावर्स को गिराने का और फ़्लैट बायर्स को उनका पैसा लौटाने का आदेश दिया था। इस तरह से शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फ़ैसले को ही बरकरार रखा है। ये दोनों टावर्स एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के तहत बनाए गए थे।
फ़्लैट बायर्स को लौटाएं पैसा
जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ और जस्टिस एम.आर. शाह की बेंच ने इन टावर्स के निर्माण को अवैध बताया। बेंच ने कहा कि ऐसा नोएडा अथॉरिटी और बिल्डर्स के बीच बने नापाक गठबंधन की वजह से हुआ। अदालत ने यह भी कहा कि जिन लोगों ने इन प्रोजेक्ट्स में मकान ख़रीदे थे, उन्हें दो महीने के अंदर उनका पैसा 12 फ़ीसदी ब्याज के साथ लौटा दिया जाए।
नोएडा अथॉरिटी को फटकार
अदालत ने पिछली सुनवाई में नोएडा अथॉरिटी को फटकार लगाई थी क्योंकि अथॉरिटी की ओर से स्वीकृत योजना की कॉपी नहीं दी गई थी। सुपरटेक से फ़्लैट ख़रीदने वाले लोगों ने इसे देने का अनुरोध किया था। अदालत ने नोएडा अथॉरिटी से कहा था कि आपकी आंख और नाक के नीचे भ्रष्टाचार हो रहा है और यह ताक़त का दुरुपयोग है।
अदालत ने कहा कि नोएडा अथॉरिटी इस बात का भी जवाब दे कि उसने इस ग्रीन एरिया में इतने बड़े निर्माण कार्यों की अनुमति कैसे दे दी।
बेंच ने कहा कि रेजिंडेट्स वेलफेयर एसोसिएशन को भी 2 करोड़ रुपये दिए जाने चाहिए क्योंकि इससे जुड़े लोग अदालती सुनवाई के दौरान बेहद परेशान रहे हैं। अदालत ने 4 अगस्त को इस मामले में फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। तब अदालत ने कहा था कि सुपरेटक ने पूरी तरह ग़लत काम किया है।
फ़्लैट ख़रीदने वाले लोगों की होमबायर्स एसोसिएशन ने अदालत से कहा था कि सुपरेटक के द्वारा बनाए गए ये विशालकाय टावर्स फ़्लैट की बुकिंग करते वक़्त जो प्लान उन्हें दिखाया गया था, उसका हिस्सा नहीं थे।
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