उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले राजभर वोटों को लेकर सियासत जोरों पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को महाराजा सुहेलदेव की जयंती के मौक़े पर उनकी प्रतिमा की आधारशिला रखी है। राजभर समुदाय के लोग महाराजा सुहेलदेव को अपना राजा मानते हैं। पूर्वांचल की 40 सीटों पर राजभर वोटों का दबदबा है, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी की कोशिश पिछड़ों की इस जाति को लुभाने की है।
बीजेपी की ग़ैर यादव राजनीति
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जब बीजेपी ने अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया था तो शाह ने ग़ैर यादव व ग़ैर जाटव जातियों को बीजेपी से जोड़ने पर काम किया था। 2014 के बाद से पार्टी को उत्तर प्रदेश में लगातार इस रणनीति का राजनीतिक फ़ायदा मिलता रहा है।
बीजेपी इसी रणनीति के तहत ग़ैर यादव व सियासी रूप से असरदार पिछड़ी जातियों को पार्टी से जोड़ने के अभियान में जुटी है। पार्टी ने कुर्मी समाज से आने वाले स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर इसे साफ भी किया था। इसके अलावा जाट-गुर्जर और पटेलों के बीच उसने अपनी पहुंच बढ़ाई है और राजभर समुदाय से अनिल राजभर को आगे बढ़ाया है।
सुभासपा से है लड़ाई
राजभर वोटों को लेकर बीजेपी की लड़ाई सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) से है। सुभासपा के मुखिया ओम प्रकाश राजभर हैं। ओम प्रकाश राजभर अपनी बुलंद आवाज़ और अलग तेवरों के लिए जाने जाते हैं। 2017 में योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनने वाले ओम प्रकाश राजभर आए दिन सरकार से भिड़ते रहे और बाद में वह सरकार से बाहर भी निकल गए।
राजभर चाहते हैं कि पिछड़ों के 27 प्रतिशत आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटा जाए। राजभर का कहना है कि कुछ पिछड़ी जातियों को पिछड़ों के आरक्षण का सही हक़ नहीं मिल पाया और ये हमेशा वंचित ही रहीं।
भागीदारी संकल्प मोर्चा
ओमप्रकाश राजभर अति पिछड़ों के साथ ही दलितों-मुसलमानों का गठजोड़ बनाकर उत्तर प्रदेश के सियासी समर में उतरना चाहते हैं। उन्होंने कई छोटे दलों को मिलाकर भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया है और इसमें वह असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, चंद्रशेखर रावण की आज़ाद समाज पार्टी को शामिल कर चुके हैं और आम आदमी पार्टी और शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) को शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
अति पिछड़ों को जोड़ने में जुटे
यूपी में पिछड़ों की आबादी 50 फ़ीसदी है। ओमप्रकाश राजभर की नजर इस आबादी में यादवों को छोड़कर अति पिछड़ी जातियों को सुभासपा से जोड़ने पर है। राजभर इन दिनों पूर्वांचल के इलाक़े में बिंद, धीमर, निषाद, मल्लाह, कश्यप, कुम्हार, राजभर, प्रजापति, मांझी, पाल, कुशवाहा आदि अति पिछड़ी जातियों के वोटों को जोड़ने के काम में जुटे हैं।
राजपूत समुदाय की नाराज़गी
यहां पर इसका जिक्र करना होगा कि राजपूत समुदाय की ओर से बीजेपी द्वारा महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा के शिलान्यास का विरोध किया गया है। राजपूत समुदाय का कहना है कि महाराजा सुहेलदेव उसके समाज के हैं और बीजेपी उन्हें राजभरों का बता रही है। इस समुदाय ने कुछ दिन पहले ट्विटर पर #राजपूत_विरोधी_भाजपा और #महाराजा_सुहेलदेव_बैंस ट्रेंड कराया था।
A county without Culture and Heritage is nothing! There was no need of changing the surname of Rajput Samrat Suheldev Bais ji.#राजपूत_विरोधी_भाजपा pic.twitter.com/ZB5OyENHpn
— Anshika Singh (@AnshikaSinghTSV) February 14, 2021
यह पूरी कोशिश राजभर समुदाय को रिझाने के लिए थी। लेकिन ओम प्रकाश राजभर के अलग होने के बाद पार्टी को इस समुदाय के किसी नेता की ज़रूरत थी और इन दिनों अनिल राजभर अपने समुदाय को बीजेपी से जोड़ने के अभियान में जुटे हैं।
कौन हैं महाराजा सुहेलदेव
महाराजा सुहेलदेव के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने 11वीं शताब्दी की शुरुआत में बहराइच में ग़ज़नवी सेनापति सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी को पराजित कर उसे मार डाला था। 17वीं शताब्दी के फारसी भाषा के मिरात-ए-मसूदी में उनका उल्लेख है। कहा जाता है कि श्रावस्ती, बहराइच आदि इलाक़ों में महाराजा सुहेलदेव का शासन था।
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