क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अमेठी में चुनाव हार रहे हैं? इस लोकसभा चुनाव का यह सबसे कठिन सवाल है और इसके बहुत सारे संभावित उत्तर फिजां में हैं। चुनाव के दौरान ही एकाएक केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ने के राहुल गाँधी के फ़ैसले ने इस कौतूहल को और बल दिया। मेरे अमेठी पहुँचने पर इसका सीधा उत्तर तो नहीं मिला पर प्रश्न और बड़ा हो गया। विश्लेषण के लिये यह एक बेहद कठिन सीट है।
अमेठी लोकसभा क्षेत्र की उत्तरी सीमा फ़ैज़ाबाद-रायबरेली रोड पर हलियापुर बाज़ार से शुरू हो जाती है। यहाँ के संगम ढाबे के मालिक भीम सिंह ने पिछली बार राहुल गाँधी को वोट दिया था क्योंकि तब वे इमिरिती ईरानी (स्मृति ईरानी) को जानते नहीं थे लेकिन इस बार वह ईरानी के साथ हैं। भीम सिंह कहते हैं, ‘कुल पवस्तवा ओनहीं क वोट डारी’ (सारा क्षेत्र उन्हीं को वोट डाल रहा है)। भीम सिंह ने “पेवर” दूध (प्योर दूध) की चाय सर्व करवाते हुए अपने तर्क पर वजन बढ़ाया।
सुकुल बाज़ार बाराबंकी जिले को छूता हुआ अमेठी लोकसभा का एक और छोर है। यहाँ ताश खेलते युवाओं (सभी ब्राह्मण) का समवेत हुंकारा था स्मिति ईरानी (स्मृति ईरानी)! तिलोई में राजनैतिक कुटिलता की चाशनी में पगी कहानियाँ थीं। तिलोई रायबरेली जिले में पड़ने वाली एक विधानसभा है जो अमेठी लोकसभा सीट में शामिल है। यहाँ के बीजेपी विधायक मयंकेश्वर शरण सिंह जो स्थानीय जनस्वीकृति के तौर पर तिलोई रियासत के “राजा” हैं, नाराज़ चल रहे बताये गये। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें योगी सरकार में मंत्री पद नहीं मिला है लेकिन इससे शायद ही फ़र्क़ पड़े क्योंकि तिलोई बाज़ार में लोगों की राय में फूलछाप का ज़ोर मिला। सिर्फ़ ‘छोटजतिये औ मुसुरमान कॉंग्रेस क देइहें’, यह ‘सीक्रेट’ हमें भूजा का ठेला लगाने वाले रामजतन ने बताया।
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बीजेपी की यहाँ क्या स्थिति है, इसे हम आपको आँकड़ों से समझाते हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी थे प्रदीप कुमार सिंह थौरी, जिन्हें कुल 37,570 वोट मिले थे और राहुल गाँधी को मिले थे 4,64,195 वोट। तब बीजेपी की जमानत ज़ब्त हो गई थी। बीएसपी के आशीष शुक्ला रनर अप थे जिन्हे 93,997 वोट मिले थे।
अब 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों पर बात करते हैं। तब राहुल गाँधी को मिले थे 4,08,651 वोट लेकिन मुक़ाबला हुआ 2009 में अपनी जमानत ज़ब्त कराने वाली पार्टी बीजेपी से, जिसकी प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने जन समर्थन का क़रीब दस गुना आकार बढ़ाकर 3,00,748 वोट हासिल किये थे और राहुल गाँधी समेत तमाम चुनाव विश्लेषकों को झकझोर दिया था।
2014 में चुनाव लड़े आम आदमी पार्टी के डॉ. कुमार विश्वास मीडिया सनसनी के बावजूद कुल 25,527 वोट पाकर बैरंग लौट गए थे। बीएसपी के डीपी सिंह दुपहरिया में प्रचार के दौरान घर में सोते-सोते भी 57,716 मत पा गये थे।
इसके बाद स्मृति ईरानी और बीजेपी ने बीते 5 सालों में अमेठी को जीतने का लक्ष्य बनाकर संगठन को मजबूत किया। 5 सालों में क़रीब सैंतीस बार स्मृति ईरानी यहाँ दौरा करने पहुँचीं। कम्बल, साड़ी, स्लिपर, गैस, रिहायशी घर आदि बँटवाने के अभियानों को नेतृत्व दिया और ऐसा उलटफेर हुआ कि 2017 में बीजेपी को यहाँ अमेठी लोकसभा क्षेत्र की 5 विधानसभाओं में से 4 पर जीत हासिल हुई, पाँचवी सीट पर सपा को जीत मिली और कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया था। अमेठी विधानसभा में तो कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी।
इस बार लू से सनसनाते अमेठी के खेतों में मुक़ाबला सीधे आमने-सामने है। पचास हज़ार से एक लाख वोट के बीच हर चुनाव में टहलने वाली बीएसपी मैदान में नहीं है। सपा ने हर बार की तरह राहुल गाँधी के लिये यह सीट छोड़ दी है। गौरीगंज विधानसभा से उसके विधायक राकेश प्रताप सिंह राहुल के साथ हैं। लेकिन बाक़ी 4 विधानसभा सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं और बीते 4 सालों में बीजेपी का बूथवार संगठन लगातार क़दमताल कर रहा है।
अमेठी में जहाँ कांग्रेस ने तमाम सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े-बड़े उपक्रम लगवाए हैं जिनमें एचएएल, बीएचएएल और प्राइवेट उद्यम जैसे इंडो गल्फ़, मालविका स्टील/सम्राट बायसिकिल (चल नहीं रही) शामिल हैं लेकिन यहाँ सवाल दूसरा है! लोग पूछ रहे हैं कि 5 साल का एमपी लैड (सांसद निधि) कहाँ ख़र्च हुआ? स्मृति ईरानी ने यह मुद्दा अमेठी को पहना दिया है कि बीते 5 सालों की सांसद निधि राहुल गाँधी ने इस्तेमाल तक नहीं की और यह वापस लौट गई।
अमेठी से कुछ पहले मुसाफ़िरखाना बाज़ार में मिले हौंसिला यादव जो शिवपाल यादव वाली प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के बड़े नेता हैं, उनका दावा था, “बीजेपी सिर्फ़ ठाकुर-बाभन (ब्राह्मण) की पार्टी है, बैकवर्ड और दलित सब कांग्रेस को जा रहा है’’।
गौरीगंज से कांग्रेस के वरिष्ठ स्थानीय नेता हनुमंत सिंह बहुत आश्वस्त थे और बोले कि राहुल तीन लाख वोटों से जीतेंगे, लिख के रख लीजिये। इनके विश्वास का आधार क़रीब 22 प्रतिशत मुसलिम मतदाताओं का एकमुश्त समर्थन और सभी समुदायों, जातियों में कांग्रेस का परंपरागत गाँधी परिवार के लिये मौजूद समर्थन है लेकिन गौरीगंज, मऊ, अमेठी, तिलोई और सलोन के बाज़ारों में पसरी चाय और मिठाई की दुकानों में दिन बिताते हुए और पंचायती जमावड़ों में हमें इस आशा की प्रतिध्वनि नहीं मिली। बल्कि सभी जगह बीजेपी के पक्ष में ज़्यादा स्वर उभरे। कांग्रेस भी मिली पर एक हिचकोले खाते आशावादी तर्क के साथ कि ‘आख़िर में जितिहैं रहुलई’( आख़िर में राहुल ही जीतेंगे)।
इस भ्रमण कार्यक्रम का क्लाइमेक्स मिला सलोन इलाक़े में। वहाँ के स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि यहाँ तो यादवों के गाँव के गाँव बीजेपी में जा रहे हैं। उनकी सूचना पर शक था, सो हम ख़ुद क़रीब के एक ऐसे गाँव में पहुँचे और यह जानकर सचमुच ताज्जुब हुआ कि वे (स्थानीय पत्रकार) सच कह रहे थे! लौटते समय पासियों के एक टोले में भी हमें वही स्वर मिले।
अमेठी में 6 मई को वोट डाले जाने हैं और इस ख़बर में इससे ज़्यादा विवरण देना इस या उस प्रत्याशी का पक्ष या विरोध का कारण बन सकता है। पाठकों तक अमेठी के चुनावी माहौल का रंग इन शब्दों से पहुँच ही जायेगा। बाक़ी, परिणाम जनता जनार्दन के हाथ में है।
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