प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े ही धूमधाम और भव्यता से जेवर में जिस नोयडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का शिलान्यास गुरुवार को किया है, पहली ईंट रखे जान के पहले ही उस पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि इस हवाई अड्डे की ज़रूरत आर्थिक कम और राजनीतिक ज़्यादा है।
यह विडंबना ही है कि जेवर स्थित इस हवाई अड्डे की कामयाबी इस पर निर्भर करेगी कि दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का कारोबार किस तेज़ी से बढता है।
प्रबंध सलाह कंपनी प्राइसवाटरहाउस कूपर्स यानी पीडब्लूसी ने नोएडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की फीजिबिलिटी व टेक्निकल रिपोर्ट तैयार की है। इसका मतलब यह कि यह हवाई अड्डा तकनीकी रूप से कैसे बनाया जाएगा और आर्थिक रूप से कितना सफल होगा।
पीडब्लूसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जेवर स्थित यह हवाई अड्डा फीजिबल है यानी आर्थिक रूप से फ़ायदेमंद हैं, और बैंकेबल भी, यानी इस पर बैंक पैसे लगा सकते हैं और कर्ज़ वगैरह दे सकते हैं।
यह निश्चित तौर पर अच्छी बात है।
इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर यात्रियों का जो स्पिल ओवर होगा वह नोएडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को मिलेगा। आसान शब्दों में कहा जाए तो जो दिल्ली स्थित इस हवाई अड्डे पर जब बहुत अधिक यात्री हो जाएंगे तो वे जेवर हवाई अड्डे का इस्तेमाल करेंगे।
पैसेंजर स्पिल ओवर
अब सवाल यह है कि इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर यात्रियों का स्पिल ओवर कब और कितना होगा। प्राइसवाटरहाउस कूपर्स के अध्ययन के मुताबिक, साल 2028-29 में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर स्पिल ओवर होने लगेगा, यानी इतने यात्री हो जाएंगे कि वे वहां से उड़ान नहीं भर पाएंगे और जेवर की ओर रुख करेंगे।
यह स्पिल ओवर पीक आवर में बढ़ता जाएगा और यह जैसे-जैसे बढ़ता जाएगा, जेवर हवाई अड्डे को मुसाफिर मिलते जाएंगे।
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सर्वे
पीडब्लूसी का कहना है कि उसने इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 6,700 यात्रियों का रैंडम सर्वे किया। इसने रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली हवाई अड्डे का इस्तेमाल करने वालों में उत्तर प्रदेश के ज़िलों के लगभग 11-12 प्रतिशत यात्री होते हैं।
इनमें से कितने मुसाफ़िर जेवर हवाई अड्डे का प्रयोग करेंगे, यह इस पर निर्भर करेगा कि प्रस्तावित हवाई अड्डे से यूपी के आसपास के ज़िलों तक पहुँचने का साधन क्या होगा, उन्हें वहाँ पहुँचने में कितना समय लगेगा, कितनी दूरी तय करनी होगी और हवाई अड्डे की सेवा कैस होगी।
मुसाफ़िरों की इस बढ़ी हुई संख्या में से जो स्पिल ओवर होगा, वह जेवर का रुख करेगा। यह ट्रेंड 2028-29 से तेजी से बढ़ेगा। यानी 2028-29 से ही जेवर को अधिक मुसाफिर मिलने लगेंगे, बर्शते उन्हें वहाँ तक पहुँचने के लिए आसान व तेज साधन मिल जाए।
पीडब्लूसी रिपोर्ट
रिपोर्ट में कहा गया है कि सराय काले खां को शिवाजी स्टेडियम तक रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम और धौला कुआँ व ग्रेटर नोयडा को जेवर हवाई अड्डे तक इसी तरह की परिवहन व्यवस्था से जोड़ना होगा।
रिपोर्ट में इसकी तारीफ की गई है कि पलवल व अलीगढ़ को जोड़ने वाला राजमार्ग जेवर के नजदीक है। इसी तरह यमुना एक्सप्रेसवे और आगरा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे होने की वजह से जेवर तक पहुँचना मुश्किल नहीं होगा। जेवर के पास अंतिम कुछ दूरी के लिए कुछ सुविधाएं विकसित करनी होंगी और यह काम आसानी से किया जा सकता है।
नोएडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा कामयाब नहीं होगा, यह नहीं कहा जा सकता है। पर इसकी कामयाबी इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पैसेंजर स्पिल ओवर पर निर्भर करेगी। यह भी मान लिया जाए कि 2028-29 के बाद पैसेंजर स्पिल ओवर भी होगा। पर उस समय तक क्या होगा, यह सवाल तो उठता है।
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