नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ देश भर में जारी विरोध-प्रदर्शनों के बीच दिल्ली के शाहीन बाग़ में चल रहा महिलाओं का आंदोलन तेज़ होता जा रहा है। आंदोलनकारी महिलाओं ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर सरकार नागरिकता क़ानून पर एक इंच पीछे नहीं हटेगी तो वे भी आधा इंच पीछे नहीं हटेंगी। उन्होंने कहा है कि नागरिकता क़ानून, एनआरसी को तुरंत वापस लिया जाए। शाहीन बाग़ की ही तर्ज पर देश भर में कई जगह महिलाएं सड़कों पर उतर गई हैं। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के बाद लखनऊ में भी जब महिलाओं ने इस क़ानून के विरोध में धरने पर बैठने की कोशिश की तो महिलाओं का आरोप है कि पुलिस ने उनसे कंबल छीन लिये।
नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में शुक्रवार शाम से ही लखनऊ के क्लॉक टावर के नीचे महिलाएं धरना दे रही थीं। लेकिन शनिवार शाम को पुलिस आई और उन्हें धरना देने से रोक दिया। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दिख रहा है कि पुलिस महिलाओं के कंबल ले जा रही है। आंदोलनकारी महिलाओं ने आरोप लगाया है कि पुलिस उनका खाना भी ले गयी। हालाँकि लखनऊ पुलिस ने कहा है कि कंबलों को प्रक्रिया के तहत ही जब्त किया गया है और लोग इस बारे में अफ़वाह न फैलाएं।
वायरल वीडियो में पुलिस कर्मी धरने पर बैठने के लिए लाई गईं दरियों को भी अपने साथ ले जाते दिख रहे हैं। इसके बाद भी महिलाएं वहीं डटी रहीं और उन्होंने पुलिस के ख़िलाफ़ और इस क़ानून के विरोध में जमकर नारेबाज़ी की।
लोकतांत्रिक विरोध भी बर्दाश्त नहीं?
पुलिस के इस रवैये के ख़िलाफ़ तमाम राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। सवाल यही खड़ा होता है कि क्या उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस को नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में लोकतांत्रिक ढंग से दिया जा रहा धरना भी बर्दाश्त नहीं है। धरना-प्रदर्शन तो लोकतंत्र में संवैधानिक अधिकार है लेकिन पुलिस की ज़्यादतियों को देखने के बाद ऐसा लग रहा है कि पुलिस इस क़ानून के विरोध में आवाज़ उठाने वाले हर शख़्स से ‘बदला’ लेने पर उतारू है क्योंकि इस क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने वाले हज़ारों लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज कर उन्हें जेलों में ठूंस दिया है।
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