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उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों पर भीड़ के लगातार बढ़ते हमलों ने राज्य की क़ानून व्यवस्था की पूरी पोल खोल दी है। हाल-फ़िलहाल ऐसी कई घटनाएँ हुईं, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से योगी सरकार इन मामलों पर पूरी तरह उदासीन है। यह हाल तब है, जब क़ानून व्यवस्था सुधारने और अपराधियों में दहशत फैलाने के नाम पर योगी सरकार ने एन्काउंटर राज चला रखा है। लेकिन न तो अपराधों में कोई कमी आई और न ही अराजक तत्वों को किसी बात का डर रह गया है।
योगी सरकार का मानना था कि एनकाउंटर होने से अपराधियों में ख़ौफ़ बढ़ेगा और वे अपराध का रास्ता छोड़ देंगे। यूपी के तमाम शहरों में सच्चे-झूठे एनकाउंटरों की बाढ़ आई हुई है। लेकिन आँकड़े बताते हैं कि बेतहाशा एनकाउंटरों के बावजूद यूपी में अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
इसी फरवरी में सरकार की ओर से बताया गया था कि योगी सरकार के सत्ता में आने के 10 महीने के अंदर पूरे राज्य में लगभग 1100 एनकाउंटर हुए, जिनमें 34 अपराधी मारे गए, 265 घायल हुए और करीब 2,700 अपराधियों को गिरफ़्तार किया गया। एनकाउंटर अभी तक उसी रफ़्तार से जारी हैं, हालाँकि उनका ताज़ा आँकड़ा उपलब्ध नहीं है।
अब ज़रा अपराधों के आँकड़े देखिए। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 2018 में महिलाओं, बच्चों से जुड़े अपराध तो बढ़े ही, अपहरण की भी काफ़ी घटनाएँ हुईं। साल 2018 में 16 मार्च से 30 जून तक यानी 107 दिनों में सिर्फ़ महिलाओं से जुड़े अपराधों की 76 हज़ार से ज़्यादा घटनाएँ हुईं, जबकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार 2016 में पूरे साल भर में ऐसी 49 हज़ार घटनाएँ ही हुई थीं।
2018 के इन्हीं 107 दिनों में यूपी में बलात्कार की 56 सौ घटनाएँ हुईं, जबकि 2016 के पूरे साल में में ऐसी कुल 4816 घटनाएँ हुई थीं। 2018 के इन तीन महीनों में पॉक्सो एक्ट के तहत सात हज़ार मामले दर्ज हुए, जबकि 2016 में ऐसी 48 सौ घटनाएँ हुई थीं। यानी आँकड़े बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में अपराधों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। लेकिन सरकार का पूरा ध्यान शायद गोरक्षा और जगहों के नाम बदलने पर ही केन्द्रित है।
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