सीबीआई ने बसपा की सुप्रीमो मायावती के उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते हुए 21 सरकारी चीनी मिलों की बिक्री में हुई कथित गड़बड़ियों की जाँच शुरू कर दी है।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की डूबती नाव को बचाने मैदान में उतरी प्रियंका गाँधी कम से कम बनारस में मोदी से दो-दो हाथ नहीं करेंगी। अगले दो-तीन दिनों में पार्टी इसका एलान भी कर देगी। तो क्या कांग्रेस डर गई?
यूपी के जातीय चक्रव्यूह में फँसी बीजेपी के लिए सहारा ग़ैर-यादव पिछड़े और ग़ैर-जाटव दलित नज़र आ रहे हैं। हालाँकि इस बिरादरी के चेहरे इस बार या तो नज़र नहीं आ रहे या उन्हें तवज्जो तक नहीं मिल रही।
क्या बरेली जेल में बंद माफ़िया सरगना अतीक अहमद पर बीजेपी की योगी सरकार फिर मेहरबान है? यदि ऐसा नहीं है तो चुनाव के बीच उसे अपने गृह क्षेत्र की जेल में क्यों भेजा जा रहा है?
साथी ठाकुर विधायक पर सरकारी बैठक में जूते की बौछार कर देने वाले संतकबीरनगर के सांसद शरद त्रिपाठी का टिकट बीजेपी ने काट दिया है। तो बीजेपी ने शरद त्रिपाठी के पिता रमापतिराम त्रिपाठी को टिकट क्यों दे दिया है?
यूपी में बीजेपी के सहयोगी रहे ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा ने अपनी राहें अलग कर ली हैं। बीते काफ़ी समय से राजभर अपने बयानों से बीजेपी को असहज करते रहे हैं।
ऐसा लगता है कि नेताओं में एक-दूसरे को गालियाँ देने, जाति, धर्म के नाम पर वोट माँगने की होड़ लगी हुई है। हैरानी की बात यह है कि ये नेता चुनाव आयोग से भी नहीं डर रहे हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सर पी. सी. बनर्जी छात्रावास में हुई गोलीबारी में छात्र रोहित शुक्ला उर्फ़ बेटू की हत्या हो गई है। लगता है विश्वविद्यालय राजनीति में एक बार फिर खूंरेजी शुरू हो गई है।
भले ही आज़म ने बयान परोक्ष रूप से जया प्रदा को लेकर दिया हो लेकिन इस सियासी लड़ाई के मुख्य किरदार किसी ज़माने में मुलायम सिंह के बेहद क़रीबी रहे और पूर्व सपा नेता अमर सिंह हैं।
सपा नेता आज़म ख़ान के एक बयान से ख़ासा विवाद हो गया है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में आज़म ने जया प्रदा का नाम लिए बिना उन पर टिप्पणी की है।