सियासत में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। कल तक बीजेपी के ख़िलाफ़ आग उगल रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर कोई बड़ा धमाका कर सकते हैं। राजभर ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से मुलाक़ात की है। इसके बाद जो बयान उन्होंने दिया है, वह इस ओर साफ इशारा करता है कि अति पिछड़ों की राजनीति करने वाले राजभर फिर से बीजेपी के साथ जा सकते हैं।
राजभर ने कहा है कि राजनीति में कुछ भी संभव है।
राजभर ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने की पूरी कोशिश की थी लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली थी।
हैरानी की बात यह है कि राजभर एसपी मुखिया अखिलेश यादव से भी मिल चुके हैं और चर्चा यहां तक थी कि अखिलेश उनके साथ गठबंधन कर सकते हैं लेकिन अगर राजभर एनडीए में वापस चले जाते हैं तो इससे बीजेपी को तो राहत मिलेगी ही सियासी समीकरण भी उलट-पुलट हो जाएंगे।
ओम प्रकाश राजभर अपनी बुलंद आवाज़ और अलग तेवरों के लिए जाने जाते हैं। 2017 में योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनने वाले ओम प्रकाश राजभर आए दिन सरकार से पिछड़ों के आरक्षण के बंटवारे को लेकर भिड़ते रहे और बाद में योगी सरकार से बाहर निकल गए।
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भागीदारी संकल्प मोर्चा
ओमप्रकाश राजभर पिछले दो साल से कई छोटे दलों को मिलाकर एक राजनीतिक गठबंधन बनाने की कोशिश में जुटे हुए थे। इसमें उन्हें सफलता भी मिली थी और उन्होंने भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया था। इसमें वह अब तक दस दलों को जोड़ चुके हैं। इसमें उनकी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अलावा पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी, कृष्णा पटेल का अपना दल, ओवैसी की एआईएमआईएम शामिल हैं। इसके अलावा वह आम आदमी पार्टी और शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) को भी इसमें शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
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ओवैसी का क्या होगा?
लेकिन राजभर पलटी मार जाएंगे तो क्या होगा। भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल दलों का क्या होगा। बीजेपी के ख़िलाफ़ जिन मुद्दों पर वे लगातार आग उगलते रहे हैं, उनका क्या होगा। और सबसे बड़ी बात उनके सहारे उत्तर प्रदेश के सियासी समर में उतरने जा रहे एआईएमआईएम प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी का क्या होगा। क्योंकि ओवैसी राजभर के साथ कई जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं।
राजभर ने कुछ दिन पहले कहा था कि प्रदेश में अगर भागीदारी संकल्प मोर्चा की सरकार बनी तो पांच साल में प्रदेश में पांच मुख्यमंत्री और हर साल चार उप मुख्यमंत्री यानी कि पांच साल में 20 उप मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे। उनके इस अनूठे फ़ॉर्मूले की ख़ूब चर्चा हुई थी।
मुसीबत में है बीजेपी
बीजेपी उत्तर प्रदेश में खासी मुश्किलों से घिरी हुई है। किसान आंदोलन सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है तो कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान बने बदतर हालातों को लेकर विपक्ष उस पर हमलावर है। उत्तर प्रदेश को लेकर बीजेपी और संघ जितने बड़े स्तर पर मंथन कर रहे हैं, उससे यही लगता है कि उनके पास यहां से अच्छा फ़ीडबैक नहीं पहुंचा है।
बीजेपी और संघ का पूरा जोर उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतने पर है और शायद इसीलिए सत्तारूढ़ पार्टी ने एक बार फिर ओम प्रकाश राजभर की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।
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