यूपी में बीजेपी सरकार कुछ ओबीसी उपजातियों के लिए कोटे के अंदर कोटे का जुगाड़ कर रही है। हाल ही में 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने के यूपी सरकार के तीन आदेशों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने असंवैधानिक बता कर रद्द कर दिया था। इन 18 ओबीसी जातियों को एससी सूची में डालने का काम अखिलेश यादव के कार्यकाल में दो बार और योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में एक बार किया गया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद योगी सरकार इस पर गहन मंथन कर रही है। अगर वो इन ओबीसी उपजातियों को विशेष आरक्षण नहीं दे पाई तो 2024 के चुनाव पर इसका असर पड़ेगा। टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार में सोमवार 5 सितंबर को प्रकाशित खबर में कहा गया है कि यूपी की बीजेपी सरकार अब कोटे के अंदर कोटे की व्यवस्था करके इन ओबीसी उपजातियों को एडजस्ट करने की कोशिश में जुटी हुई है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा, राज्य सरकार निश्चित रूप से इन उपजातियों को राहत देना चाहती है। केवट, मल्लाह, बिंद, निषाद और मांझी जैसी उप-जातियां मोटे तौर पर निषाद समुदाय के तहत आती हैं, जो वास्तव में, काफी समय से अनुसूचित जाति के दर्जे की मांग कर रही हैं। लेकिन जहां तक उक्त ओबीसी उप जातियों को एससी सूची में शामिल करने का सवाल है, तो इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत ही करना होगा। हालांकि ये बात अखबार को किस मंत्री ने बताई, इसका जिक्र खबर में नहीं है।
कोटे में कोटे का फॉर्म्युला क्या है
2018 में यूपी सरकार ने पिछड़े वर्गों के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक अध्ययन और नौकरियों में उनकी भागीदारी पर रिपोर्ट करने के लिए रिटायर्ड जज राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति का गठन किया था।समिति ने पिछड़े वर्गों के लिए 27 फीसदी आरक्षण को तीन भागों में बांटने की सिफारिश की थी। इसने पिछड़े के लिए 7 फीसदी, अधिक पिछड़े के लिए 11 फीसदी और अति पिछड़े के लिए 9 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी। यूपी में ओबीसी को अगर एक समूह मानें तो वो यूपी में सबसे बड़ा वोट बैंक है और प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 45 फीसदी है।
यूपी की जातिवादी राजनीतिः उपजातियों को एससी दर्जा देने का मामला लगभग 18 वर्षों से सरकार, राजनीतिक दलों और कोर्ट के बीच फुटबॉल बना हुआ है। समाजवादी पार्टी की सरकार ने 18 ओबीसी जातियों को एससी का दर्जा देने के लिए 21 और 22 दिसंबर 2016 को दो आदेश जारी किए। 2017 में यूपी विधानसभा के चुनाव होने वाले थे और सिर्फ चंद महीने पहले ये आदेश अखिलेश यादव की सरकार ने जारी किए थे। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा बुरी तरह हार गई। बीजेपी सत्ता में आ गई। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए। बीजेपी सरकार ने सपा सरकार के उन दोनों आदेशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
यूपी के सभी राजनीतिक दलों की राजनीति अब जाति आधारित हो गई है। 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव इसका गवाह रहा। हालांकि उससे पहले बाकी चुनावों में भी जाति हावी रही लेकिन पिछले चुनाव की यादें ज्यादातर लोगों के दिलोदिमाग में रहती हैं। इसलिए 2022 के यूपी चुनाव के जरिए राज्य में जातियों के चुनाव खेल को समझा जा सकता है।
निषाद समाज पार्टी का बीजेपी से 2017 में चुनावी गठबंधन था। पिछला पांच साल इस पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने बीजेपी के भरोसे पर गुजारा। अक्टूबर 2021 में जब बीजेपी ने दोबारा से यूपी चुनाव का दंगल शुरू किया तो उसे एहसास हो गया कि बीजेपी के हालात इतने अच्छे नहीं हैं। उसी दौरान हालात को भांपते हुए संजय निषाद ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रैली लखनऊ में कराई। वहां उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अगर निषाद, मछुआ, मझावर, केवट, मल्लाह को एससी का दर्जा नहीं मिला तो वो बीजेपी से गठबंधन तोड़ लेंगे। उधर, सपा का गठबंधन बीजेपी छोड़कर आए ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा से हो गया था। बीजेपी इससे दहली हुई थी। संजय निषाद ने इसके बाद दबाव बनाना शुरू किया। सीएम योगी ने फौरन केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इन जातियों को एससी सूची में शामिल करने का आग्रह किया।
निषाद समाज के नेता दिल्ली बुलाए गए। उनकी मुलाकात बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और यूपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान से कराई गई। बीजेपी ने यूपी में इसकी जमकर मार्केंटिंग की। फिर यूपी सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके निषाद, मल्लाह, मछुआ, मझावर, केवट को एससी का दर्जा दे दिया। अब हाईकोर्ट ने जब रास्ता रोक दिया है तो योगी सरकार इधर-उधर से जुगाड़ करके इन उपजातियों को खुश रखना चाहती है।
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