कुछ दिन पहले जब लोकसभा में नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर चर्चा हो रही थी तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के बारे में कहा था कि कांग्रेस ऐसी सेक्युलर पार्टी है जो केरल में मुसलिम लीग के साथ है और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ सरकार चला रही है। अब बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने इस गठबंधन को लेकर तंज कसा है।
राहुल गाँधी के इस बयान कि वह राहुल सावरकर नहीं है जो बीजेपी से माफ़ी माँग लेंगे, को लेकर देश भर में राजनीतिक पारा गर्म है। बीजेपी ने राहुल के ‘रेप इन इंडिया’ वाले बयान को मुद्दा बनाते हुए उनसे माफ़ी माँगने के लिए और चुनाव आयोग से उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने के लिए कहा था। लेकिन शिवसेना को राहुल का यह बयान बेहद नागवार गुजरा है और उसने कांग्रेस को नसीहत दी है कि शिवसेना महात्मा गाँधी, नेहरू का सम्मान करती है और कांग्रेस भी सावरकर का अपमान न करे।
मायावती ने सावरकर वाले विवाद को लेकर रविवार को एक के बाद एक तीन ट्वीट कर कांग्रेस को निशाने पर लिया। मायावती ने पहले ट्वीट में कहा, ‘शिवसेना अपने मूल एजेंडे पर अभी भी कायम है, इसलिए उन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून पर केंद्र सरकार का साथ दिया और अब सावरकर को भी लेकर इनको कांग्रेस का रवैया बर्दाश्त नहीं है।’ मायावती ने दूसरे ट्वीट में कहा कि लेकिन फिर भी कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना के साथ बनी हुई है तो यह सब कांग्रेस का दोहरा चरित्र नहीं है तो और क्या है?
निश्चित रूप से मायावती ने ये ट्वीट करके कांग्रेस पर दबाव बहुत ज़्यादा बढ़ा दिया है। लेकिन लगता है कि सावरकर को लेकर न तो कांग्रेस कभी अपने स्टैंड से पीछे हटेगी और न ही शिवसेना। कांग्रेस उन्हें अंग्रेजों से माफ़ी माँगने वाला और गद्दार बताती है तो शिवसेना क्रांतिकारी, वीर और देवता तुल्य।
अब ऐसे में सवाल यह है कि कांग्रेस और शिवसेना इस मुद्दे पर जनता को क्या जवाब देंगे क्योंकि दोनों से इस बारे में सवाल तो पूछे जाएंगे। महाराष्ट्र में सरकार कैसे चलेगी, यह भी एक बड़ा सवाल है। आज मायावती ने सवाल पूछा है तो कल बाक़ी दल भी सवाल पूछ सकते हैं कि कांग्रेस बताए कि वह शिवसेना के साथ सरकार में क्यों है, तब पार्टी क्या जवाब देगी? शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत स्पष्ट कह चुके हैं कि सावरकर को लेकर कोई समझौता नहीं होगा। फिर वही सवाल खड़ा होता है कि पाँच साल तक सरकार चलाने का दावा करने वाले ये दल 15 दिन में ही विचारधारा के टकराव को लेकर आमने-सामने आ जाएंगे तो ठाकरे सरकार का भविष्य बेहतर नहीं कहा जा सकता है। साथ ही शिवसेना के लिए हिंदुत्व की छवि और कांग्रेस के लिए सेक्युलर छवि को बचा पाना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन देखना होगा कि सावरकर को लेकर चल रहा यह विवाद कब ख़त्म होता है।
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