उत्तर प्रदेश में एक बार फिर लव जिहाद के मुद्दे को गर्म किया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों से कहा है कि वे लव जिहाद की घटनाओं को रोकने के लिए योजना बनाएं।
दक्षिणपंथी संगठनों ने कानपुर में शालिनी यादव और मोहम्मद फ़ैसल की शादी के बाद लव जिहाद के मर चुके मुद्दे को जिंदा करने की कोशिश की है। जबकि शालिनी ने कुछ दिन पहले एक वीडियो जारी कर कहा था कि उसने अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन किया है और फ़ैसल से निकाह और कोर्ट मैरिज के लिए उस पर किसी ने भी दबाव नहीं बनाया। लेकिन सोशल मीडिया पर हिंदूवादी संगठनों ने इसे लव जिहाद बताकर वायरल कर दिया और योगी सरकार को इस पर आगे बढ़ने का मौक़ा मिल गया।
लव जिहाद पर सरकार गंभीर
योगी सरकार ने गृह विभाग के अधिकारियों को इस काम में लगा दिया है। सरकार के प्रवक्ता मृत्युंजय कुमार ने कहा कि अधिकारियों से कहा गया है कि वे इस बात का भी आकलन करें कि क्या इसके लिए नया क़ानून बनाए जाने की ज़रूरत है। यूपी सरकार के गृह सचिव अवनीश अवस्थी ने कहा है कि लव जिहाद के मामलों को गंभीरता से लेना होगा और अभियुक्तों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करनी होगी।
लव जिहाद के मुद्दे को लेकर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने से पहले भी काफी मुखर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 2014 में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने लव जिहाद को ही मुद्दा बनाया था। बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को इस उपुचनाव के लिए स्टार प्रचारक बनाया था।
यूपी में फ़ेल हो चुका है लव जिहाद
सितंबर, 2014 के उपचुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ चुनावी रैलियों में कहते थे, ‘अब जोधाबाई अकबर के साथ नहीं जाएगी और सिकंदर अपनी बेटी चंद्रगुप्त मौर्य को देने के लिए मजबूर होगा।’ इस तरह के बयानों से योगी ने ध्रुवीकरण करने की पूरी कोशिश की थी लेकिन उपचुनाव में लव जिहाद का मुद्दा फ़ेल हो गया था और 11 सीटों में से 8 सीटें समाजवादी पार्टी को और बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं। और यह तब हुआ था जब इससे चार महीने पहले ही नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी को देश और उत्तर प्रदेश में बंपर जीत मिली थी।
लव जिहाद को लेकर हैरानी वाली बात यह है कि उपचुनाव में हार के बाद उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने एनडीटीवी के साथ एक टीवी डिबेट में कहा था कि यह पार्टी के एजेंडे में नहीं है।
डबल इंजन की सरकार
इसके पीछे एक ही कारण समझ आता है, वह यह कि शायद योगी आदित्यनाथ सरकार को अपने कामकाज पर भरोसा नहीं है। वह इसे लेकर मुतमईन नहीं है कि वह अपने काम के दम पर उत्तर प्रदेश का चुनाव जीत सकती है, जबकि वह विकास कार्य गिनाते नहीं थकती और दावा करती है कि डबल इंजन की सरकार के कारण उत्तर प्रदेश विकास की दौड़ में आगे निकल चुका है।
चुनाव में ध्रुवीकरण की कोशिश?
तो फिर इस लव जिहाद के मुद्दे की ज़रूरत तब क्यों पड़ गई है जब चुनाव सिर्फ डेढ़ साल दूर है। उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में हर विधानसभा सीट तक पहुंचने के लिए यह वक्त काफ़ी कम है। ऐसे में क्या राज्य सरकार और बीजेपी को कोई ऐसा मुद्दा चाहिए जिसके दम पर चुनाव में ध्रुवीकरण किया जा सके और आसानी से जीत हासिल हो, बीजेपी चाहे ना कहे लेकिन लगता तो ऐसा ही है।
उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी के कारण बेहद ख़राब हालात हैं। राज्य में क्वारेंटीन सेंटर्स की बदहाली, इस संकट के दौरान अधिकारियों की लूट-खसोट के आरोप ख़ुद बीजेपी के विधायकों ने लगाए हैं।
राज्य सरकार के दो मंत्रियों की कोरोना के कारण मौत हो चुकी है। इसके अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतत्रंदेव सिंह से लेकर चार और मंत्री कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। यानी इतने हाई-प्रोफ़ाइल लोग जो लखनऊ में शानदार सरकारी आवासों में बैठे हैं, वहां ये हालात हैं तो आप अंदाजा लगाइए कि उत्तर प्रदेश के गांव-कस्बों में स्थिति कितनी ख़तरनाक होगी।
लव जिहाद को बनाएंगे कवच?
24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में अभी तक सिर्फ 52 लाख टेस्ट हुए हैं। सख़्त लॉकडाउन के कारण हालात बदतर हैं, बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार हैं, काम-धंधे रफ़्तार नहीं पकड़ सके हैं, कई छोटे-मोटे उद्योग बंद हो चुके हैं, हत्या, अपहरण, बलात्कार की घटनाएं हर दिन सामने आ रही हैं लेकिन सरकार को इतने सारे मसलों पर फ़ेल होने के बाद हार से बचने का कवच सिर्फ लव जिहाद में नजर आ रहा है।
बीजेपी के सांसद, विधायक परेशान
इसके अलावा, बीजेपी के सांसद, विधायक लगातार सरकारी कामों में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर सरकार को चेताने की कोशिश कर रहे हैं। सांसद, विधायक सोशल मीडिया पर अपनी बेबसी का इजहार कर चुके हैं, उनकी आवाज़ को न सुने जाने की शिकायत कर चुके हैं लेकिन योगी सरकार उनकी बातों पर ध्यान देने के बजाय ये लव जिहाद जैसा मनगढ़ंत मुद्दा लेकर सामने आ गई है और वो ये भी जानती है कि पहले यह फ़ेल हो चुका है।
दो अलग-अलग धर्मों के लोग अगर शादी करते हैं और अगर कोई विवाद होता है तो उस मामले में पुलिस के पास जांच करने का पूरा अधिकार है। जो भी दोषी हो उसे सजा देने के लिए क़ानून और अदालत हैं। लेकिन जिस तरह शालिनी और फ़ैसल का मामला है, जिसमें दो बालिग लोगों ने रजामंदी से शादी की है और साथ रहना चाहते हैं, ऐसे मामलों को लव जिहाद बताकर बेवजह का एक मुद्दा खड़ा करने का क्या मतलब है। लेकिन यही लगता है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले ध्रुवीकरण का माहौल बनाने के लिए इस मुद्दे को हवा दी जा रही है।
अपनी राय बतायें