उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार हाथरस बलात्कार व हत्या मामले में दोषियों को सज़ा दिलाने के बजाय उन लोगों को निशाने पर ले रही है, जिन्होंने इस मुद्दे को लेकर उसकी आलोचना की है। इसके साथ ही वह अपने विरोधियों को भी इसी बहाने फँसाने की कोशिश भी कर रही है। यह ठीक वैसा ही हो रहा है जैसा सीएए-विरोधी आन्दोलन के समय उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर राजद्रोह व यूएपीए के मामले दर्ज कर दिए थे।
इसे इससे समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने हाथरस बलात्कार व हत्या मामले में 21 एफ़आईआर दर्ज कराई हैं। उसमें कहा गया है कि इन लोगों ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल कर 'जातीय व सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने' और 'राज्य सरकार को बदनाम करने की कोशिश' की है। इसके साथ ही राजद्रोह, आपराधिक साजिश रचने और वैमनस्य को बढ़ावा देने के आरोप भी लगाए गए हैं।
पुलिस की यह कार्रवाई मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान के एक दिन बाद ही हुई है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि कुछ लोग 'जातीय व सांप्रदायिक दंगे भड़काना चाहते हैं' और 'उनकी सरकार के ख़िलाफ़ साजिश रच रहे हैं।' उन्होंने यह भी कहा था कि ये वे लोग हैं, 'जो राज्य में हो रहे विकास को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।'
उत्तर प्रदेश पुलिस ने जो 21 एफआईआर दर्ज की हैं, उनमें से 6 हाथरस में दर्ज की गई हैं। इनमें से 4 चंदपा पुलिस थाने में दर्ज की हैं। एक एफ़आईआर सासनी और एक दूसरी हाथरस गेट पुलिस थाने में दर्ज है।
क्या कहना है पुलिस का?
उत्तर प्रदेश पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक प्रशांत कुमार ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'हाथरस में अज्ञात अभियुक्तों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई गई है। राज्य के दूसरे थानों में दर्ज एफआईआर में कई संदिग्धों के नाम हैं।'
उन्होंने इसके आगे कहा,
“
'समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ भी एफआईआर की गई है कि उन्होंने किस तरह उस गाँव में हाथापाई की और ज़बरन घुसने की कोशिश की। कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ भी एफ़आईआर दर्ज है, जिनमें से एक में एक वीडियो प्रसारित करने का आरोप है।'
प्रशांत कुमार, अतिरिक्त महानिदेशक, उत्तर प्रदेश पुलिस
इसके अलावा सासनी में में दर्ज एफ़आईआर में भीम आर्मी के लोगों के ख़िलाफ़ मामला है। हाथरस गेट थाने में दर्ज एफ़आईआर में एक पूर्व विधायक का नाम है, जिसने एक सभा आयोजित की थी।
निशाने पर विरोधी
ज़रा इन एफ़आईआर पर ग़ौर करें। इनमें समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक दल और भीम आर्मी के लोगों के नाम है। इससे यह साफ है कि सरकार उन लोगों को निशाना बना रही है, जिन्होंने इस मामले में विरोध प्रदर्शन किए थे।
उत्तर प्रदेश पुलिस दोषियों तक पहुँचने के बजाय पीड़िता के परिजनों को ही क्यों परेशान कर रही है? देखिए, क्या कह रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक बयान जारी कर सफाई देते हुए कहा है कि प्रशासन ने राजनीतिक दलों को अधिकतम 5 लोगों के साथ जाने की अनुमति दी थी, लेकिन इन दलों ने बड़े पैमाने पर कार्यकर्ता एकत्रित कर लिए थे। इसके अलावा उन लोगों ने कोरोना से जु़ड़े दिशा-निर्देशों का भी पालन नहीं किया था।उत्तर प्रदेश पुलिस ने यह भी माना है कि प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए हल्के बल का प्रयोग करना पड़ा।
एफ़आईआर पर नज़र डालने से पुलिस की मंशा उजागर होती है। जो आरोप लगाए गए हैं और जिन धाराओं में मामले दर्ज किए गए हैं, उनसे यह साफ है कि पुलिस का मक़सद कुछ लोगों को निशाने पर लेना है।
पुलिस की मंशा?
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 124 ए (राजद्रोह), 135 ए (समूहों के बीच धर्म, नस्ल, आवास, जन्म के स्थान और भाषा के आधार पर वैमनस्य को बढ़ावा देना) के मामले दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा 153 बी (राष्ट्रीय एकता को ख़तरा), 420 (धोखाधड़ी) और बेईमानी के आरोप भी लगाए गए हैं।
योगी आदित्यनाथ सरकार यहीं नहीं रुकी। उसने इसे आगे बढ़ कर अंतरराष्ट्रीय साजिश का आरोप भी लगाया है। एफ़आईआर में एक वेबसाइट का ज़िक्र है और बताया गया है कि किस तरह 'जस्टिस फ़ॉर हाथरस विक्टिम' नाम की वेबसाइट बनाई गई और इसमें जानकारी दी गई कि कहां और कब विरोध प्रदर्शन किया जाना है। पुलिस ने यह भी कहा है कि अमेरिका में चले ‘ब्लैक लाइव्स मैटर्स’ प्रदर्शनों की तर्ज़ पर इस वेबसाइट में जानकारियाँ डाली गईं।
राजनीतिक अजेंडा?
इन एफ़आईआर को देख कर बीजेपी नियंत्रित पुलिस बल के कामकाज के नए तौर तरीकों के बारे में पता चलता है। यह मालूम होता है कि उन्होंने किस तरह सरकार के विरोधियों, आलोचना करने वालों और सत्तारूढ़ दल की विचारधार से असहमत लोगों को निशाना बनाने का काम शुरू कर दिया है।
ठीक ऐसा ही सीएए-विरोधी आन्दोलन के समय हुआ था जब योगी आदित्यनाथ सरकार ने राजनीतिक दलों ही नहीं, ग़ैरसरकारी संगठनों, बुद्धिजीवियों, लेखकों और रिटायर्ड अफसरों को निशाना बनाया था।
पुलिस का नया चेहरा
केंद्र के अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस तो इससे भी आगे निकल गई। उसने फरवरी में हुए दंगों की जाँच में वामपंथियों, बुद्धिजीवियों, जेएनयू और जामिया मिलिया के छात्रों, पिंजड़ा तोड़ आन्दोलन से जुड़ी महिलाओं, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के नाम एफ़आईआर में लिए। उसने अर्थशास्त्री जयति घोष और लेखक अपूर्वानंद तक को इस मामले में घसीट लिया।
विरोधियों को कुचलने और उन्हें दबाने के लिए पुलिस का प्रयोग पहले भी होता रहा है। पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में लोगों पर राजद्रोह की धारा लगाना, अंतरराष्ट्रीय साजिश में शामिल होने की बात कहना, आपराधिक साजिश रचने का आरोप लगाना और राष्ट्रीय एकता के लिए ख़तरा बताना जैसी बातें पहले कभी नहीं हुईं। योगी आदित्यनाथ की सरकार अब यह प्रयोग कर रही है, क्योंकि मुख्यमंत्री का मानना है कि लोग 'राज्य के विकास को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।'
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