इससे पहले जिला प्रशासन ने 3 मई को आदेश जारी कर कहा था कि जिसके फ़ोन में यह ऐप नहीं होगा, इसे आदेश का उल्लंघन माना जाएगा और ऐप न रखने वाले व्यक्ति को आपराधिक जुर्माना भी देना होगा। इसमें 6 माह तक की जेल या फिर 1000 रुपये जुर्माना लगाए जाने की बात कही गई थी।
5 मई को वकील ऋत्विक श्रीवास्तव के साथ मिलकर जिले के लोगों ने अतिरिक्त आयुक्त (क़ानून एवं व्यवस्था) आशुतोष द्विवेदी को एक पत्र भेजा जिसमें इस ऐप को अनिवार्य बनाने की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। न्यूज़ वेबसाइट ‘द क्विंट’ से बातचीत में ऋत्विक श्रीवास्तव ने कहा कि नये आदेश में बहुत बड़ा बदलाव किया गया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 1 मई को जारी गाइडलाइंस में कहा था कि सभी कंटेनमेंट ज़ोन में आरोग्य सेतु ऐप 100 फ़ीसदी लोगों के पास होना चाहिए और तब इसे पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर में काम करने वालों के लिए भी अनिवार्य किया गया था। लेकिन 17 मई को जारी गाइडलाइंस में इसे बेहतर प्रयास के आधार पर इंस्टाल करना ज़रूरी बताया गया था।
लेकिन 18 मई को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जारी गाइडलाइंस में कहा गया है कि लोगों को इस ऐप को डाउनलोड करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इसके बाद 20 मई को गौतम बुद्ध नगर जिला प्रशासन का जो आदेश आया है, उसमें कहीं भी ऐप का जिक्र नहीं किया गया है।
अनिवार्यता को लेकर विवाद
आरोग्य सेतु ऐप को डाउनलोड करने को अनिवार्य बनाए जाने को लेकर काफ़ी दिनों से विवाद चल रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि यह ऐप निगरानी करने वाली काफ़ी उन्नत प्रणाली है जिसे आउटसोर्स कर निजी ऑपरेटर के हाथों में दे दिया गया है और इससे डाटा और लोगों की गोपनीय जानकारियों की सुरक्षा को गंभीर ख़तरे की आशंका है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी.एन. श्रीकृष्ण ने कहा था कि आरोग्य सेतु ऐप को लोगों के लिए अनिवार्य करना पूरी तरह ग़ैर-क़ानूनी है। उन्होंने पूछा था कि किस क़ानून के तहत आप इसे किसी पर ज़बरदस्ती लाद रहे हैं?
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