कानपुर के कुख्यात बदमाश विकास दुबे की हत्या के मामले में जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दो लोगों के नामों को मंजूरी दे दी है। ये नाम उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सुझाए गए थे। इनमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बीएस चौहान और उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता का नाम शामिल है। गुप्ता अप्रैल, 1998 से दिसंबर, 1999 तक डीजीपी रहे थे।
गुप्ता के नाम का सुझाव उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दिए जाने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे स्वीकृति दिए जाने के बाद मीडिया और आम लोगों को गुप्ता के वे बयान याद आए जो उन्होंने हाल ही में ‘इंडिया टुडे’ के साथ एक टीवी शो के दौरान दिए थे। इसमें गुप्ता ने कहा था कि विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर पुलिस पर सवाल उठाना ठीक नहीं है।
केएल गुप्ता ने ‘इंडिया टुडे’ के साथ बातचीत में एक सवाल के जवाब में कहा था, ‘टोल बैरियर पर पुलिस की गाड़ी तो निकल जाती है, बाक़ी की चेकिंग की जाती है, उसमें 5-10 मिनट रुक गए, तो उसी में प्रेस वालों ने हंगामा करना शुरू कर दिया।’ दुबे के एनकाउंटर से ठीक पहले मीडयाकर्मियों की गाड़ी को रोके जाने को लेकर तमाम सवाल उठे थे।
गुप्ता ने कहा था, ‘हर चीज को आप नेगेटिविटी में मत देखिए, वो बेचारे 8 लोग मारे गए थे, उन लोगों के लिए आपने कुछ किया क्या। उनके घर में देखा कि वे लोग भूखे मर रहे हैं। विकास के पास कार्बाइन कहां से आई, उसने घर में आर्डिनेन्स फैक्ट्री बना रखी थी।’
“
आप हर चीज पर डाउट कर रहे हैं, उसकी गाड़ी क्यों बदल गई, अरे सरप्राइज एलीमेन्ट के लिए गाड़ी बदल जाती है, एसयूवी टर्न होती है, आप रोज देखिए नेशनल हाईवे में गाड़ी पलट जाती है, लोग मरते हैं।
केएल गुप्ता, पूर्व डीजीपी, उत्तर प्रदेश
सीने में गोली लगने को लेकर बचाव
पूर्व डीजीपी ने पुलिस का जोरदार बचाव करते हुए कहा था, ‘वो (विकास) गया था सरेंडर करने के लिए कि मैं ज्यूडिशियल रिमांड में आऊंगा, वहां की पुलिस ने कोई मुकदमा नहीं कायम किया, इसलिए ट्रांजिट रिमांड की ज़रूरत नहीं पड़ी। वो भागेगा ही, उसने देखा कि पुलिस ने हैंड ओवर कर दिया है, उसे लगा कि मारा न जाऊं, वह गाड़ी के पलटने के बाद भागने का प्रयास कर रहा था, वो ट्रेंड था, इतने आदमियों को मार चुका है, अगर गोली सामने से चलाएगा तो ऐसे में पुलिस मारेगी तो सामने सीने पर ही गोली लगेगी न, चार पुलिस वाले उसने घायल कर दिए, सामने से ही गोली चलाएगा ना।’ दुबे के एनकाउंटर के बाद यह सवाल उठा था कि अगर वह भाग रहा था तो गोली उसके सीने में कैसे लगी।
क्या दुबे के हाथों में हथकड़ी नहीं थी, इसे लेकर पूछे जाने पर पूर्व डीजीपी ने कहा था कि हथकड़ी लगाने के लिए मजिस्ट्रियल आदेश की ज़रूरत होती है।गुप्ता ने कहा, ‘मैंने कुछ बातें पूर्व पुलिस अफ़सर होने के चलते पूछे जाने पर कही होंगी लेकिन अब मुझे कुछ नहीं बोलना चाहिए। हमारी ओर से फ़ाइनल रिपोर्ट सीलबंद लिफ़ाफे में अदालत में जमा करवा दी जाएगी।’ कोर्ट ने 2 महीने के अंदर रिपोर्ट देने के लिए कहा है।
सुनवाई के दौरान सीजेआई एसए बोबड़े ने यूपी सरकार की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा था कि इस तरह की घटनाएं उत्तर प्रदेश में और नहीं होनी चाहिए।
अपनी राय बतायें