उत्तर प्रदेश में एक बार फिर दलित समुदाय के एक युवक के साथ हैवानियत होने की घटना सामने आई है। दलित समुदाय के साथ ऐसे कई मामले सामने आने के बाद भी केंद्र व राज्य सरकारें कोई ऐसी कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं करतीं, जिससे हैवानियत को अंजाम देने वालों के मन में ख़ौफ़ पैदा हो।
हरदोई में 20 साल के युवक को कुछ दंबंगों ने जिंदा जला दिया। बताया जा रहा है कि उसके दूसरी जाति की महिला के साथ संबंध थे। इस घटना का सबसे दुखद पहलू यह है कि बेटे की मौत के सदमे में युवक की मां की भी मौत हो गई है। पुलिस का कहना है कि यह मामला ऑनर किलिंग का लगता है। यह वारदात शनिवार को हरदोई जिले के भदेसा इलाक़े में हुई है।
पुलिस अधीक्षक आलोक प्रियदर्शी ने बताया कि युवक का नाम अभिषेक उर्फ़ मोनू था। उनके मुताबिक़, मोनू को पहले जमकर पीटा गया, एक कमरे में बंधक बनाकर रखा गया और बाद में जला दिया गया। पुलिस अधीक्षक ने कहा कि मोनू की चीख सुनकर मौक़े पर पहुँचे स्थानीय लोग उसे अस्पताल ले गए, जहाँ से उसे लखनऊ रेफ़र कर दिया गया लेकिन रविवार को उसकी मौत हो गई।
पुलिस अधीक्षक ने बताया कि मामले में पाँच लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है। इनमें से दो लोग उस लड़की के परिवार के हैं जबकि दो लोग उसके पड़ोसी हैं और मामले में आगे की जाँच जारी है।
साल 2017 के अंत में जारी नैशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक़, अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार होने के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे था।
कई घटनाएँ हो चुकीं
कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के ही जौनपुर में भी दलित समुदाय के लोगों के साथ ऐसी ही बर्बर घटना हुई थी। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें दलित समुदाय के तीन लोगों को नंगा कर पीटते हुए देखा गया था। इन पर चोरी की कोशिश करने का आरोप लगाया गया था। एक अन्य घटना में मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के तुगलक़पुर गाँव में अगस्त 2018 में एक ऐसा ही मामला सामने आया था। काम करने से इनकार करने पर दो दलितों की कथित तौर पर पिटाई की गई थी। मई 2018 में बदायूँ ज़िले में वाल्मीकि समाज के एक व्यक्ति के साथ मारपीट कर उसकी मूँछ उखाड़ने और जूते में पेशाब पिलाने का मामला आया था।
बहिष्कार का सामना करते हैं दलित
ऐसे अनग़िनत मामले हैं और ये केवल यूपी में ही नहीं बल्कि देश भर में हो रहे हैं। एक सामाजिक अध्ययन में कहा गया है कि दलित अभी भी देश भर के गाँवों में कम से कम 46 तरह के बहिष्कारों का सामना करते हैं। इनमें पानी लेने से लेकर मंदिरों में घुसने तक के मामले शामिल हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के खैरलांजी, आंध्र प्रदेश के हैदराबाद, गुजरात के ऊना, उत्तर प्रदेश के हमीरपुर, राजस्थान के डेल्टा मेघवाल में ऐसे कई मामले हुए हैं जिनमें दलितों के साथ असमानता, अन्याय और भेदभाव वाला व्यवहार हुआ है।
दलित शोध छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला हो या ऊना में दलितों के साथ मारपीट की घटना हो, इन घटनाओं ने दलितों के साथ होने वाले अत्याचारों को लेकर देश में एक बहस छेड़ दी है।
इसी तरह भीमा कोरेगाँव का उदाहरण भी सामने है। दिसंबर 2017 में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाँव में दलितों पर हमले हुए, आगजनी और हिंसा हुई और उनके ही ख़िलाफ़ कार्रवाई भी हुई। सवाल यह है कि ऐसे मामले होते रहेंगे और सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेंगी, ऐसा कब तक चलेगा। आख़िर कब तक सरकारें, आयोग इस तरह की घटनाओं पर कोई सख़्त एक्शन नहीं लेंगे।
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