प्रियंका गाँधी के राजनीति में आने की ख़बर के पीछे कांग्रेस की एक अहम चाल की चर्चा दब गई। कांग्रेस ने जिस दिन प्रियंका गाँधी की पार्टी की राजनीति में सीधी एंट्री कराई और उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया, उसी प्रेस विज्ञप्ति में ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाए जाने की भी सूचना थी।
कांग्रेस अब यूपी में पिछड़ा कार्ड खेलने को तैयार है और इसे ज्योतिरादित्य से साधने की कोशिश में है। ज्योतिरादित्य का पिछड़ों से कोई जुड़ाव है क्या? इस सवाल का जवाब इसमें ढूंढा जा सकता है।
उत्तर प्रदेश के कुर्मियों में शिवाजी को लेकर ज़बरदस्त क्रेज़ है। इतना ही नहीं, शिवाजी के वंशज शाहूजी महाराज यूपी में बीएसपी के आइकन हैं। बीएसपी के पोस्टरों में शाहूजी महराज नजर आते हैं, जिन्होंने आधुनिक भारत में सबसे पहले अपने साम्राज्य में ग़ैर-ब्राह्मणों के लिए आरक्षण दिया था। इसके अलावा शाहूजी से डॉ. भीमराव आंबेडकर के अच्छे संबंध रहे हैं। शिवाजी मराठों की 4 प्रमुख शाखाओं सिंधिया, भोंसले, होल्कर, गायकवाड़ में से एक हैं। मराठा मूल रूप से किसान होते थे। मुगल शासन द्वारा ज़्यादा कर लगाए जाने पर शिवाजी ने औरंगजेब के काल में विद्रोह कर दिया। उन्होंने छापामार लड़ाई कर देश के बड़े हिस्से पर अपना शासन स्थापित कर लिया। लेकिन निम्न जाति का होने के कारण उनका राज्याभिषेक नहीं हो रहा था। काशी से गागा भट्ट नाम के ब्राह्मण को बुलाकर उन्हें सिसोदिया वंश का क्षत्रिय घोषित करवाया गया, तब उनका राज्याभिषेक हो पाया।
- इसी तरह से गायकवाड़ राजपरिवार भी निम्न जातियों के उत्थान के अपने कार्यों के लिए जाना जाता है। सयाजी गायकवाड़ के स्कॉलरशिप पर डॉ. आंबेडकर विदेश पढ़ने गए थे। इसका उल्लेख भी बीएसपी ख़ूब करती है। इसके अलावा बड़ौदा के गायकवाड़ परिवार को शिक्षा के क्षेत्र में अहम कार्यों के लिए जाना जाता है। शाहूजी महाराज और गायकवाड़ राजपरिवार के वैवाहिक संबंध रहे हैं और दोनों रियासतों के राजा वंचितों के मसीहा के रूप में देखे जाते रहे हैं, जिन्होंने वंचित तबक़े के उत्थान के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इसी गायकवाड़ राजपरिवार में ज्योतिरादित्य का विवाह हुआ है।
ज्योतिरादित्य, गाँधी परिवार के ख़ास माने जाते हैं। ज्योतिरादित्य गुना से सांसद हैं, लोकसभा में पार्टी के चीफ़ ह्विप हैं। मध्य प्रदेश में हाल में हुई कांग्रेस की जीत में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है। उत्तर प्रदेश जैसे महत्त्वपूर्ण राज्य में उन्हें प्रियंका गाँधी के समानांतर प्रभार सौंपा गया है।
पिछड़े वर्ग के नेताओं की माँग थी
ज्योतिरादित्य को पार्टी प्रभारी बनाए जाने के महज कुछ हफ़्ते पहले कांग्रेस के पिछड़े वर्ग के पदाधिकारियों की बैठक हुई थी। लखनऊ में हुई उस बैठक में ख़ुद ग़ुलाम नबी आज़ाद मौजूद थे।
आज़ाद की मौजूदगी में लखनऊ में पिछड़े वर्ग के नेताओं ने माँग कर डाली कि राज्य में पार्टी का प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को बनाया जाए। इस माँग से ख़ुद आज़ाद भी हैरान थे।
कांग्रेस ने इस माँग को बहुत गंभीरता से लिया। पिछड़े वर्ग के नेताओं का तर्क था कि ज्योतिरादित्य के यूपी संभालने से न सिर्फ़ राज्य का युवा वर्ग कनेक्ट होगा, उनके राजपरिवार से जुड़े होने के कारण समाज का संभ्रांत या उच्च कहा जाने वाला तबक़ा भी पार्टी से जुड़ सकेगा। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) भी जुड़ सकेगा, जो अगर उन्हें ओबीसी नहीं मानता तो कम से कम ब्राह्मण या ठाकुर नहीं मानता। इसके बाद पार्टी ने उन्हें प्रभार सौंप दिया।
ज्योतिरादित्य की एक 30 सेकंड की क्लिपिंग ज़बरदस्त वायरल हुई थी। उसमें किसी पत्रकार ने पूछा था कि सिंधिया जी, आपकी जाति के कितने लोग हैं?
हाल ही में ज्योतिरादित्य जाति पूछे जाने पर सकपका-से गए और उन्होंने कहा कि मेरी जाति तो मराठा है, लेकिन मूल रूप हम कुर्मी हैं और देश में कुर्मियों की अच्छी आबादी है।
हालाँकि ज्योतिरादित्य को सामंती भी कहा जाता है, जिनके भारी-भरकम राजमहल में पिछड़े वर्ग की कदम रखने की हिम्मत नहीं होती और आरोप है कि उनसे लाभ उठाने वाले भी पिछड़े वर्ग के नहीं हैं।
ज्योतिरादित्य पश्चिमी यूपी से बिल्कुल सटे गुना लोकसभा सीट से सांसद हैं। यह इलाक़ा देश की स्वतंत्रता के पहले ग्वालियर राजघराने में था और आज भी जनता के बीच 'महाराज' का बड़ा सम्मान है। ज्योतिरादित्य यूपी में कभी सक्रिय नहीं रहे हैं। हालाँकि वह पडरौना राजपरिवार से जुड़े आरपीएन सिंह के चुनाव प्रचार में ख़ूब देखे जाते हैं, जिन्हें वह सामान्य रूप से ‘बड़े भाई’ कहकर संबोधित करते हैं। इसके अलावा वह राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के दौरों में भी अक्सर नज़र आते हैं। इस तरह से ज्योतिरादित्य की भी यूपी में उतनी मौजूदगी मानी जा सकती है, जितनी मौजूदगी प्रियंका की रहती है।
आख़िर कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य पर दाँव क्यों खेला? प्रियंका के उन्माद में डूबा मीडिया और समीक्षक भले ही इस पर गंभीर न हों, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी के रणनीतिकारों ने ज़रूर विचार किया होगा कि उन्हें प्रभार क्यों दिया जा रहा है?
मराठे ख़ुद के क्षत्रिय होने के दावा करते हैं और अपने को कुर्मी नहीं मानते हैं, लेकिन यूपी के कुर्मी मराठों से ख़ुद को कनेक्ट करते हैं। यूपी और बिहार के कुर्मी परिवारों के यहाँ शिवाजी की फ़ोटो लगी हुई मिल जाती है। और यूपी में दो दर्ज़न से ज़्यादा लोकसभा सीटों पर कुर्मी वोट बैंक ताक़तवर है। इस वोट बैंक की ताक़त कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनाव में बहुत नज़दीक से देखा था, जब वह समाजवादी नेता बेनी प्रसाद वर्मा को पार्टी में शामिल कर तराई बेल्ट की कुर्मी बहुल लोकसभा सीटें एकतरफ़ा जीतकर 22 लोकसभा सदस्यों को यूपी से संसद में पहुँचा दिया था। यह राजनीतिक विशेषज्ञों के लिए हैरत की बात थी कि मरी-गिरी कांग्रेस किस तरह से इतनी सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी।
कांग्रेस फ़्रंटफुट पर खेलने को तैयार
जिस रोज़ ज्योतिरादित्य और प्रियंका को यूपी का प्रभारी बनाए जाने की घोषणा हुई, उसी दिन राहुल गाँधी का बयान आया कि कांग्रेस फ़्रंट फुट पर आक्रामक रूप से खेलने को तैयार है। इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि कांग्रेस पिछड़े वर्ग की राजनीति पर नज़र बनाए हुए है और वह दलितों को भी साधने की कवायद कर रही है। वह डॉ. अंबेडकर के मराठा वंश के साथ मधुर संबंधों व उपकारों को भी भुनाने की कवायद करेगी और राज्य की पिछड़ी जातियों को भी साधने की कोशिश करने को तैयार है।- पिछड़े वर्ग की अपनी समस्या है। उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग की सूची में 76 जातियाँ हैं। कुछ जातियों में तो कई-कई उपजातियाँ हैं, जिनके आपस में वैवाहिक संबंध नहीं हैं। सबको ओबीसी में आरक्षण मिलता है। इनमें से अगर हम अहिर, कुर्मी, लोध, कोइरी, राजभर, निषाद, बढ़ई, लोहार जैसी कुछ जातियों को छोड़ दें तो लोगों को पता भी नहीं कि कौन-कौन-सी जातियाँ पिछड़े वर्ग में शामिल हैं। किसी के लिए भी दर्ज़न भर जातियाँ गिनाना मुश्किल हो जाएगा।
हर जाति को संतुष्ट करना मुश्किल?
मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें लागू होने के बाद समाजवादी पार्टी पिछड़े वर्ग के दल के रूप में उभरी, लेकिन 21वीं सदी की शुरुआत होते-होते वह जाति विशेष के दल के रूप में प्रचारित हो गई। इसी तरह से बीएसपी ने कुछ ओबीसी जाति को साधा, लेकिन किसी भी दल के लिए यह संभव ही नहीं है कि प्रदेश की हर ओबीसी जाति को संतुष्ट कर सके। ऐसे में सपा को जाति विशेष का दल होने का तमगा भारी पड़ गया।
बीजेपी ने 2014 में उठाया था फ़ायदा
बीजेपी ने 2014 के चुनाव में इसका लाभ उठाया और ग़ैर-यादव ओबीसी को क़रीब पूरी तरह अपने पाले में करके राज्य के अन्य दलों को सिर के बल खड़ा कर दिया। 2017 में भी यह स्थिति बरकरार रही। कांग्रेस ओबीसी तबक़े की ताक़त बख़ूबी समझ रही है। ओबीसी में ऊपर की 5-6 जातियाँ अपर कास्ट की तरह हैसियत रखती हैं और वे चुनाव को प्रभावित करती हैं। वहीं नीचले स्तर की ओबीसी जातियाँ अनुसूचित जाति से भी बुरे हाल में हैं और वे ख़ुद को ओबीसी में भी समायोजित नहीं कर पाती हैं। यूपी में ग़ैर-यादव ओबीसी अभी भी संशय में है कि वह किसके पाले में जाएँ।
कांग्रेस की चुनौती
ऐसे में ज्योतिरादित्य का यूपी की राजनीति में उतरना एक अहम घटना है। हालाँकि कांग्रेस को इसका फ़ायदा तभी मिल सकता है, जब वह अहसास दिलाने में कामयाब हो सके कि वह पिछड़े वर्ग को पार्टी में जगह देने को तैयार है। फ़िलहाल कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य को यूपी में उतारकर पिछड़ों और उनके साथ दलितों को लुभाने के लिए कॉस्मेटिक बदलाव कर दिया है।
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