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ब्राह्मणों की हत्याओं के विरोध में नोएडा में धरना देते समाज के लोग। फ़ोटो क्रेडिट - @AzadSenaChief

यूपी: तीन दशक बाद फिर सियासत के केंद्र में है ब्राह्मण समाज

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज के बड़े हिस्से का समर्थन योगी आदित्यनाथ सरकार को है, ऐसा माना जाता है। ऐसे में अगर समाज में कुछ लोग नाराज़गी का खुलकर इजहार करते हैं और इसके पीछे बाक़ायदा आंकड़े देते हैं कि प्रदेश के किन जिलों में कहां और कितने ब्राह्मणों की हत्या हुई है तो इससे योगी सरकार के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।  
पवन उप्रेती

कानपुर के कुख्यात बदमाश विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणोंं की नाराज़गी का मुद्दा चर्चा में है। ब्राह्मण समाज का एक वर्ग और विशेषकर युवा सोशल मीडिया पर कह रहा है कि योगी सरकार के राज में ब्राह्मण सुरक्षित नहीं हैं और उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। 

सियासत करने में माहिर सत्तारूढ़ और विपक्षी राजनीतिक दलों ने ब्राह्मणोंं को अपने-अपने पाले में खींचने की कवायद शुरू कर दी है लेकिन अगर वाक़ई में ब्राह्मण समाज में नाराज़गी है तो क्या यह योगी सरकार को भारी पड़ेगी, यह सबसे बड़ा सवाल है। 

मायावती का दांव

ब्राह्मणों के एक वर्ग में नाराजगी को भांपते हुए इस मौक़े को सबसे पहले बीएसपी प्रमुख मायावती ने भुनाया। बिकरू कांड में विकास दुबे का नाम आने के बाद जब सोशल मीडिया पर ब्राह्मणों को निशाना बनाया गया तो मायावती खुलकर सामने आ गईं।

उन्होंने ट्वीट कर कहा था, ‘बीएसपी का मानना है कि किसी गलत व्यक्ति के अपराध की सजा के तौर पर उसके पूरे समाज को प्रताड़ित व कटघरे में नहीं खड़ा करना चाहिए। सरकार ऐसा कोई काम नहीं करे जिससे अब ब्राह्मण समाज भी यहां अपने आपको भयभीत, आतंकित व असुरक्षित महसूस करे।’

Brahmin politics in Uttar Pradesh - Satya Hindi
मायावती के ट्वीट का मतलब साफ था कि वह चाहती हैं कि ब्राह्मणों की नाराजगी को भुनाया जाए और इस बात के लिए बेताब हैं कि कभी उनके साथ मजबूती से खड़ा रहा यह वर्ग आज फिर से बीएसपी के साथ जुड़े। 
यहां यह याद दिलाना ज़रूरी होगा कि बीएसपी की 2007 में हुई जीत में ब्राह्मणों का बड़ा हाथ माना गया था। तब बीएसपी ने- ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्म, विष्णु, महेश है’ का नारा दिया था। पार्टी के ब्राह्मण चेहरे सतीश मिश्रा ने प्रदेश में घूम-घूमकर ब्राह्मण सम्मेलन किए थे और इसका फ़ायदा पार्टी को मिला था।

परशुराम की मूर्ति लगाएगी एसपी

बीएसपी को देखकर समाजवादी पार्टी (एसपी) ने इससे बड़ा धमाका कर दिया। पार्टी के प्रबुद्ध प्रकोष्ठ ने कहा है कि वह उत्तर प्रदेश के हर जिले में भगवान परशुराम और स्वतत्रंता आंदोलन में शहादत देने वाले मंगल पांडेय की मूर्ति लगवाएगी। पार्टी ने यह भी कहा कि वह ग़रीब ब्राह्मणों को उनकी बेटियों की शादी में आर्थिक मदद भी देगी। 

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अब कांग्रेस की बात

आज़ादी के बाद से सन 90 तक उत्तर प्रदेश की सियासत में कांग्रेस का बोलबाला रहा। पार्टी ने सबसे अधिक मुख्यमंत्री भी ब्राह्मण समाज से बनाए। गोविंद बल्लभ पंत से लेकर सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायणदत्त तिवारी सहित इस समाज के कई और नेताओं को पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया। 

लेकिन तिवारी के बाद से यानी 1989 के बाद से अब तक कोई भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बना और तब से अब तक कांग्रेस सत्ता में आना तो दूर प्रदेश में ढंग से विधानसभा का चुनाव तक नहीं लड़ सकी। 

उत्तर प्रदेश में सक्रियता बढ़ाने के बाद पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक बार फिर कोशिश की है कि ब्राह्मणों को पार्टी के साथ जोड़ा जाए। इसलिए पार्टी ने अनुराधा मिश्रा को विधायक दल की नेता बनाया है। 

कांग्रेस मुसलिम, दलित और ब्राह्मण समीकरण के दम पर ही लंबे समय तक सत्ता में रही थी और अब फिर से इसी धुरी पर काम कर रही है। पार्टी ने उत्तर प्रदेश में जो 17 नए जिलाध्यक्ष बनाए हैं, उनमें से 7 ब्राह्मण समाज से ही हैं।

ब्राह्मण चेतना परिषद का गठन 

कांग्रेस के ब्राह्मण चेहरे जतिन प्रसाद ने हाल ही में ब्राह्मण चेतना परिषद का गठन किया है। परिषद की ओर से सोशल मीडिया पर ब्राह्मणों को जोड़ने की मुहिम चलाई जा रही है। इसके अलावा साधु वेश में दिखने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम भी यह साबित करने की कोशिश में जुटे हैं कि योगी सरकार में ब्राह्मण सुरक्षित नहीं हैं। 

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योगी सरकार को भारी पड़ सकती है ब्राह्मणों की नाराजगी।

योगी सरकार मना पाएगी?

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज के बड़े हिस्से का समर्थन योगी आदित्यनाथ सरकार को है, ऐसा माना जाता है। ऐसे में अगर समाज में कुछ लोग नाराज़गी का इजहार करते हैं और इसके पीछे बाक़ायदा आंकड़े देते हैं कि प्रदेश के किन जिलों में कहां और कितने ब्राह्मणों की हत्या हुई है तो इससे योगी सरकार के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।  

बीजेपी को मूल रूप से सवर्णों की पार्टी माना जाता है और सवर्णों में ब्राह्मणों की आबादी ज़्यादा है। ऐसे में योगी सरकार और बीजेपी अपने नेताओं से कहलवा रही है कि ब्राह्मण हमेशा से बीजेपी के साथ हैं और आगे भी रहेंगे।

बीजेपी सवर्ण समाज में जातीय संतुलन साधती रही है। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के बाद उसे लगता था कि ब्राह्मण उससे दूर हो सकते हैं तो उसने दिनेश शर्मा को उप मुख्यमंत्री बनाया और महेन्द्र नाथ पांडेय को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी थी।

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किसके साथ जाएंगे ब्राह्मण?

कुल मिलाकर विपक्ष यही कह रहा है कि बीजेपी के साथ जाते ही ब्राह्मणों के बेहद ख़राब दिन शुरू हो गए। ऐसे में आने वाले डेढ़ साल में उत्तर प्रदेश की सियासत में ब्राह्मण एक बार फिर केंद्र में आ सकते हैं क्योंकि 90 के दशक में कमंडल के बाद जब मंडल की राजनीति की शुरुआत हुई तो ब्राह्मण उत्तर प्रदेश और बिहार की सियासत में पिछड़ते चले गए। लेकिन देखना होगा कि ब्राह्मण समाज क्या योगी सरकार के ख़िलाफ़ जाता है और अगर जाता है तो एसपी, बीएसपी या कांग्रेस में से किसे अपना सारथी चुनता है। 

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