यूपी की चुनावी राजनीति में पीएम मोदी और सीएम योगी का इकबाल अगर पहले जैसा यथावत रहा तो बीजेपी को चुनाव जीतने में कोई परेशानी नहीं होगी। भले ही बीजेपी को 2017 वाली जीत हासिल न हो लेकिन इस बात की संभावना अभी भी बनती दिख रही है कि मोदी और योगी के सहारे बीजेपी सूबे में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी और फिर जो खेल होगा उसका गवाह देश बनेगा। लेकिन यह सब इकबाल की कहानी पर निर्भर है।
अब दूसरी कहानी निकलती है उन चुनावी सर्वे से जो लगातार बीजेपी और सपा के बीच बड़ी टक्कर के आंकड़े पेश कर रहे हैं। अब तक के तमाम चुनावी सर्वे का अध्ययन कीजिये तो साफ़ हो जाता है कि जनता के मूड में बदलाव आया है और बड़ी संख्या में लोग सपा के साथ जाते दिख रहे हैं।
सर्वे बताते हैं कि बीजेपी 200 सीटों तक सिमट सकती है और सपा डेढ़ सौ से ज्यादा सीटें पा सकती है। इन तमाम सर्वे में कांग्रेस, बसपा और अन्य दलों की हैसियत को नाकारा गया है या फिर कमतर आंका गया है। ऐसा संभव भी है और नहीं भी है।
पीछे जा रही बीजेपी?
सर्वे को ही सच मान लिया जाए तो साफ़ है कि सपा की तरफ अगर लोगो का झुकाव बढ़ा है और उसकी सीटें बढ़ सकती है तो सर्वे एजेंसी को यह भी बताना चाहिए कि सूबे में मोदी और योगी के इकबाल में भारी गिरावट आयी है। लोगों का विश्वास इन नेताओं से टूटा है और इनके प्रति लोगो में अब पहले जैसा सद्भाव नहीं रहा। यह बात आज भी समझ से परे है कि जो जनता पिछले चुनाव में मोदी और योगी के नाम पर अपना सबकुछ न्योछावर कर चुकी थी, अब अचानक बीजेपी से क्यों खिसकती जा रही है ?
यहाँ सवाल सर्वे एजेंसियों के पार्टीगत सीट बंटवारे का नहीं है। सवाल तो यह है कि जब सपा की सीटें बढ़ने की उम्मीद है तब ये सौ, दो सौ और तीन सौ भी हो सकती है। और ठीक इतनी ही कमी बीजेपी की भी हो सकती है। मामला तो आस्था बदलने का है। अब तक हमारे देश में एक परिवार के अधिकतर लोग एक ही पार्टी को वोट देते रहे हैं। जैसा की पिछली बार अधिकतर परिवार ने बीजेपी को वोट दिया था। फिर किस आधार पर सर्वे में कहा जा रहा है कि सपा की सीटें तो बढ़ेगी लेकिन बीजेपी सरकार बना सकती है।
पिछले चुनावों में यूपी में बीजेपी को उन लोगों का भी भारी समर्थन मिला था जो कभी दूसरी पार्टियों को वोट डालते थे। उसके पीछे का सच केवल यही था कि मोदी ने यूपी को एक बेहतर सूबा बनाने का वादा किया था, युवाओं को रोजगार देने की बातें कही थी और सबको बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं देने का ऐलान किया था।
लेकिन नोटबंदी से लेकर अबतक की जितनी कहानी देश के सामने आयी उससे जनता का विश्वास मोदी और योगी से टूट सा गया है। यही वजह है कि पिछले चुनाव में बीजेपी को वोट देने वाले लोग अब दूसरी पार्टी को तरजीह देते नजर आ रहे हैं।
बीजेपी छोड़ रहे नेता
यह भी याद रखने की जरूरत है कि जब पिछले चुनाव में दूसरी पार्टी से जुड़े लोग बीजेपी को वोट दे सकते हैं तो फिर बीजेपी के वोटर और खासकर सवर्ण से लेकर पिछड़े समाज के लोग भी दूसरी पार्टी के साथ जा सकते हैं। और जा भी रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदहारण सर्वे रिपोर्ट है और उससे भी बड़ी बात बीजेपी से लगातार निकल रहे विधायकों की लम्बी सूची। बीजेपी कह रही है कि जिन लोगों को टिकट नहीं मिल रही है वे लोग पार्टी से निकल रहे हैं। तो सवाल है कि फिर इन नेताओं में पार्टी के प्रति सद्भाव और मोदी -योगी के प्रति आकर्षण कहाँ बचा?
दो लोगों की पार्टी
खोये जनाधार को काल क्रम में फिर से जनता में उम्मीद पैदा कर लौटाया भी जा सकता है लेकिन जब कोई नेता अपना विश्वास जनता में खो देता है तब सत्ता की वापसी कठिन हो जाती है। पार्टी से नेता की उत्त्पति होती है लेकिन जब नेता पार्टी पर हावी होने लगे तो न तो उसकी राजनीति बचती है और ना ही वह पार्टी कुछ कर पाती है। बीजेपी की आज जो स्थिति है इसी रास्ते से गुजरती दिख रही है।
पिछले सात सालों में मोदी और शाह इतने प्रचारित और प्रसारित हो चुके हैं और पार्टी पर इनकी पकड़ इतनी मजबूत हो गई है कि अन्य नेता अब किसी काबिल रहे ही नहीं। बीजेपी के भीतर जो दो -चार नेता/मंत्री सामने आते दिखते हैं, वे वही नेता हैं जिनकी पहुँच संघ परिवार तक है और जिनका अपना रुतबा भी है।
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