जिस बीजेपी ने अयोध्या मुद्दे पर कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद की स्थिति को संभाल लिया था, नागरिकता क़ानून पर क्यों संभाल नहीं पा रही है? ऐसा क्या हो गया कि अयोध्या जैसे मुद्दे पर भी उत्तर प्रदेश में स्थिति सामान्य बनी रही लेकिन नागरिकता क़ानून पर प्रदर्शन हिंसात्मक हो गया? यहाँ तक कि कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई। क्या बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी?
बीजेपी ने अयोध्या मुद्दे से पहले जिस तरह से लोगों और ख़ासकर मुसलिम समुदाय के साथ संपर्क करना शुरू किया था वह इस बार नज़र नहीं आया। अब बीजेपी का ही मानना है कि ऐसे उपाय नहीं किए जाने के कारण ही प्रदर्शन इस स्तर तक पहुँच गया। अब डैमेज कंट्रोल करने का प्रयास शुरू हुआ है। 'इकॉनमिक टाइम्स' के अनुसार, आरएसएस और बीजेपी के नेताओं की मेरठ में शनिवार को इसको लेकर बैठक हुई। इसके लिए क़रीब एक महीना तक अभियान चलाया जाएगा।
बीजेपी और संघ के नेताओं की इस बैठक की अध्यक्षता यूपी बीजेपी के महासचिव सुनील बंसल और दो केंद्रीय मंत्री जनरल वी के सिंह और संजीव बलयान ने की। बैठक में 11 राज्य मंत्रियों ने भी हिस्सा लिया। इसके अलावा पश्चिम यूपी के सभी बीजेपी सांसद और क़रीब 50 विधायक भी इसमें शामिल हुए। बीजेपी और आरएसएस ने एक महीने के लिए कार्यक्रम तय किए हैं। इसमें बीजेपी और आरएसएस के कार्यकर्ता घर-घर जाकर पैम्फलेट बाँटेंगे। इसमें नागरिकता क़ानून के बारे में जानकारी दी जाएगी। 7 से लेकर 15 जनवरी तक पार्टी छोटे-छोटे समूहों में बैठकें करेगी। 15 जनवरी से लेकर 26 जनवरी तक पार्टी नागरिकता क़ानून के समर्थन में छह रैलियाँ करेगी। बताया जा रहा है कि इसमें से कुछ रैलियों को प्रधानमंत्री मोदी संबोधित करेंगे।
बीजेपी को इस तरह के अभियान की ज़रूरत क्यों आन पड़ी? कहा जा रहा है कि यदि पार्टी ने पहले से लोगों से संपर्क साधने का प्रयास किया होता तो इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती। जैसा इसने अयोध्या पर फ़ैसला आने से पहले शुरू किया था। बीजेपी के बड़े नेताओं द्वारा मुसलिम सहित सभी समुदायों तक पहुँचने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाया गया था। ख़ुद प्रधानमंत्री ने लोगों से शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील की थी। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी ने मौलानाओं और नागरिक समाज के लोगों की बैठक बुलाई थी। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में तो मुख्यमंत्री से लेकर ज़िला मजिस्ट्रेट सभी को साथ लेकर चलने में उत्साहित करने में जुटे थे। आरएसएस नेता मोहन भागवत ने भी जमिअत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी से संपर्क साधा था। इसके बाद जब कोर्ट का फ़ैसला आया तो कहीं कोई प्रदर्शन नहीं हुआ। हिंसा की तो बात ही दूर है।
लेकिन अब स्थिति बिल्कुल अलग है। संसद ने 12 दिसंबर को नागरिकता क़ानून को पास किया। लेकिन न तो इससे पहले और न ही इसके बाद किसी समुदाय से कोई संपर्क साधने की कोशिश की गई। बीजेपी के बड़े नेताओं को छोड़िए, कार्यकर्ता तक लोगों को विश्वास में लेने का प्रयास करते नज़र नहीं आए।
इसका बड़ा कारण तो यह है कि शायद बीजेपी को भी इस मसले पर इतने बड़े स्तर पर प्रदर्शन की आशंका नहीं थी। 'इकॉनमिक टाइम्स' के अनुसार, बीजेपी के कुछ नेता भी ऐसा ही मानते हैं कि नागरिकता क़ानून पर लोगों से संपर्क नहीं करने से लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हुई और लोग देश भर में सड़कों पर उतरे। मेरठ के बीजेपी सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने ‘ईटी’ को बताया, 'कांग्रेस, तृणमूल, सपा, बसपा, लेफ्ट जैसे अन्य दलों ने विधेयक का विरोध किया, हमें उम्मीद थी कि विधेयक पास होने के बाद कुछ विरोध प्रदर्शन होंगे। लेकिन हमें इतने बड़े पैमाने पर हिंसा और विरोध की उम्मीद नहीं थी जितना आज है। 2016 में सीएबी की संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष रहे अग्रवाल ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस और अन्य पार्टियाँ इन हिंसक विरोध में शामिल हैं। लेकिन चूँकि उन्होंने संसद में विधेयक का विरोध किया था, इसलिए वे इन आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं।’
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