सुप्रीम कोर्ट ने तब अपने आदेश में कहा था कि संवैधानिक पद पर होने के कारण कल्याण सिंह के ख़िलाफ़ कोई मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता। हालाँकि शीर्ष अदालत ने इस बात की अनुमति दी थी कि कल्याण सिंह का कार्यकाल समाप्त होने के बाद सीबीआई उन्हें समन भेजने की कार्रवाई कर सकती है।
1992 में जब अयोध्या में बाबरी मसजिद का विध्वंस हुआ था तब कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। कल्याण सिंह को सितंबर 2014 में राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया था।
उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा के चुनाव होने हैं और कल्याण सिंह पार्टी का मजबूत चेहरा रहे हैं। सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी उनके सियासी अनुभव का लाभ ले सकती है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद मामले में हर दिन सुनवाई चल रही है और जल्द इस बारे में फ़ैसला आने की चर्चाएं हैं, ऐसे में कल्याण सिंह बड़ी भूमिका में नजर आ सकते हैं।
कल्याण सिंह की सरकार के दौरान सूचना और जनसंपर्क निदेशक के पद पर तैनात रहे अनिल स्वरूप ने अपनी किताब में कुछ समय पहले ख़ुलासा किया था कि सिंह बाबरी मसजिद गिराए जाने के ख़िलाफ़ थे। रिटायर्ड आईएएस अफ़सर अनिल स्वरूप की किताब ‘नॉट जस्ट अ सिविल सर्वेंट’ से यह बात सामने आई थी। अनिल स्वरूप मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेहद क़रीबी अफ़सरों में शामिल थे।
अनिल स्वरूप ने अपनी किताब में लिखा है कि कल्याण सिंह बाबरी मसजिद के गिरने से काफ़ी दुखी थे और उन्होंने अपने क़रीबी लोगों से इस बात का ज़िक्र भी किया था। अनिल स्वरूप ने किताब में लिखा है कि उस वक़्त कल्याण सिंह बड़ी शिद्दत के साथ राम मंदिर-बाबरी मसजिद विवाद का शांतिपूर्ण हल निकालने में जुटे हुए थे और बाबरी मसजिद का विध्वंस दूर-दूर तक उनके दिमाग़ में नहीं था।
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