शाम को 5.28 बजे हैं और अयोध्या से खबर यह है कि भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह 49000 से ज्यादा वोटों से पीछे हैं। पोस्टल बैलेट से लेकर अभी तक चार-पांच राउंड की गिनती के बाद यह साफ हो गया है कि सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद यह सीट जीत सकते हैं। यूपी के नतीजों पर पूरे देश की नजर थी। रुझानों में इंडिया गठबंधन काफी आगे है। लेकिन अयोध्या से इतनी बुरी खबर आएगी, भाजपा को इसकी उम्मीद नहीं थी। क्योंकि अभी 22 जनवरी को तो चुनाव के मद्देनजर ही पीएम मोदी ने यहां इतना बड़ा आयोजन कराया था, जिसमें राम मंदिर का उद्घाटन एक तरह से मोदी ने किया। मोदी ने इसका शिलान्यास किया था। भाजपा के कई घोषणापत्र में मंदिर बनाना प्रमुख वादा था।
केंद्र में बेशक एनडीए की सरकार बन जाएगी, लेकिन अयोध्या की हार भाजपा को कम से कम अगले लोकसभा चुनाव तक याद रहेगी। जनवरी में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन किया था तो लोगों का मानना था कि इससे भाजपा को चुनावी लाभ मिलेगा। अयोध्या से मौजूदा भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह ने 2014 और 2019 में यह सीट जीती थी।
अयोध्या भारतीय राजनीति के केंद्रीय बहस में हमेशा रही। अयोध्या राम मंदिर कार सेवकों द्वारा अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने के दशकों बाद बनाया गया था। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराया गया, उसके बाद भाजपा ने उसके नाम पर अनगिनत चुनावों में फसल काटी। जब मंदिर बनकर तैयार हो गया तो भाजपा को लगा कि अब उसे हिन्दुओं के एकतरफा वोट पाने से कौन रोक सकेगा।
भाजपा ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह को भव्य आयोजन बना दिया है। विपक्षी इंडिया गठबंधन ने इस समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इस इनकार का इस्तेमाल मोदी और बाकी भाजपा नेताओं ने लोकसभा चुनाव रैलियों के दौरान विपक्षी गुट पर हमला करने के लिए किया था।
अमित शाह, पीएम मोदी, जेपी नड्डा जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होने के लिए कांग्रेस और सपा पर अपने 'वोट बैंक' को खुश करने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। इन लोगों ने साफ-साफ कहा था कि मुसलमानों को खुश करने के लिए इन लोगों ने हमेशा राम मंदिर का विरोध किया। यूपी के बाकी शहरों की तरह अयोध्या के लोगों को मोदी और भाजपा की भाषा पसंद नहीं आई।
राम मंदिर के आसापास के क्षेत्र को विकसित करने के लिए पूरे फैजाबाद को उजाड़ दिया गया। इसका ज्यादा नुकसान गरीब तबके को हुआ जो इधर-उधर झुग्गियां डालकर रह रहा था। जो अयोध्या के आसपास छोटी-मोटी दुकान चलाकर पेट पाल रहा था। लेकिन राम मंदिर निर्माण की आड़ में इस तबके को नजरन्दाज कर दिया गया। अयोध्या के मूल निवासियों के दर्द को मीडिया ने कभी तवज्जो नहीं दी। फैजाबाद और अयोध्या में पांच रुपये में मिलने वाली चाय अचानक पचास रुपये की बिकने लगी।
स्थानीय लोगों ने इस बदलाव को शिद्दत से महसूस किया। वे लोग राम मंदिर में दर्शन के लिए जाते और अपनी त्रासदी पर आंसू बहाकर लौट आते थे। अयोध्या में इस खामोशी का अंडरकरंट भाजपा और कथित एग्जिट पोल वाले पकड़ नहीं सके। अयोध्या के लोग वैकल्पिक मीडिया को बार-बार बता रहे थे कि फैजाबाद-अयोध्या में सदियों पुराने आपसी भाईचारे को भाजपा ने काफी नुकसान पहुंचाया है। लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। अब नतीजा सामने है।
राम के नाम पर भाजपा ने दूसरा मोर्चा मेरठ में खोला और वहां उसने "रामायण" टीवी सीरियल में अभिनेता अरुण गोविल को उतार दिया। शुरू में अरुण गोविल पिछड़ रहे थे लेकिन इस रिपोर्ट को लिखे जाने के समय अरुण गोविल 9 हजार वोटों से आगे चल रहे थे। वहां गिनती बहुत धीमी चल रही है। इसे लेकर कांग्रेस ने चुनाव आयोग से ऐतराज जताया है।
कुल मिलाकर अयोध्या का संदेश यही है कि उसने साम्प्रदायिक राजनीति को ठुकरा दिया है। अगर उसने ठुकराया नहीं होता तो राम की नगरी से भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह की जीत लाखों वोटों से होना चाहिए था। लेकिन अभी तक उनके 49 हजार से ज्यादा वोटों से पिछड़ने की सूचना है।
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