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फिर बन रहा है एंटी रोमियो स्क्वैड, महिलाएँ फिर होंगी निशाने पर?

क्या राज्य को यह अधिकार है कि वह किसी भी महिला-पुरुष को दोस्ती करने, प्रेम करने, एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर चलने, हंसी-मज़ाक करने या पार्क में बैठ कर बात करने से रोके? क्या संविधान इसकी इजाज़त देता है? क्या यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है, यह सवाल उठना लाज़िमी है। 

उत्तर प्रदेश पुलिस एक बार फिर एंटी-रोमियो स्क्वैड बनाने जा रही है। ग़ाज़ियाबाद पुलिस 1 जुलाई को इसकी औपचारिक शुरुआत करेगी। इसके तहत एक सब इंस्पेक्टर के साथ दो पुरुष और दो महिला कांस्टेबल की एक टीम होगी। जहाँ मुमकिन होगा, किसी महिला सब इंस्पेक्टर को टीम का मुखिया बनाया जाएगा। ये टीमें स्कूल, कॉलेज, कोचिंग सेंटर, मॉल, कैफ़ेटेरिया, बाज़ार के आसपास या उसके बाहर तैनात रहेंगी। इसका मक़सद लड़कियों-महिलाओं के साथ छेड़छाड़ रोकना होगा। 

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रेड कार्ड

इस टीम के लोग किसी भी पुरुष को संदेह की स्थिति में एक रेड कार्ड पकड़ा सकेंगे। यह कार्ड एक तरह की चेतावनी होगी। इस कार्ड में उस व्यक्ति का नाम, पता, पिता का नाम, उम्र, फ़ोन नंबर, थाना वगैरह लिखा होगा। कार्ड देने का मतलब यह कि उस व्यक्ति को किसी लड़की या महिला के साथ छेड़छाड़ करने के संदेह में चेतावनी दी जा रही है। पुलिस उस पर निगरानी रखेगी और अगली बार ऐसा करने पर उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकेगी। 
Anti Romeo squad to target women again in Uttar Pradesh? - Satya Hindi
मामला सिर्फ़ रेड कार्ड तक नहीं है। इन लोगों का विडीयो भी बनाया जाएगा। यह वीडियो उस व्यक्ति के अभिभावक को दिखाया जाएगा, जिसका मक़सद उस व्यक्ति को शर्मिंदा करना होगा। बाद में अदालत में सबूत के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।

इस अभियान की विडंबना यह थी कि महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर चलाए जा रहे इस अभियान में अधिकतर मामलों में लड़कियों की ही पिटाई होती थी, उन्हें चरित्रहीन कहा जाता था, उसका वीडियो बना लिया जाता था।

निशाने पर महिलाएँ

इसका सबसे ख़तरनाक पहलू यह था कि यह काम पुलिस के अलावा दूसरे लोग भी करते थे, जो किसी रूप में पुलिस से जुड़े नहीं होते थे। हिन्दु युवा वाहिनी को लोग सबसे ज़्यादा सक्रिय थे। इसके अलावा दुर्गा वाहिनी की लड़कियाँ-औरतें भी इसमें शामिल होती थीं। ये दोनों संस्थाएं भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी हुई हैं।
Anti Romeo squad to target women again in Uttar Pradesh? - Satya Hindi
आलम यह हो गया था कि यकायक दो-चार लोगों का समूह कहीं भी पार्क में बैठे किसी भी लड़के-लड़की के पास पहुँच कर जिरह करने लगता था और उन्हें परेशान करने लगता था। उसके बाद बाद उनका वीडियो बनाया जाता था। लड़की की पिटाई होती थी और लड़के को मुर्गा बनाया जाता था। कई मामलों में उनसे पैसे की वसूली भी की गई थी। 

सवाल यह उठता है कि क्या यह मनचलों, गुंडों या दूसरे असामाजिक तत्वों से महिलाओं-लड़कियों को बचाने के लिए किया जाता था? या दोस्ती करने वालों या प्रेम करने वाले लड़के-लड़कियों को प्रेम करने से रोकने के लिए किया जाता था?

मोरल पुलिसिंग

इसकी तुलना गोरक्षक दलों से की जाती सकती है। गोरक्षक दलों का समूह गाय ले जा रहे लोगों या किसी भी तरह का मांस ले जा रहे लोगों को कहीं भी रोक कर मारपीट करते हैं, इस तरह की वारदात कई बार हो चुकी हैं। अख़लाक, पहलू खां, रकबर एक नहीं कई नाम हैं, जिन्हें गोमांस रखने के संदेह में  या यहां तक कि दूध पीने के लिए गाय ले जाने की वजह से मार दिया गया। नफ़रत कितनी तेज़ी से फैला है इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि मोटर साइकिल चोरी के आरोप में पकड़े गए तबरेज़ अंसारी से 'जय श्री राम' और 'जय हनुमान' के नारे लगवाए गए और उसके बाद भी उसे इतना पीटा गया कि बाद में उसकी मौत हो गई। 
इससे जुड़े कई सवाल हैं। एक सवाल यह भी है कि क्या राज्य को मोरल पुलिसिंग का हक़ है। लेकिन, इसे यह अधिकार न संविधान देता है न ही कोई संस्थान। लेकिन सच यह भी है कि बीजेपी शासित राज्यों में इस तरह की मोरल पुलिसिंग होती है। कई मामलों में इसमें सरकार की भूमिका होती है। बीजेपी और उससे जुड़े संगठन तो होते ही हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार एंटी रोमियो स्क्वैड वाकई महिलाओं की सुरक्षा करेगी या मोरल पुलिसिंग करेगी और इस तरह महिलाओं को ही निशाने पर लेगी।
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क़मर वहीद नक़वी
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