अंग्रेजी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया (टीओआई) ने इस क़ानून के विरोध में फिरोज़ाबाद में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा को लेकर एक सनसनीखेज़ ख़बर छापी है। टीओआई को चार वीडियो मिले हैं। इनमें से एक वीडियो में पुलिस को फिरोज़ाबाद में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर कथित रूप से गोली चलाते हुए देखा जा सकता है। इस वीडियो में पुलिस के साथ कई आम लोग भी हैं जो पत्थरबाज़ी कर पुलिस की मदद करते दिख रहे हैं।
ये वीडियो पुलिस के इस दावे को झूठा साबित करता है कि 20 दिसंबर को फिरोज़ाबाद में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों के दौरान एक भी गोली नहीं चलाई गई। यह दावा आईजी (आगरा रेंज) सतीश गणेश ने किया था। लेकिन जब इन वीडियो को टीओआई ने आईजी को दिखाया तो उन्होंने कहा कि वह फिरोज़ाबाद पुलिस से इस मामले को देखने के लिए कहेंगे।
टीओआई को जो पहला वीडियो मिला है उसमें 15-20 लोग पुलिस वालों के साथ एक लकड़ी की दुकान के अंदर घुसते दिखते हैं। इस दुकान का नाम राजा की लकड़ी की टाल है और राजा ख़ान नाम के शख़्स इसके मालिक हैं। वीडियो में दिखता है कि ये लोग दुकान में तोड़फोड़ करते हैं और अंदर रखी लकड़ियों में आग लगा देते हैं। यह दुकान शिकोहाबाद अड्डा रोड पर वकीलपुरा मंडी में नालबंद चौराहे के पास है। फिरोज़ाबाद पुलिस का दावा है कि 20 दिसंबर को यही से हिंसा और बवाल की शुरुआत हुई थी। यह इलाक़ा रसूलपुर थाने के अंदर आता है।
दूसरे वीडियो में यही लोग मुसलिम बहुल इलाक़े फूलवाली गली में पत्थर फेंकते नज़र आ रहे हैं और आपको फिर से यह जानकर हैरानी होगी कि यहां भी पुलिस इन लोगों के पीछे खड़ी है। कुछ देर बाद पुलिसकर्मी अपनी बंदूकों से फ़ायरिंग करते भी दिखते हैं।
दुकान के मालिक राजा ख़ान के बड़े भाई आज़ाद ख़ान (42) ने टीओआई को बताया, ‘मैं अपने भतीजे फराज़ ख़ान (19) उर्फ़ दीपू और एक कर्मचारी गुलशन शर्मा (19) और मुहम्मद इसरार के साथ दुकान में था तभी हमने देखा कि भारी पुलिस बल के साथ कुछ लोग रसूलपूर थाने से नालबंद चौराहे की ओर आ रहे हैं।'
आज़ाद ने अख़बार को बताया, ‘भीड़ ने दुकान में रखी लकड़ियों में आग लगा दी और पुलिस उन्हें देखती रही। वे मुझे, मेरे भतीजे और हमारे स्टाफ़ को दुकान से घसीटकर बाहर ले गए हमारे साथ मारपीट की।'
गुलशन को रिहा कर दिया गया है जबकि आदिल और फराज़ अभी जेल में हैं और फिरोज़ाबाद के जिला प्रशासन ने संपत्ति सीज करने का नोटिस जारी कर दिया है।
आदिल के पिता सईद ने टीओआई को बताया, ‘आदिल शुक्रवार की नमाज़ के बाद वापस लौट रहा था लेकिन बवाल होने के बाद उसे कुछ और लोगों के साथ छुपने के लिए लकड़ी की दुकान में जाना पड़ा। वह उस समय मुझसे बात कर रहा था लेकिन तभी उसे कुछ लोगों ने घसीट लिया। मैंने उसे मदद के लिए चिल्लाते हुए सुना। उसके बाद से ही उसका फ़ोन बंद है।’
आज़ाद ने टीओई को बताया कि गुलशन के माता-पिता ने पुलिस को उसका पहचान पत्र दिखाया तो पुलिस ने उसे 21 दिसंबर को रिहा कर दिया।
आज़ाद कहते हैं, ‘हमारा हिंसा से कोई लेना-देना नहीं था और हम अपने काम-धंधे में व्यस्त थे। मेरा भतीजा फराज़ दीपावली के दिन पैदा हुआ था, इसलिए हमने उसके घर का नाम दीपू रखा था और उसे उसके फराज़ के बजाय हिंदू नाम दीपू से ज़्यादा जाना जाता था।’
टीओआई ने इस बारे में गुलशन शर्मा से भी बात की। गुलशन ने कहा, ‘जब पुलिस और भीड़ दुकान के अंदर घुसी और हम पर हमला किया, उस वक्त हम दुकानदारी कर रहे थे। पुलिस मुझे और दूसरे लोगों को थाने ले गयी और मेरी पहचान साबित होने के बाद ही पुलिस ने मुझे रिहा किया। हमले में मेरा जबड़ा टूट गया और मेरे मालिक की संपत्ति को बुरी तरह तोड़ दिया।’
गुलशन शर्मा को एक लोकल पुलिस अफ़सर की सिफ़ारिश पर आज़ाद ख़ान के वहां नौकरी मिली थी। इस पुलिस अफ़सर के आज़ाद से अच्छे संबंध थे। भीड़ और पुलिस ने गुलशन की बाइक भी तोड़ दी।
सवाल यह खड़ा होता है कि आम लोगों को पुलिस की ओर से पत्थर फेंकने, आग लगाने की इजाजत किसने दी। कुछ ही दिन पहले मेरठ के एसपी सिटी अखिलेश नारायण सिंह का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वह मुसलिम समुदाय के कुछ लोगों से कह रहे थे कि वे लोग पाकिस्तान चले जाएं। ऐसे में पुलिस की कार्यशैली को लेकर सवाल खड़े होना लाजिमी है।
सवाल यह भी है कि नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में शामिल उपद्रवियों से ‘बदला’ लेने के लिए उतारू योगी सरकार क्या पुलिस की ओर से आम लोगों पर पत्थर फेंकने वालों, दुकान में आग लगाने वालों से भी ‘बदला’ लेगी?
पुलिस ने इस क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने वाले सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, छात्रों को बलवाई बताकर जेल में डाल दिया है। इन लोगों पर संगीन धाराओं में मुक़दमे दर्ज किए गए हैं। लेकिन पुलिस क्या इन सवालों के जवाब देगी। 'सत्य हिन्दी' की ओर से इसे लेकर फिरोज़ाबाद पुलिस से बात करने की कोशिश की गयी लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला। सवाल इस तरह हैं -
1- पत्थर फेंकने वाले लोग कौन हैं?
2- ये पत्थर क्यों फेंक रहे थे?
3- पुलिस वहां मूकदर्शक बनी क्यों खड़ी रही?
4- क्या पुलिस की मिलीभगत से ऐसा हुआ?
5- क्या पुलिस किसी के इशारे पर काम कर रही थी?
6- पुलिस ने दुकान में आग क्यों लगाई?
7- सीसीटीवी कैमरों को क्यों तोड़ा गया?
8- क्या योगी सरकार फिरोज़ाबाद पुलिस पर कार्रवाई करेगी?
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