उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी को बेचैन समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ‘समाजवादी विजय यात्रा’ निकालने जा रहे हैं।
चुनाव के मुहाने पर खड़े उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन, लखीमपुर खीरी की घटना, बेरोज़गारी, कमर तोड़ महंगाई, कोरोना काल की दूसरी लहर के दौरान बने बदतर हालात, बढ़ते अपराध, प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य सुविधाएं सहित कई मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर विपक्षी दल जनता के बीच में मजबूती के साथ जा सकते हैं।
‘समाजवादी विजय यात्रा’ 12 अक्टूबर को कानपुर से शुरू होगी। यात्रा के पहले चरण में अखिलेश बुंदेलखंड तक जाएंगे। यह यात्रा उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में जाएगी। 2017 के विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड की सभी 19 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी और तब एसपी को यहां तगड़ा झटका लगा था।
अखिलेश पहले भी इस तरह की यात्राएं निकालते रहे हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश ने प्रदेश भर में साइकिल यात्रा निकाली थी और इसका फ़ायदा भी एसपी को हुआ था और राज्य में उसकी सरकार बनी थी।
जयंत की ‘जन आशीर्वाद यात्रा’
एसपी का सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) भी 7 अक्टूबर से ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ निकालने जा रहा है। आरएलडी के मुखिया जयंत चौधरी 7 अक्टूबर को हापुड़ के गांव नूरपुर से इस यात्रा की शुरुआत करेंगे। यह यात्रा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी 15 जिलों में जाएगी और 28 अक्टूबर तक चलेगी।
वोटों का बंटवारा रोकना होगा
उत्तर प्रदेश में जिस तरह के सियासी हालात बन रहे हैं, उसमें विपक्षी दलों को वोटों के बंटवारे को रोकना होगा। किसान आंदोलन के कारण योगी सरकार और बीजेपी जबरदस्त दबाव में है और ऐसे में विपक्ष एकजुट होकर लड़ा तो सत्ता में वापसी कर सकता है।
उत्तर प्रदेश में पांच महीने के अंदर विधानसभा के चुनाव होने हैं। इतने बड़े प्रदेश के लिए यह वक़्त बेहद कम है। अगर विपक्षी दल अलग-अलग लड़े तो इससे वोटों का बंटवारा होगा और इसका सीधा फ़ायदा बीजेपी को होगा।
लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत के बाद जिस तरह विपक्ष योगी सरकार पर हमलावर हुआ है, उससे सरकार निश्चित रूप से बैकफ़ुट पर है क्योंकि वीडियो से सामने आ चुका है कि किसानों को रौंदा गया है। इससे आम लोगों में भी बीजेपी के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा बढ़ा है।
गठबंधन करेंगे अखिलेश?
ऐसी चर्चा है कि अखिलेश और कांग्रेस एक बार फिर साथ आ सकते हैं। अखिलेश ने निश्चित रूप से पहले कांग्रेस और फिर बीएसपी के साथ गठबंधन कर यह दिखाया है कि वह हाथ मिलाने में भरोसा रखते हैं लेकिन इस बार उनका कहना है कि वे छोटे दलों के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ेंगे।
अखिलेश को अगर सत्ता में वापसी करनी है तो उन्हें ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व में बने भागीदारी संकल्प मोर्चा, अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी सहित अन्य छोटे दलों को अपने गठबंधन से जोड़ने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए।
एकजुट हुए किसान
मोदी सरकार कृषि क़ानूनों को वापस लेने को तैयार नहीं दिखती। अगर ऐसा हुआ तो निश्चित रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा प्रदेश के अन्य इलाक़ों में भी बीजेपी को सियासी नुक़सान हो सकता है। क्योंकि लखीमपुर खीरी की घटना के बाद किसान पूरी ताक़त के साथ एकजुट हुए हैं।
यह कहा जा सकता है कि विपक्षी दलों की एकजुटता, किसान आंदोलन उत्तर प्रदेश में बदलाव की ज़मीन ज़रूर तैयार कर सकते हैं।
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