दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसानों के आंदोलन का विस्तार हुआ तो इसने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महापंचायतों की शक्ल ले ली। इन महापंचायतों में किसानों के उमड़ने के बाद राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी), कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी महापंचायत करने लगीं। ऐसे में उत्तर प्रदेश के लोग पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ओर देख रहे थे कि वे कब पश्चिमी उत्तर प्रदेश का रूख़ करेंगे और अखिलेश भी शायद इसे समझ गए और शुक्रवार को वह अलीगढ़ पहुंचे।
अलीगढ़ के टप्पल में एसपी की ओर से आयोजित किसान महापंचायत में अखिलेश ने कहा कि एसपी किसानों की लड़ाई में उनके साथ खड़ी है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल पूछा कि वे बताएं कहां पर एमएसपी मिल रही है। उन्होंने कहा कि बीजेपी के पास कोई विजन नहीं है और उसके सारे फ़ैसले देश को बर्बाद करने वाले हैं।
मेहनत कर रहे जयंत
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो रही किसान महापंचायतों ने इस इलाक़े में राजनीतिक ज़मीन खो चुकी आरएलडी को जिंदा होने का मौक़ा दे दिया है। किसान महापंचायतों का दायरा बढ़ रहा है और आरएलडी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने बीते दिनों इस इलाक़े की काफी ज़मीन नापी है। जयंत को पता है कि यही मौक़ा है जब किसानों के बीच में फिर से आरएलडी को खड़ा किया जा सकता है।
प्रियंका संभाल रहीं कमान
कांग्रेस की ओर से की जा रही किसान महापंचायतों की कमान पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने संभाली है। प्रियंका ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर इन महापंचायतों को संबोधित किया है और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में ये उम्मीद जगाई है कि प्रदेश में कांग्रेस अब घुटनों के बल नहीं बल्कि चलेगी बल्कि दूसरे दलों के साथ क़दमताल की कोशिश करेगी।
आरएलडी और कांग्रेस की देखा-देखी आम आदमी पार्टी भी किसान आंदोलन में कूद गयी और उसने मेरठ में किसान महापंचायत आयोजित कर अपने मुखिया अरविंद केजरीवाल को बुला लिया। उसे उम्मीद है कि इसके बलबूते वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ वोट जुटा सकती है।
आरएलडी को दिया स्पेस
अखिलेश की उम्र भले ही कम हो लेकिन सियासत में उनका अनुभव अच्छा है। अखिलेश ने अपनी सहयोगी आरएलडी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के जरिये अपनी जड़ों को ज़माने के लिए पूरा समय दिया और उसके बाद ही वह मैदान में उतरे। ऐसा करके उन्होंने सहयोगी दल को भी पूरा स्पेस और सम्मान दिया और ऐसा करना राजनीति में जरूरी होता है।
बहरहाल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी, एसपी, कांग्रेस मिलकर इन दिनों बीजेपी की सियासी ज़मीन को खोखला करने में जुटे हैं और ज़मीन खोखली होने पर इमारत को गिरने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता। इस बात को बीजेपी के आला नेता भी जानते हैं लेकिन मोदी सरकार इस मामले में पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है, सो वे भी मजबूर हैं।
किसान आंदोलन एक मौक़ा
सभी विपक्षी राजनीतिक दल किसान आंदोलन को 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में ख़ुद को जिंदा करने के मौक़े के रूप में देख रहे हैं। इन दलों के कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि अगर किसान आंदोलन लंबा चलता है तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 130 विधानसभा सीटों पर इसका असर होगा और यहां से चली यह क्रांतिकारी हवा उत्तर प्रदेश की बाक़ी जगहों पर भी बदलाव की ज़मीन तैयार करेगी।
अपनी राय बतायें