इंडियन गठबंधन की 19 दिसंबर को हुई चौथी बैठक में घटनाक्रम अभी भी खबरों को जन्म दे रहे हैं। सबसे पहले खबर आई कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार बतौर पीएम मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रस्तावित करने से नाराज हैं। अभी सोमवार को नीतीश ने पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इंडिया गठबंधन में मतभेद की खबरों को गलत बताया। लेकिन अब मंगलवार को न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बता रही है कि इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में सपा प्रमुख अखिलेश भी बसपा को लेकर नाराज दिखे थे।
हालांकि इंडिया गठबंधन की बैठक में अभी तक एक बार भी बसपा को शामिल करने पर चर्चा नहीं हुई थी लेकिन विपक्षी दलों के नेता अखिलेश की टिप्पणियों से हैरान थे। क्योंकि समूह की अब तक हुई चार बैठकों में से किसी में भी बसपा को शामिल करने पर कोई चर्चा नहीं हुई थी।
पिछले दिनों यूपी प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ बैठक की थी। इस बैठक में यूपी के कांग्रेस नेताओं ने साफ शब्दों में कहा कि बिना बसपा को साथ लाए यूपी की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। इस पर कांग्रेस नेतृत्व ने भरोसा दिया कि बसपा से बात की जाएगी। लेकिन कांग्रेस की ओर से इस बारे में अभी तक कोई बयान नहीं दिया गया। लेकिन यूपी कांग्रेस नेताओं से संबंधित खबर मीडिया में भी आई। सूत्रों के मुताबिक, अखिलेश को लगता है कि कांग्रेस का एक शक्तिशाली वर्ग यूपी में बसपा के साथ गठबंधन करने का इच्छुक है और पार्टी को विपक्षी समूह में शामिल करने का प्रस्ताव केवल समय की बात है। बैठक में उनका बयान ऐसे किसी भी प्रस्ताव को पहले ही खारिज करने का एक प्रयास था।
हालांकि मायावती लगातार इंडिया और एनडीए गठबंधन में शामिल होने से इनकार करती रही हैं। लेकिन हाल ही में उन्होंने विपक्षी नेताओं को याद दिलाया है कि "कोई नहीं जानता कि जनता और देश की खातिर भविष्य में किसे किसकी जरूरत पड़ सकती है।" उन्होंने सीधे तौर पर अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि ऐसे बयान देने वाली पार्टियों को बाद में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है। अखिलेश की नाराजगी पर मायावती की प्रतिक्रिया को विपक्ष के साथ मिलकर चलने की उनकी तत्परता के रूप में देखा जा रहा है। 2024 के चुनावों के लिए मुख्य लड़ाई उत्तर प्रदेश में लड़े जाने की संभावना है, जिसमें सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों दल हर संभव कोशिश करने की तैयारी कर रहे हैं।
चुनावी रणनीतिकार और अब नेता प्रशांत किशोर के साथ कांग्रेस फिर से बातचीत शुरू कर सकती है। दोनों के बीच पहले की बातचीत टूट गई थी क्योंकि किशोर पार्टी के लिए सभी चुनावों का प्रबंधन करने के लिए आजादी चाहने के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष के बाद एक पद भी चाहते थे। पार्टी ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया क्योंकि इससे पार्टी का पूरा ढांचा शक्तिहीन हो जाता और राज्य अध्यक्षों का चयन करने, सर्वेक्षण करने और उम्मीदवारों को चुनने सहित सभी शक्तियां किशोर के पास चली जातीं। लेकिन प्रशांत किशोर ने अब अपना राजनीतिक दल बना लिया है, और खुद को बिहार तक सीमित कर लिया है। इसलिए कांग्रेस अब उनसे इसलिए भी बातचीत कर सकती है क्योंकि बिहार में कांग्रेस के पास कोई कद्दावर नेता भी नहीं है।
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