चुनाव के मुहाने पर खड़े देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के लिए बुधवार का दिन बेहद अहम रहा। अहम इसलिए क्योंकि बीजेपी को चुनौती देने वाले कौन से विपक्षी दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे, यह काफी हद तक साफ हो गया। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर एक मंच पर आए और 2022 का चुनाव साथ मिलकर लड़ने का एलान किया।
किसान आंदोलन और लखीमपुर खीरी की घटना के कारण किसानों और विपक्ष का जबरदस्त विरोध झेल रही बीजेपी ने पूरी कोशिश की थी कि राजभर फिर से उसके खेमे में आ जाएं लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
राजभर के अखिलेश यादव के साथ जाने से पूर्वांचल में कई सीटों पर बीजेपी की जीत प्रभावित हो सकती है। क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में राजभर बीजेपी के साथ मिलकर लड़े थे और उसे इसका फ़ायदा भी मिला था।
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बीजेपी पर अखिलेश का हमला
मऊ के हलधरपुर मैदान में आयोजित वंचित, पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक महापंचायत में पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी ने बहुत झूठ बोला और झूठ बोलने वालों की कोई भी साज़िश अब दलितों-पिछड़ों के बीच में चलने वाली नहीं है।
उन्होंने किसानों की नब्ज पर हाथ रखते हुए कहा कि ये कृषि क़ानून देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने वाले क़ानून हैं। अखिलेश ने कहा, “लखीमपुर खीरी की घटना में किसानों की जान चली गई लेकिन अभी तक गृह राज्य मंत्री ने इस्तीफा नहीं दिया है, जिसके बेटे ने किसानों पर गाड़ी चढ़ाई हो, उसके पिता गृह राज्य मंत्री हों तो न्याय कैसे मिलेगा?”
उत्तर प्रदेश में चार महीने के अंदर विधानसभा के चुनाव होने हैं। इतने बड़े प्रदेश के लिए यह वक़्त बेहद कम है। ऐसे में अगर सरकार बनानी है तो विपक्षी दलों को एक मज़बूत गठबंधन बनाना ही होगा। अखिलेश ने महान दल और राष्ट्रीय लोकदल के बाद राजभर की पार्टी को भी अपने पाले में खींचकर ताक़तवर गठबंधन खड़ा करने की कोशिश की है।
सपा-कांग्रेस गठबंधन होगा?
उत्तर प्रदेश की सियासत में ऐसी भी चर्चा है कि सपा और कांग्रेस एक बार फिर साथ आ सकते हैं। अखिलेश 2017 में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुके हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर भी चर्चा जोरों पर है।
रालोद के साथ बातचीत
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने रालोद से बातचीत कर गठबंधन करने का जिम्मा पार्टी के युवा सांसद दीपेंद्र हुड्डा को सौंपा है। अगर कांग्रेस और रालोद के बीच बात बन जाती है, सपा पहले से ही रालोद के साथ है, ऐसे में यह एक बड़ा गठबंधन उत्तर प्रदेश की राजनीति में बन सकता है।
शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) भी इस गठबंधन के साथ जुड़ सकती है। भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल 9 छोटे दल भी अखिलेश यादव के साथ आ सकते हैं।
निश्चित रूप से उस सूरत में विपक्षी दलों को मिलने वाले वोटों का बंटवारा रुकेगा और इसका फ़ायदा इन दलों को मिलेगा।
बीजेपी जानती है कि कृषि क़ानूनों के कारण उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ा सियासी नुक़सान हो सकता है। पूर्वांचल में राजभर उसके लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि विपक्षी दलों की एकजुटता, किसान आंदोलन उत्तर प्रदेश में बीजेपी की मुसीबतों में इजाफ़ा कर सत्ता से उसकी विदाई का रास्ता तैयार कर सकते हैं।
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