उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा को बड़ा झटका लगा है। उसके 6 विधायक शनिवार को सपा में शामिल हो गए हैं। इन विधायकों को बसपा प्रमुख मायावती ने निलंबित कर दिया था और उसके बाद से ही इनका सपा में शामिल होना तय माना जा रहा था। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इन विधायकों को पार्टी में शामिल किया। सीतापुर से बीजेपी के विधायक राकेश राठौर भी सपा में शामिल हुए हैं।
राकेश राठौर लगातार पार्टी की आलोचना कर रहे थे और माना जा रहा था कि वे इस बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ेंगे। अखिलेश यादव ने इस मौक़े पर कहा कि बीजेपी का इस चुनाव में पूरी तरह सफाया हो जाएगा। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा नहीं किया है और वह सिर्फ़ झूठ बोल रही है।
अकेली पड़ रहीं मायावती
अखिलेश यादव बसपा छोड़ने वाले कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रहे हैं। बसपा की हालत वैसे भी ख़राब है क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ़ 19 सीटों पर जीत मिली थी, इसमें भी महज 7 विधायक अब उसके साथ हैं।
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हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा को 10 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन इसमें बड़ा योगदान सपा और रालोद के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को गया था।
इन विधायकों में हरगोविंद भार्गव, हाजी मुज़तबा सिद्दीकी, हाकिम लाल बिंद, मोहम्मद असलम राइनी, सुषमा पटेल और असलम अली शामिल हैं। ऐसी भी चर्चा है कि विधानसभा चुनाव से पहले बसपा में और भी भगदड़ मच सकती है और शायद ही कोई बड़ा नेता पार्टी में बचा रहे।
सपा में शामिल होने वाले नेताओं को लेकर मायावती अपनी खीझ भी निकाल चुकी हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि दूसरे दलों से निकाले गए और स्वार्थी नेताओं को शामिल करने से सपा का जनाधार नहीं बढ़ेगा।
कई नेताओं ने छोड़ा साथ
बसपा छोड़कर आने वाले बड़े नेताओं- लालजी वर्मा, राम अचल राजभर विधायक आरपी कुशवाहा, पूर्व कैबिनेट मंत्री केके गौतम, सहारनपुर के पूर्व सांसद कादिर राणा, उत्तर प्रदेश में बसपा के अध्यक्ष रहे आरएस कुशवाहा बीते दिनों सपा में शामिल हुए थे। लालजी वर्मा और राम अचल राजभर मायावती के क़रीबी नेताओं में शुमार थे। वर्मा कुर्मियों के बड़े नेता हैं और उनके आने से सपा को इस वर्ग के जबकि रामअचल राजभर के आने से पार्टी को राजभर समुदाय के वोट मिलेंगे।
रणनीति पर काम कर रहे अखिलेश
अखिलेश लगातार ग़ैर यादव पिछड़े नेताओं को सपा से जोड़ रहे हैं। वह अपनी रणनीति पर चुपचाप काम करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को वे अपने साथ ले आए हैं। अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को भी साथ लाने की वह पूरी कोशिश कर रहे हैं।
ग़ैर यादव पिछड़ी जातियां कई सीटों पर बेहद प्रभावी हैं और अखिलेश जानते हैं कि इनके साथ आए बिना सरकार बनाना मुश्किल है। बीजेपी को 2017 के चुनाव में जीत ग़ैर यादव जातियों को साथ लाने के फ़ॉर्मूले से ही मिली थी। इसलिए अखिलेश इस बार बीजेपी के इस फ़ॉर्मूले में सेंध लगाना चाहते हैं।
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