बीजेपी शासित राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने पूरा जोर इस बात पर लगा रखा है कि उनके राज्य के किसान दिल्ली से शुरू हुए आंदोलन में शामिल न होने पाएं। हरियाणा की बीजेपी सरकार के बाद उत्तर प्रदेश में भी आंदोलन में शामिल होने जा रहे नेताओं की गिरफ़्तारियां, प्रशासन द्वारा उन्हें धमकियां मिलना जारी है।
ऐसा करके यह दिखाने की कोशिश है कि यह आंदोलन सिर्फ एक राज्य पंजाब का है और वह चूंकि कांग्रेस शासित है, इसलिए कांग्रेस ही इस आंदोलन को भड़का रही है।
आंदोलन का गला घोटने की कोशिश
किसान नेताओं का कहना है कि पचास लाख का यह नोटिस किसानों के लोकतांत्रिक आंदोलन का गला घोटने की कोशिश है। ऐसा नोटिस किसी एक किसान नेता को नहीं बल्कि भारतीय किसान यूनियन (असली) के छह किसान नेताओं को भेजा गया है। कुछ किसान नेताओं को पांच लाख रुपये बांड के नोटिस भी भेजे गए हैं। ये नोटिस 12 और 13 दिसंबर को सीआरपीसी की धारा 111 के तहत भेजे गए हैं।
संभल के एसपी चक्रेश मिश्रा ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उन्होंने इस बारे में एसडीएम से बात की है और ग़लती को सुधारने के बाद नया नोटिस भेजा जाएगा। संभल के सर्किल अफ़सर अरूण कुमार सिंह कहते हैं कि ऐसा क्लर्क की ग़लती से हुआ है और नये नोटिस के तहत 50 हज़ार रुपये का बांड भरना होगा।
संभल के एसडीएम दीपेंद्र यादव का कहना है कि दिल्ली में किसान आंदोलन को देखकर यहां के छह किसान नेता गांवों में जा रहे थे और किसानों को झूठी सूचना देकर भड़का रहे थे। उनका कहना है कि इससे इलाक़े की शांति भंग हो सकती थी।
दिल्ली-यूपी की सीमा पर पड़ने वाले ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बैठे किसान लगातार आरोप लगा रहे हैं कि आंदोलन में भाग लेने आने वाले किसानों के घरों में पुलिस दबिश दे रही है और प्रशासन उन्हें धमका रहा है।
संभल के किसान नेता राजपाल सिंह यादव कहते हैं, ‘प्रशासन किसानों के आंदोलन से इतना डरा हुआ क्यों है। हम अहिंसक आंदोलन कर रहे हैं। उन्होंने हमें पचास लाख का नोटिस भेज दिया है, जैसे हम आतंकवादी हों। वे इस बात को जानते हैं कि हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं।’
यूपी के चंदौसी और सिंघपुर इलाक़े के किसान भी 26 नवंबर से आंदोलन पर बैठे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, किसान नेताओं का कहना है कि पुलिस ने उनके आंदोलन को रोकने की बहुत कोशिश की, उनके गांवों के चक्कर लगाए और वे क्या कर रहे हैं, इस पर नज़र रखी।
किसान नेता कहते हैं कि जैसे ही वे किसी घेराव या प्रदर्शन की योजना बनाते हैं, पुलिस घर पर आकर उन्हें गिरफ़्तार कर लेती हैं।
किसान नेताओं के इन बयानों से साफ है कि योगी सरकार पूरी तरह दमन पर उतरी हुई है। सीएए विरोधी आंदोलनों के दौरान भी पुलिस इसी तरह लोगों के घरों में घुसकर उन्हें पीटती थी और धड़ाधड़ गिरफ़्तारियां करती थी।
पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की ओर से यह शिकायत आ रही है कि योगी सरकार की पुलिस उन्हें दिल्ली जाने से रोक रही है। देश में क्या अंग्रेजों की हुक़ूमत चल रही है कि आप आवाज़ उठाओगे तो आपको जेलों में ठूंस दिया जाएगा। किसानों की इस आवाज़ को दबाने की पुरजोर कोशिश हरियाणा सरकार ने भी की लेकिन वह किसानों को दिल्ली के बॉर्डर पर आने से नहीं रोक सकी। लोकतांत्रिक मुल्क़ में बीजेपी सरकारों की इस तरह की तानाशाही और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ किसान और संगठित होकर आवाज़ उठा रहे हैं।
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