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उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने द हिंदू अखबार से कहा है कि सपा 2024 का लोकसभा चुनाव अपने वर्तमान सहयोगियों के साथ मिलकर लड़ेगी और यह गठबंधन बीजेपी को हराने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि जनता का मूड सरकार के खिलाफ है और बसपा या फिर कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठबंधन का सवाल ही पैदा नहीं होता। इसके साथ ही सपा 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने संगठन को मजबूत करने के काम में भी जुट गई है।
कहा जा सकता है कि बसपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने की एक बड़ी वजह 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा को हुआ कड़वा अनुभव भी है।
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था लेकिन उसे इसका नुकसान हुआ था। 2012 के विधानसभा चुनाव में उसे जहां 224 सीटों पर जीत मिली थी वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में वह सिर्फ 47 सीटों पर आकर सिमट गई थी। 2017 में कांग्रेस को उसने 114 सीटें दी थी लेकिन वह सिर्फ 7 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी।
हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने अच्छा प्रदर्शन किया और अपने दम पर 111 सीटों पर जीत हासिल की।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा ने बसपा के साथ गठबंधन किया था लेकिन चुनाव नतीजों के बाद बसपा की मुखिया मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया था और 2022 का विधानसभा चुनाव उन्होंने अकेले लड़ा। 2022 के चुनाव नतीजों के बाद राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि कई सीटों पर सपा की हार में बसपा के उम्मीदवारों की बड़ी भूमिका रही।
बता दें कि अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव में शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल, ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, केशव देव मौर्य के महान दल, कृष्णा पटेल के अपना दल (कमेरावादी) के साथ मिलकर एक मजबूत गठबंधन बनाया था। लेकिन यह गठबंधन विधानसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सका था।
कुछ दिन पहले ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल सिंह यादव सपा गठबंधन से अलग हो गए थे।
रामपुर और आजमगढ़ के उपचुनाव में सपा की हार के बाद राजभर ने अखिलेश पर कई बार तंज कसा था। सपा गठबंधन के एक और सहयोगी केशव देव मौर्य भी विधान परिषद चुनाव में टिकट के बंटवारे को लेकर नाराजगी जता चुके हैं और गठबंधन से दूरी बनाए हुए हैं।
राजेंद्र चौधरी ने द हिंदू अखबार से कहा कि 2022 के विधानसभा चुनाव में हमारे गठबंधन को बीजेपी की ओर से की गई तमाम तिकड़मों के बाद भी 36 फीसद से ज्यादा वोट मिले और हम 24 लोकसभा क्षेत्रों में बीजेपी से आगे रहे। उन्होंने कहा कि सपा को भरोसा है कि महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे 2024 के चुनाव में असर डालेंगे।
इन दिनों सपा नेतृत्व का पूरा जोर संगठन के ढांचे को चुस्त-दुरुस्त करने और 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान रही कमियों को दूर करने पर है। आने वाले कुछ महीनों में पार्टी संगठन इस दिशा में काम पूरा कर लेगा। राजेंद्र चौधरी ने बताया कि नवंबर-दिसंबर में पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन होगा और इसके बाद पार्टी उत्तर प्रदेश के तमाम लोकसभा क्षेत्रों में नए प्रभारियों की घोषणा करेगी और इन प्रभारियों को जिम्मेदारी दी जाएगी कि वे 2024 के लोकसभा चुनाव तक अपने-अपने लोकसभा क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत करें। इस साल जुलाई में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सपा की राष्ट्रीय, राज्य और जिला कमेटियों को भंग कर दिया था।
द हिंदू के मुताबिक, अखिलेश यादव इन दिनों अलग-अलग जिलों के पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलकर जमीनी हालात का जायजा ले रहे हैं।
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक बार फिर महागठबंधन के पाले में आने के साथ ही विपक्षी एकता के लिए बड़े पैमाने पर कोशिशें चल रही हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा है कि वह हेमंत सोरेन, नीतीश कुमार और अन्य विपक्षी नेताओं के साथ एक मंच पर आकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगी।
हाल ही में समाजवादी पार्टी के नेता आईपी सिंह ने एक पोस्टर भी जारी किया था जिसमें लिखा था यूपी प्लस बिहार गई मोदी सरकार। इस पोस्टर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की तस्वीर थी।
कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। इसलिए उत्तर प्रदेश में एक बड़ा राजनीतिक गठबंधन बनाए बिना बीजेपी को चुनौती देना बेहद मुश्किल होगा। क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 62 सीटों पर जीत मिली थी जबकि सपा-बसपा और राष्ट्रीय लोक दल के महागठबंधन को सिर्फ 15 सीटों पर जीत मिली थी। इसमें से 10 सीटें बसपा और 5 सपा के खाते में गई थी।
एक सीट कांग्रेस के खाते में गई थी जबकि दो सीटें बीजेपी की सहयोगी दल अपना दल (सोनेलाल) को मिली थी।
एक ओर जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव उर्फ केसीआर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, एनसीपी के मुखिया शरद पवार और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव विपक्षी एकता के लिए सभी दलों के साथ आने पर जोर दे रहे हैं, ऐसे वक्त में सपा का यह कहना कि वह 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बसपा के साथ गठबंधन नहीं करेगी, इससे फिर वही सवाल खड़ा होता है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में भी विपक्षी दल एक मंच पर नहीं आएंगे।
2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता की सारी कवायद धड़ाम हो गई थी। क्या इस बार भी ऐसा ही होगा। हालांकि अभी लोकसभा चुनाव में डेढ़ साल का वक्त है लेकिन बीजेपी और एनडीए का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट होना होगा, वरना अलग-अलग लड़कर बीजेपी को चुनौती देना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा।
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