2014 के लोकसभा और 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद राजनीति के हाशिये पर आ गए मुसलमानों ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के परिणामों से राहत की साँस ली है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की हार से इस समुदाय में यह उम्मीद जगी है कि यदि सबकुछ ठीक रहा तो उत्तर प्रदेश में बढ़ रहा भय का वातावरण 2019 में ख़ुशनुमा हो सकता है। साथ ही उनके मन में यह आशंका भी है कि कहीं लोकसभा चुनाव से पहले माहौल को इतना तनावपूर्ण न बना दिया जाए कि एक बार फिर साम्प्रदायिकता की ताकतें विजयी हो जाएं।
परिवर्तन को लेकर मुसलमानों की उम्मीदें कुछ बिन्दुओं पर आधारित हैं। पहला, विपक्ष की सफलताओं के बीच कमज़ोर होता भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व। दूसरा, विपक्षी एकता की संभावनाएँ। तीसरा, ना सिर्फ़ मुसलमानों बल्कि हिन्दुओं के कई वर्गों में भी भाजपा से नाराज़गी। चौथा, उत्पीड़न से आहत दलित। और फ़सलों का उचित समर्थन मूल्य न मिलने से ऋण के बोझ से दबे किसान। संवैधानिक संस्थाओं को अपने अधीन लाने के सरकारी प्रयास से प्रबुद्ध वर्ग अलग नाराज़ है।
तीन तलाक़ पर जंग
मुसलमानों के दृष्टिकोण से तीन तलाक़ और समान नागरिक संहिता को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और केंद्र सरकार के बीच जंग छिड़ी हुई है। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर बीजेपी के नेता अध्यादेश लाने की बात कर रहे हैं और पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है। उत्तर प्रदेश में मुसलमान कथित तौर पर गोमांस रखने के लिए की गई अख़लाक़ की हत्या, मदरसों में गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस समारोह की विडियोग्राफ़ी कराने के आदेश, ज़िलों और स्थानों के मुस्लिम नामों के हिन्दू नामों में बदलने तथा प्रदेश में भाजपा, बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों की बढ़ती हुई दबंगई से आशंकित हैं। उनका मानना है कि योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व को धार देने में लगे हुए हैं।
चुनाव परिणामों के अलावा कुछ मुस्लिम उलेमा इस बात से भी आशान्वित हैं कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे हिन्दू-बहुल राज्यों में बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट पड़े हैं। इसका सीधा निष्कर्ष यह है कि मुसलमान और हिन्दू दोनों ही सत्ता दल के विरुद्ध अलग-अलग कारणों से लामबंद हो रहे हैं।
हिन्दू-मुसलिम एकजुट
दोनों का एकजुट होना इस बात की ओर इशारा करता है कि 2014 और 2017 की तरह हिन्दू सिर्फ बीजेपी को वोट न देकर कांग्रेस तथा अन्य क्षेत्रीय दलों को भी वोट देने को तैयार हैं।
एक अन्य बात जिससे मुसलमानों को लगता है कि 2019 में बीजेपी उत्तर प्रदेश में कमज़ोर पड़ेगी, वह है कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल का महागठबंधन। चूँकि उद्देश्य बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना है, इसलिए उलेमा मानते हैं कि अगर कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा नहीं भी बनती है तो भी मुस्लिम वोट उस तरह नहीं बिखरेंगे जैसे 2014 और 2017 में हुए थे।
बीजेपी 25 सीटों तक?
मुस्लिम वोटों के बिखराव के सन्दर्भ में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक ज़फ़रयाब जिलानी तो यहाँ तक कहते हैं कि सपा और बसपा के गठबंधन के बाद बीजेपी को 25 सीट मिल जाएँ तो बहुत है। वे मानते हैं कि यहाँ कांग्रेस को उतनी सीटें नहीं मिलेंगीं जितनी छत्तीसगढ़, राजस्थान या मध्य प्रदेश में मिली हैं।
मोदी की लोकप्रियता गिरी
एक अन्य मौलाना एजाज़ अतहर भी मानते हैं कि क्षेत्रीय दलों के एकजुट होने पर ही बीजेपी को रोका जा सकता है। उनके अनुसार, अगर मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ़ गिरा है तो उसकी वजह है वायदों को पूरा न करना।
अलीगढ के एक वरिष्ठ मुस्लिम पत्रकार का कहना है कि इन चुनावों ने यह तो साबित कर दिया है कि बस सपा-बसपा का गठबंधन हो जाए तो बीजेपी और मोदी को रोकना मुश्किल नहीं है। मुसलमानों की आशा अब इसी गठबंधन पर टिकी है।
लखनऊ की टीलेवाली मसजिद के मौलाना फ़ज़लुर रहमान राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में हार को भारतीय जनता पार्टी को मोदी के ख़िलाफ़ जनता की नाराज़गी का नतीजा मानते है। इसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों ही शामिल हैं। मौलाना फ़ज़लुर रहमान के मुताबिक़, “राम मंदिर के मुद्दे पर ख़ुद उनके अपने उनसे नाराज़ हैं। नोटबंदी और जीएसटी से बाकी वोटर खफ़ा हैं। किसान अलग परेशान हैं। अब अमित शाह मीटिंग कर रहे हैं। ज़ाहिर है, उन लोगों को भी इस बात की चिंता है कि ये चुनाव परिणाम कहीं मोदी जी के प्रति जनता के मन की बात न हो।”
ज़फ़रयाब जिलानी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि मुसलमान ही नहीं बल्कि समाज के कई अन्य वर्गों का भाजपा और मोदी से मोहभंग हुआ है। जिलानी के मुताबिक़, 'मुसलमानों को छोड़िए, किसान, दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग की नाराज़गी ही मोदी को रोकने के लिए काफ़ी है।'
'यूपी में बीजेपी का होगा बुरा हाल'
जिलानी का मानना है कि अगर मोदी के जादू का असर कम न हुआ होता तो शायद चार राज्यों में बीजेपी की हार नहीं हुई होती। वे कहते हैं, “माना कि मध्य प्रदेश में बहुत कम फ़ासले से पार्टी की हार हुई लेकिन राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के नतीजों से यह तय है कि उत्तर प्रदेश में मोदी का हाल बुरा होना है।'
शिया मौलाना सैफ़ अब्बास का कहना है कि '2014 में मोदीजी की भाषा आक्रामक थी। 56 इंच के सीने की बात सुनकर यही लगा था कि देश की जनता को बहुत फ़ायदा होने वाला है। भले ही विदेशों में जाकर उन्होंने बहुत नाम कमाया है, देश की इज्ज़त बढ़ाई है। लेकिन यह बात किसान और बेरोज़गार नौजवानों के लिए बेमानी हैं, या वे समझ नहीं पा रहे हैं। रोज़ी, रोटी और स्वास्थ्य जैसे मसले जो उनसे सीधे जुड़े हैं, उनमें उन्हें कुछ मिला नहीं। अयोध्या में मंदिर की तामीर हुई नहीं। ऐसे में मोदी की लोकप्रियता में कमी आ जाना स्वाभाविक है और इसका असर हमें 2019 में दिखाई देगा।'
ध्रुवीकरण की राजनीति
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर टिप्पणी करते हुए मौलाना अब्बास कहते हैं कि इन चारों राज्यों के दौरे में मुख्यमंत्री ने अपने किसी भाषण में यह नहीं कहा कि उन्होंने प्रदेश में क्या विकास कार्य किया है - वे बस लोगों को धर्म और जाति में बाँटने में लगे रहे। वे कहते हैं, 'हमें पूरी उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी पहले वाली मज़बूत स्थिति में नहीं रहेगी।'
इन तीनों लोगों के अनुसार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुस्लिम वोट कांग्रेस के पक्ष में पड़ा है। इसकी एक वजह किसी अन्य पार्टी का न होना तो है ही, साथ ही कांग्रेस के राष्ट्रीय पार्टी होने का फ़ायदा भी उसे मिला है। मौलाना फ़ज़लुर रहमान का अनुमान है कि उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस की स्वीकार्यता मुस्लिम अक़्लियतों में बढ़ गई है जबकि ग़रीब तबक़ा समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी के पक्ष में वोट देगा।
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