14 अगस्त की वह ऐतिहासिक रात जब ब्रिटिश साम्राज्य का झंडा यूनियन जैक भारत में आख़िरी बार उतारा गया और जवाहर लाल नेहरू ने 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' का भाषण दिया।
विभाजन को लेकर तथ्यों के कुछ नए दरवाजे इश्तियाक अमहद ने खोले हैं और इतिहास के बहुत से ऐसे तथ्यों से हमें अवगत कराया जिनकी जानकारी हममें से बहुतों को नहीं रही होगी।
देश के विभाजन और भारत-पाकिस्तान के रिश्तों पर शिक्षाविद प्रो. इश्तियाक अहमद और पूर्व पुलिस अधिकारी व हिंदी के मशहूर साहित्यकार विभूति नारायण राय की बातचीत के बाद अब पढ़िए मुसलिम उम्मा पर चर्चा का लिप्यांतर।
मेरे ख्याल से न्यूक्लियर वॉर इज म्युचुअल सुसाइड। अगर लोग खुदकुश करना चाहते हैं तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता है। लेकिन अक्ल की बात तो यही है कि जो सीमा बन चुकी हैं उन्हें मान लो और उन्हें अर्थहीन कर दो। मेरा ऐसा मानना है। यह कहना है पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक इश्तियाक अहमद का।
उनकी वजह से और जवाहलाल नेहरू न होते तो हिंदुस्तान का सत्यनाश पहले दिन से हो जाता। यह तो उनके प्रधानमंत्री काल के वह 17 साल हैं जिसने मॉडर्न इंडिया को बचाए रखा है। यह कहना है लेखक इश्तियाक अहमद का।
इश्तियाक़ पाकिस्तानी मूल के स्वीडिश नागरिक हैं जो स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र और इतिहास के प्रोफेसर रहे हैं। विभूति नारायण राय के साथ गुफ्तगू हुई।
राजीव गांधी की आज पुण्य तिथि है। एलटीटीई ने राजीव गांधी की हत्या क्यों की और इस हत्याकांड को कैसे अंजाम दिया? श्रीलंका मामलों के विशेषज्ञ एम. आर. नारायण स्वामी ने इस पर रोशनी डालते हुए अंग्रेजी अख़बार 'द हिन्दू' में एक लेख लिखा था। प्रस्तुत है इसका हिंदी अनुवाद।
बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा ने गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त एक बार नहीं कहा, उन्होंंने संसद में भी उसे दुहराया। पर गाँधी से नफ़रत करना तो आरएसएस का इतिहास रहा है।
सुभाष के सामने सावरकर को खड़ा करने की कोशिश की जा रही है, जिसने अंग्रेज़ों को भगाने के लिए क़ुर्बानियाँ दीं, उनके सामने उस शख़्स को खड़ाने करने का प्रयास हो रहा है जिसने अंग्रेजों की मदद की।
लाल कृष्ण आडवाणी ने अपनी आत्मकथा में मैकॉले को उद्धृत किया है, जिसमें मैकॉले कहते बताए जाते हैं कि भारत को मानसिक रूप से ग़ुलाम बनाना ज़रूरी है। क्या यह सच है?
जलियाँवाला बाग़ क़त्लेआम में 381 शहीदों में से 222 हिन्दू, 96 सिख और 63 मुसलमान थे। साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन एक साझा आंदोलन था। यह भारत के इतिहास का एक गौरवशाली सच था, लेकिन यह सब फ़ाइलों में बंद पड़ा है।