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आधी रात का वक़्त जब 12 बज रहे थे, देश जाग रहा था। जोश था, उत्साह था। बरसों बरस से जिस सुबह का यह मुल्क़ इंतज़ार कर रहा था, वह सुबह उस रात के बाद आने वाली थी। वह दावा अब बेमानी हो गया था कि अंग्रेज़ों के राज का सूरज कभी डूबने वाला नहीं है।
14 अगस्त की शाम जब सूरज डूब रहा था, तब आखिरी बार ब्रिटिश राज का झंडा यूनियन जैक उतार लिया गया और देश की संविधान सभा ने देश की सत्ता भारतीयों के हाथों में आने का ऐलान किया।
75 साल बाद भी संविधान सभा में जवाहर लाल नेहरू के उस ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' की गूंज सुनाई देती है जिसमें नेहरू ने कहा –'हमने नियति को मिलने का एक वचन दिया था, और अब समय आ गया है कि हम अपने वचन को निभाएं,पूरी तरह ना सही,लेकिन बहुत हद तक। आज रात 12 बजे, जब पूरी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नई सुबह के साथ उठेगा। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में बहुत कम आता है, जब हम पुराने को छोड़ नए की तरफ जाते हैं, जब एक युग का अंत होता है और जब बरसों से शोषित एक देश की आत्मा, अपनी बात कह सकती है। यह एक संयोग है कि इस पवित्र मौके पर हम समर्पण के साथ खुद को भारत और उसकी जनता की सेवा, और उससे भी बढ़कर सारी मानवता की सेवा करने की प्रतिज्ञा ले रहे हैं।'
... आज हम एक दुर्भाग्य का अंत कर रहे हैं और भारत फिर खुद को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो महज़ एक कदम है, नए अवसरों के खुलने का,इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। क्या हममें इतनी बुद्धिमत्ता और शक्ति है कि हम इस अवसर को समझें और भविष्य की चुनौतियों को स्वीकार करें?
... हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही महत्वाकांक्षा रही है कि हर एक आँख से आँसू मिट जाए। शायद यह हमारे लिए संभव ना हो पर जब तक लोगों की आँखों में आँसू हैं और वे पीड़ित हैं, तब तक हमारा काम ख़त्म नहीं होगा।
संविधान सभा में तालियाँ थम नहीं रहीं थी, सदस्य मेजें थपथपा रहे थे, स्वागत था एक नए भारत का, एक नए राष्ट्र का, आज़ाद भारत का, जिसके सपने अब अपने होंगे। लेकिन जब पूरा देश जाग कर नेहरू का यह ऐतिहासिक भाषण सुन रहा था, उस दिन महात्मा गांधी ने यह भाषण नहीं सुना और वे रात नौ बजे सोने चले गए।
14 और 15 अगस्त 1947 की दरमियानी रात संविधान सभा की पाँचवी बैठक में भारत की आज़ादी का ऐलान किया गया। बैठक की शुरुआत रात 11 बजे संविधान सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद की अध्य़क्षता में स्वतंत्रता सेनानी सुचेता कृपलानी के वंदे मातरम गीत को गाने के साथ हुई।
फिर राजेन्द्र प्रसाद का अध्यक्षीय भाषण हुआ। इसके बाद डॉ. एस. राधाकृष्णन ने संविधान सभा के सामने आज़ादी का प्रस्ताव रखा। फिर डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने दो प्रस्ताव रखे – कि वॉयसराय को इसकी सूचना दी जाए कि भारत की संविधान सभा ने भारत देश की सत्ता संभाल ली है।
साथ ही 15 अगस्त 1947 से लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का गवर्नर-जनरल होने की सिफ़ारिश करती है। इसकी सूचना संविधान सभा के अध्यक्ष और जवाहर लाल नेहरू माउंटबेटन को देंगे। संविधान सभा की ऐतिहासिक बैठक शुरू हुई ,तभी पंडित नेहरू ने डॉ राधाकृष्णन से इस मौके पर भाषण देने की दरख्वास्त की। राधाकृष्णन मंच पर चढ़े और बिना किसी तैयारी के भाषण शुरु कर दिया।
राधाकृष्णन ने अपने भाषण में संस्कृत के एक श्लोक का इस्तेमाल किया। यह श्लोक था-
सर्वभूता दिशा मात्मानम,सर्वभूतानी कत्यानी।
समपश्चम आत्म्यानीवै स्वराज्यम अभिगछति।।
यानी स्वराज एक ऐसे सहनशील प्रकृति का विकास है जो हर इंसान में ईश्वर का रूप देखता है। असहनशीलता हमारे विकास की सबसे बड़ी शत्रु है। एक दूसरे के विचारों के प्रति सहनशीलता एकमात्र स्वीकार्य रास्ता है।
सत्र के आखिर में बम्बई की शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी हंसा मेहता ने भारत की महिलाओं की तरफ से देश का नया राष्ट्रीय ध्वज प्रदान किया। डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इस झंडे को स्वीकार किया। फिर सुचेता कृपलानी ने 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा' का पहला अंतरा और 'जन गण मन' गाया।
'जन गण मन' उस वक्त राष्ट्रगान नहीं बना था, हालांकि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने 1911 में इसे बांग्ला में लिखा था और उसे पहली बार कांग्रेस के कलकत्ता के राष्ट्रीय अधिवेशन में गाया गया था।
इससे पहले लॉर्ड माउंटबेटन ने जब आज़ादी की तारीख 15 अगस्त होने का ऐलान किया तो देश के कई जाने माने ज्योतिषियों ने इसका विरोध किया और इसे अमंगल मुहुर्त बताया। इसीलिए यह कार्यक्रम 14 और 15 अगस्त की रात को आयोजित किया गया जिसमें ज्योतिषियों ने 11 बजकर 39 मिनट से अभिजीत मुहुर्त बताया था।
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